दुनिया के अधिकांश लोग किसी ना किसी तरह मज़दूरी करते है…“मई दिवस” पर विशेष

लेख: डॉ.रूपेन्द्र कवि (स्वतंत्र लेखक)

अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस या मई दिन मनाने की शुरुआत 01मई 1886 से मानी जाती है जब अमेरिका की मज़दूर यूनियनों ने काम का समय 8 घंटे से अधिक न रखे जाने के लिए हड़ताल की थी। इस हड़ताल के समय शिकागो की हे मार्केट में बम धमाका हुआ था। यह बम किस ने फेंका किसी का कोई पता नहीं। इसके निष्कर्ष के तौर पर पुलिस ने श्रमिकों पर गोली चला दी और सात श्रमिक मार दिए। “भरोसेमंद गवाहों ने तस्दीक की कि पिस्तौलों की सभी फलैशें गली के केंद्र की तरफ से आईं जहाँ पुलिस खड़ी थी और भीड़ की तरफ़ से एक भी फ्लैश नहीं आई। इस से भी आगे वाली बात, प्राथमिक अखबारी रिपोर्टों में भीड़ की तरफ से गोलीबारी का कोई उल्लेख नहीं।

घटनास्थल पर एक टेलीग्राफ खंबा जो गोलियों के साथ हुई छेद से भरा हुआ था, जो सभी की सभी पुलिस की दिशा से आईं थीं।” चाहे इन घटनाओं का अमेरिका पर एकदम कोई बड़ा प्रभाव नहीं पड़ा था परन्तु कुछ समय के बाद अमेरिका में 8 घण्टे काम करने का समय निश्चित कर दिया गया था। वर्तमान में भारत और अन्य देशों में श्रमिकों के 8 घण्टे काम करने से संबंधित नियम लागू है।

अंतरराष्ट्रीय श्रमिक आंदोलन, अराजकतावादियों, समाजवादियों, तथा साम्यवादियों द्वारा समर्थित यह दिवस ऐतिहासिक तौर पर केल्त बसंत महोत्सव से भी संबंधित है। इस दिवस का चुनाव हेमार्केट घटनाक्रम की स्मृति में, जो कि 4मई 1886को घटित हुआ था, द्वितीय अंतरराष्ट्रीय के दौरान किया गया।

     भारत में एक मई का दिवस सब से पहले चेन्नई में 1मई 1923 को मनाना शुरू किया गया था। उस समय इस को मद्रास दिवस के तौर पर प्रामाणित कर लिया गया था। इस की शुरुआत भारती मज़दूर किसान पार्टी के नेता कामरेड सिंगरावेलू चेट्यार ने शुरू की थी। भारत में मद्रास के हाईकोर्ट सामने एक बड़ा प्रदर्शन किया और एक संकल्प के पास करके यह सहमति बनाई गई कि इस दिवस को भारत में भी कामगार दिवस के तौर पर मनाया जाये और इस दिन छुट्टी का ऐलान किया जाये। भारत समेत लगभग 80 देशों में यह दिवस पहली मई को मनाया जाता है।

    दुनिया  के अधिकांश लोग किसी ना किसी तरह मज़दूरी करते है, श्रम करने वालों की श्रेणी में आते हैं, इसलिए मजदूर दिवस मनाने वालों की संख्या भी भरपूर है।वेतन भोगी कर्मचारी-अधिकारी भी इससे दूर नहीं। आज के महगाई व ज़रूरतों के दौर में अपने ज़रूरतों को पूरा करने इंसान जितना बन पड़े मेहनत करता है। पर प्रायः परिणाम पक्ष में नहीं होता, मलाई वही खा रहे जो बेईमान, अराजक हैं। ऐसे में मेहनत करने वालों में एक निराशा और विरोध का भाव स्वाभाविक रूप से बढ़ता है। समानता का अधिकार व्यावहारिक तौर पर हो तो शायद कुछ बेहतर परिणाम निकले। 

     कार्ल मार्क्स ने कहा था “दुनिया के मजदूरों तुम एक हो जाओ…. तुम्हारे पास खोने को कुछ नहीं है और पाने को पूरी दुनिया है” जो कि मजदूरों के लिए सदैव प्रासंगिक प्रतीत होता है। सभी ईमानदार मेहनतकाश मज़दूरों को “मई दिवस” पर एक क़लमकार का दिल से शुभकामना।

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