(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द )
एक आदमी इजिप्त में, एक सूफी योगी, अठारह सौ अस्सी में समाधिस्थ हुआ, जीवित। और चालीस साल बाद उखाड़ा जाए, इसकी घोषणा करके समाधि में, कब्र में चला गया, अठारह सौ अस्सी में। चालीस साल बाद उन्नीस सौ बीस में कब्र खुदेगी। जो बूढ़े उनको दफनाने आए थे उस चालीस साल के विश्राम के लिए, उनमें से करीब-करीब सभी मर गए। उन्नीस सौ बीस में एक भी नहीं था। जो जवान थे, उनमें से भी अनेक बूढ़े होकर मर चुके थे। जो बच्चे थे, वे ही कुछ बचे थे। जो उस भीड़ में छोटे बच्चे खड़े थे, वे ही बचे थे।
उन्नीस सौ बीस तक करीब-करीब बात भूली जा चुकी थी। वह तो सरकारी दफ्तरों के कागजातों में बात थी और किसी के हाथ पड़ गई। किसी को भरोसा नहीं था कि वह आदमी अब जिंदा मिलेगा उन्नीस सौ बीस में। लेकिन कुतूहलवश-किसी को भरोसा नहीं था कि वह जिंदा मिलने वाला है। चालीस साल ! कुतूहलवश कब्र खोदी गई। वह आदमी जिंदा था। और बड़ा आश्चर्य जो घटित हुआ वह यह कि इस चालीस साल में उसकी उम्र में कोई भी फेर-बदल नहीं हुआ था। उसके जो चित्र छोड़े गए थे अठारह सौ अस्सी में फाइलों के साथ, उससे उसके चेहरे में चालीस साल का कोई भी फर्क नहीं था।
उन्नीस सौ बीस में कब्र के बाहर आकर वह आदमी नौ महीने और जिंदा रहा। और नौ महीने में उतना फर्क पड़ गया, जितना चालीस साल में नहीं पड़ा था। और उस आदमी से पूछा गया कि तुमने किया क्या? उसने कहा कि मैं कुछ ज्यादा नहीं जानता हूं। सिर्फ प्राणायाम का एक छोटा-सा प्रयोग जानता हूं। श्वास पर काबू करने का एक छोटा-सा प्रयोग जानता हूं, और कुछ भी नहीं जानता।
तो एक हिस्सा तो शरीर है ऊर्जा का, जिसके योग ने सूत्र खोजे। दूसरा हिस्सा नया मन, ए न्यू माइंड पैदा करने की प्रक्रियाएं हैं, जो योग ने खोजीं। पहले प्रयोग के लिए योगासन हैं, प्राणायाम हैं, मुद्राएं हैं। दूसरे प्रयोग के लिए ध्वनि, शब्द और मित्रों का प्रयोग है। तो मंत्रयोग की पूरी लंबी व्यवस्था है।