बंद घड़ी भी दीवार पर टंगी रहे तो चौबीस घंटे में दो बार सही समय…

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द )

मार्क ट्वेन लौटता था एक रात। उसकी पत्नी ने पूछा-घर आया तो पत्नी ने पूछा-कैसा रहा व्याख्यान ? वह व्याख्यान देने गया था। उसने कहा, कौन सा व्याख्यान ? जो मैंने तैयार किया था वह ? या जो मैंने वहां दिया वह ? या जो मैं चाहता था कि देता वह ? कौन सा व्याख्यान ?

एक तो आदमी तैयार करता है, और एक आदमी फिर जो देता है-उसमें बड़ा फर्क है। और फिर एक जो घर लौटते वक्त वह सोचता है दिया होता, वे तीनों अलग-अलग हैं। होश में हो ? सब निशाने तुम्हारे चूक जाते हैं। तुम्हारी जिंदगी में कभी कोई निशाना लगा ? आंख बंद करके भी आदमी तीर चलाता रहे, तो कभी न कभी निशाना लगेगा।

मैंने सुना है कि अगर बंद घड़ी भी दीवार पर टंगी रहे तो चौबीस घंटे में दो बार सही समय बताएगी। तुम्हारी जिंदगी में ऐसा दिन भी नहीं आया कि दो बार भी तुमने सही समय बताया होता। तुम बंद घड़ी से गए बीते हो ? अंधेरे में भी आदमी तीर चलाता रहे, तो कभी न कभी निशाने पर लग जाएगा। तुम खुली आंख से, होश में, प्रकाश में तीर चलाते हो; कभी निशाने पर नहीं लगता। क्या बात होगी ?

मुल्ला नसरुद्दीन को बड़ा शौक था हिरण का शिकार करने का। तीसरी बार जब वह शिकार करने जंगल पहुंचा, और जंगल के विश्रामगृह में उसने अपना सामान रखा, और तैयारी की, और जब सूटकेस खोला, तो उसमें एक बड़ी फोटो रखी थी। और पत्नी ने उस फोटो के नीचे लिखा था मुल्ला, हिरण इस तरह का होता है। उन्हें शिकार का शौक था, लेकिन हिरण का पता नहीं था। तुम कुछ भी मार-मूर कर घर आ जाओगे। हिरण, ठीक से फोटो देख लेना। तुम सब जगह चूक गए हो वही तुम्हारे जीवन का दुख है। और चूकने का कुल कारण है कि तुम होश में नहीं हो। इसलिए जो भी करो, होशपूर्वक करो। उठो तो भी होशपूर्वक, चलो तो भी होशपूर्वक।

महावीर ने कहा है, विवेक से चलो, विवेक से बैठो, विवेक से भोजन करो, विवेक से बोलो, विवेक से सोओ तक। महावीर से कोई पूछा है कि साधु कौन है? तो महावीर ने कहा, जो अमूच्छित है। और असाधु कौन है? तो महावीर ने कहा, जो मूर्च्छित है। जो सोया-सोया जी रहा है, वह असाधु है। जो जागा- जागा जी रहा है, वह साधु। यही शिव कह रहे हैं; ‘चैतन्य आत्मा है।’

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