फूहड़ता भले ही मंचों पर तालियाँ बटोर ले लेकिन वे पंक्तियाँ शीघ्र ही ‘काल’ के गर्त में समा जाती हैं: रामलाल गुप्ता

व्यंग्य-संग्रह: ‘नाचे आम आदमी’ (लेखक- राजेश जैन ‘राही’), समीक्षा- रामलाल गुप्ता

लोक असर समाचार बालोद /रायपुर

विमोचन कार्यक्रम में संयोग से अपने अभिन्न सहयोगी ईश्वरदान आशिया के साथ मैं भी पहुँच गया था। कार्यक्रम में कई बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों एवं कवियों को सुनने का अवसर मिला जो काफ़ी संतोषजनक रहा।

पुस्तक लेखक ‘राही’ जी ने पूरी पुस्तक में अपने नाम के अनुरुप राह की समस्याओं, ज़रूरतों को मुद्दा बनाते हुए अत्यंत सहजता एवं प्रासंगिकता के साथ अपनी बात कही है।

वास्तविक साहित्यकार, वास्तविकता के आवरण से बाहर जा ही नहीं पाता। समाज की जीवंत समस्याओं को उकेरने वाली क़लम ही वास्तविक साहित्य में स्थाई जगह बनाती है। हँसी-मजाक, फूहड़ता भले ही मंचों पर तालियाँ बटोर ले लेकिन वे पंक्तियाँ शीघ्र ही ‘काल’ के गर्त में समा जाती हैं।

जन-सरोकार, जनहित-साहित्य काल और समय सीमाओं से परे होता है। हिंदी भाषा एवं अन्य भारतीय भाषाओं में उपलब्ध भारतीय साहित्य इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है। भले ही यह साहित्य सैकड़ो वर्ष पूर्व रचा गया हो लेकिन यदि यह जन भावनाओं एवम् जन समस्याओं पर आधारित है, तो वह आज भी प्रासंगिक है।

‘राही’ जी ने भी बहुत ही सामान्य और बोलचाल की भाषा में उन सभी समस्याओं को उठाया है, जिनसे समाज के अधिकांश लोगों का सामना लगभग प्रतिदिन या यदा-कदा होता ही रहता है। ‘नाचे आम आदमी’ शीर्षक की प्रासंगिकता को पुस्तक पूरी तरह समेटे हुए है।

फक्कड़ता वास्तविक साहित्यकार की पहचान होती है। राही जी इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। सभी कृतियाँ जल्द ही अपनी जगह बना लेंगी, क्यूँकि जनसमस्या आधारित साहित्य, लोकप्रिय होता है। दुष्यंत कुमार आज भी प्रासंगिकता की कसौटी पर खरे हैं। उदाहरणों में वे सबसे ज्यादा उपयोग किए जाते हैं। कारण स्पष्ट है, जनसमस्याओं के साये में वे अपनी बात वहाँ तक ले जाते हैं, जहाँ तक समस्या के जिम्मेदार लोग बैठे होते हैं।

राही जी ने सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षिक, शासकीय, सांस्कृतिक के साथ लगभग सभी मुद्दों पर साधिकार कलम चलाई है।

आईपीएल
क्रिकेट का विकृत रूप, जिसने पूरे देश में सट्टेबाजी का जाल फैलाया। अकर्मण्यता का जीवंत सबूत है, आईपीएल।

प्रदूषण
पूरा देश और समाज पीड़ित है, इस प्रदूषण से, यह एक कड़वा सच है। दुर्भाग्य से जिम्मेदार लोग इस जिम्मेदारी से दूर भागते हैं।

मुफ़्तखोरी
आपने इस मुद्दे पर व्यवस्था को लताड़ भी लगाई है। देश की जनता को जाहिल और निकम्मा बनाने का एक षडयंत्र है- मुफ़्तखोरी

लिव इन रिलेशनशिप
इस मुद्दे पर आपने बड़ी बेबाकी से समाज के इस अस्वीकार्य संस्कार के बद्तर स्वरूप को उजागर किया है।

अमृत तुल्य
चाय को लेखक ने एक गरिमा प्रदान की है।
(लेकिन पाठक होने के नाते मेरा दृष्टिकोण यह है कि छोटे-छोटे चाय दुकानदारों को बेरोजगार करने का पूंजीवादी षडयंत्र है, यह अमृत तुल्य चाय सेंटर)

पीड़ा संविदा कर्मियों की
इस मुद्दे पर आपने आज की प्रशासनिक व्यवस्था को आइना दिखाया है। राजनीतिक और प्रशासनिक षड्यंत्र, मेहनतकश और गरीबों के विरुद्ध।

भले ही लेखक ने अत्यंत कम शब्दों में सभी मुद्दों को समेटा है लेकिन सीमित शब्दों में प्रस्तुत व्यंग्य पाठकों के सामने एक प्रश्न भी पैदा करते हैं। पुस्तक, चिंतन के लिए भी पाठक को उत्तेजित व उत्साहित करती है ।

लगभग सभी प्रसंग जीवंत मुद्दों पर आधारित हैं और मानव जीवन में सामान्य से लेकर गहराई तक जुड़े हुए हैं। कोई मुद्दा आम आदमी से ओझल या नया नहीं है। आपकी दिनचर्या है पुस्तक में उठाए गए मुद्दे।

हर जागरूक पाठक को यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए। यह पुस्तक पाठक को भी कवि और साहित्यकार बनने की प्रेरणा देती है, सीधी सपाट भाषा एवं दैनिक जीवन से जुड़े मुद्दे होने की वजह से।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *