(संकलन एवं प्रस्तुति मक्सिम आनंद)
एक आदमी मरा। उस गांव का रिवाज था कि जब कोई मर जाए, तो उसकी प्रशंसा में कुछ कहा जाए। और जब तक उसकी प्रशंसा में कुछ न कहा जाए, तब तक उसका अग्नि-संस्कार नहीं किया जा सकता। और वह आदमी इतना बुरा था कि गांव भर के लोगों ने बहुत सोचा, लेकिन कुछ भी न खोज पाए कि प्रशंसा में क्या कहें !
उस जैसा दुष्ट खोजना मुश्किल था। उपद्रवी ऐसा था कि बिना कारण उपद्रव खड़ा करे। पूरा गांव उससे त्रस्त था और सभी प्रसन्न थे उसकी मृत्यु से। न केवल गाँव के लोग, उसके घर-परिवार के लोग भी बड़े आनंदित और आह्लादित थे कि झंझट मिटी। क्योंकि वह आदमी झंझटी था और सुबह से सांझ तक किसी न किसी को, किसी न किसी झंझट में डाले रखता था। पूरे गांव को उसने अदालत के चक्कर लगवा दिए थे। और उससे रास्ते पर नमस्कार करना भी खतरनाक था। उससे कोई भी संबंध बनाना उपद्रव की बात थी, क्योंकि उतने में ही वह कुछ जाल खड़ा कर दे। मरघट पर उसकी लाश रखे बैठे हैं और कोई उठकर खड़ा नहीं होता जो प्रशंसा में कुछ कहे।
गांव का पुराना रिवाज कि जब तक प्रशंसा में कोई कुछ न कहे, तब तक आग न दी जाए। फिर सांझ होने लगी, गांव परेशान है। आखिर लोगों को लगा कि मरकर भी सता रहा है, अब इसको कैसे जलाएं! और जब तक जलाओ न, तो गांव कैसे जाएं? और रात उतरने के करीब है, अब करना क्या ?
फिर एक आदमी खड़ा हुआ और उसने कहा कि यह आदमी अपने चार भाइयों की तुलना में देवता था। इसके चार भाई और हैं गांव में, वे इससे भी ज्यादा उपद्रवी हैं और दुष्ट हैं। अपने चार भाइयों की तुलना में यह आदमी देवता था ! अग्नि-संस्कार करके लोग घर लौट आए।
आप भी अपने को समझाए रखते हैं कि औरों की तुलना में मैं देवता हूं! इतने बुरे लोग हैं संसार में, मैं इतना बुरा नहीं। बुद्ध जैसा भला नहीं, राम जैसा भला नहीं, रावण जैसा बुरा भी नहीं हूं। और पृथ्वी रावणों से भरी है, मैं मध्य में हूं। मध्य में कोई भी नहीं है, कोई भी हो नहीं सकता। मध्य की भ्रांति को छोड़ दें, तो क्रांति शुरू हो सकती है।
