(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द )
गुरजिएफ, अभी फ्रांस में एक फकीर था।
शायद इस सदी में थोड़े-से लोग थे, जिनकी इतनी गहरी समझ है। अगर उसके पास कोई जाता और कहता कि मैं क्रोध से बहुत परेशान हूं, क्रोध इतना बुरा है, फिर भी मैं छूट नहीं पाता, तो गुरजिएफ कहता कि रुको। पहली तो बात यह छोड़ दो कि क्रोध बुरा है। पहली बात यह छोड़ दो, क्योंकि यह बात तुम्हें कभी समझने न देगी। क्योंकि यह बात समझदारी का झूठा भ्रम पैदा करती है कि तुमको पता है। तुमको पता ही है कि क्रोध बुरा है!
तुम्हें बिलकुल पता नहीं है। पहले तुम यह छोड़ दो। क्रोध नहीं छूटता। क्रोध को रहने दो। कृपा करके यह छोड़ दो कि क्रोध बुरा है।
वह आदमी कहता कि क्रोध बुरा है, यह जानकर मैं इतना क्रोध कर रहा हूं! और अगर यह छोड़ दूं कि क्रोध बुरा है, तब तो बहुत मुसीबत हो जाएगी!
गुरजिएफ कहता कि तुम रुको। हम मुसीबत को लेने को तैयार हैं। मुसीबत होने दो। और गुरजिएफ ऐसे उपाय करता कि उस आदमी के क्रोध को जगाए। ऐसी सिचुएशंस, ऐसी स्थितियां पैदा करता कि उस आदमी का क्रोध भभककर जले। और उस आदमी से कहता कि पूरा करो।
थोड़ा भी छोड़ना मत। पूरा ही कर डालो। उबल जाओ। रोआं-रोआं जल उठे। आग बन जाओ। पूरा कर लो। और वह ऐसी स्थितियां पैदा करता-अपमान कर देता, गाली दे देता या किसी और से उस आदमी को फंसवा देता-उस आदमी के घाव को छू देता कि वह एकदम किसी क्षण में होश खो देता और उबल पड़ता। और भयंकर रूप से। और वह उसको बढ़ावा दिए जाता, उसके क्रोध को, और घी डालता।
और जब वह पूरी आग में जल रहा होता, तब वह चिल्लाकर कहता कि मित्र ! इस वक्त देख लो कि क्रोध क्या है। यह है मौका। अभी देख लो कि क्रोध क्या है। पहचान लो कि क्रोध क्या है। यह है। आंख बंद करो, एंड मेडिटेट आन इट। आंख बंद कर लो, और अब ध्यान करो इस क्रोध पर। रोआं रोआं जल रहा है। खून का कण-कण आग हो गया है। हृदय फूट पड़ने को है। मस्तिष्क की शिरा-शिरा खून से भर गई है, पागल है।
रुको भीतर। अब तुम जरा ठीक से देख लो, क्रोध पूरा मौजूद है। और यह आश्चर्य की बात है कि गुरजिएफ जिसको भी ऐसा क्रोध दिखा देता, वह आदमी दुबारा क्रोध करने में असमर्थ हो जाता-असमर्थ!
