विगत 06 सालों से वैशुपारा के प्राथमिक स्कूल में शेड के नीचे सीलन युक्त ज़मीन में बैठकर नौनिहाल गढ़ रहे हैं भविष्य, विभाग को फिक्र है न जनप्रतिनिधियों को सरोकार

(दांतेवाड़ा से हमारे संवाददाता उमा शंकर एवम् विनीता देशमुख की रिपोर्ट)

(लोक असर समाचार दांतेवाड़ा)

शिक्षा विभाग की अनदेखी और लापरवाही का खामियाजा वैशुपारा प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने आने वाले नौनिहाल को भुगतना पड़ा रहा है। जिला प्रशासन एवम् शिक्षा विभाग जिले में शिक्षा एवं शिक्षण व्यवस्था को लेकर बड़े बड़े दावे तो करते हैं। कि हर बच्चे को सुगमता से शिक्षा उपलब्ध कराई जायेगी लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उन्हें उचित ढंग से बैठने को सुव्यवस्थित शिक्षा का मन्दिर ही नहीं मिल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि शिक्षा विभाग के आला अधिकारी धरातल के बजाय कागज़ों में जिले की शिक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाने में लगे हुए हैं।

हमारी लोक असर की टीम जिले का वाहनपुर पंचायत के समीपस्थ वैशुपारा ग्राम के प्राथमिक शाला पहुंची तो वहां की मौजूदा हालात देख अवाक रह गए।

प्राथमिक शाला में आकर अपने भविष्य गढ़ने वाले नौनिहालों को बैठकर पढ़ने के लिए जगह नहीं है टाट पट्टी जैसी व्यवस्था की बात ही इतर है। एकल शेडनुमा बरामदा में शिक्षक पहली से पांचवीं तक की कक्षा लगाने को विवश हैं।

बता दें कि वाहनपुर ग्राम पंचायत का आश्रित ग्राम वैशुपारा बस्तर जिले में आता है जो कि दंतेवाड़ा जिले के गीदम विकासखंड से लगभग 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नेशनल हाईवे से महज़ साढ़े 03 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।

सरकार जिले के शिक्षण व्यवस्था को विगत के दशकों में इसे विकास का एक प्रमुख मुद्दा बनाकर निरंतर इसे दुरुस्त करने का दावा करते रही है, किन्तु अंदरूनी क्षेत्र में जाकर नंगी आंखों से ऐसे किसी शिक्षण संस्थानों को देखते हैं और समझने का प्रयास करते हैं तब शासन प्रशासन के दावे एक जुमले की तरह प्रतीत होती है, खोखले साबित होने लगते हैं।

कक्षा 01 से कक्षा 05 तक संचालित इस शाला में कुल बच्चों की संख्या 13 बताई गई । पिछले लगभग 5 से 6 वर्षो से शेडनुमा एकल कमरे में बच्चों को पढ़ाने के लिए मजबूर हैं।


यहां यह बताना भी लाज़िमी है कि इस सत्र में कक्षा पहली में एक भी एक भी बच्चे ने प्रवेश नहीं लिया है। ऐसे में आने वाले सत्र में एक कक्षा नील होता जायेगा! इसका तात्पर्य यह भी हो सकता कि यहां पदस्थ शिक्षकों द्वारा गांव में उचित सर्वेक्षण नहीं किया गया, हालांकि गांव की आबादी न्यून है। बावजूद इसके कोई तो बच्चा पहली कक्षा के लिए जगह बना पाते। कुल मिलाकर इस लचर व्यवस्था में शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों से लेकर शिक्षकों में भी कर्तव्यहीनता स्पष्ट दिखाई देता है।

संचालित शाला भवन की स्थिति जर्जर होने की वजह से पिछले सत्र में जुलाई महीने में ही उक्त भवन को जमीदोज कर दी गई थी। और नए भवन निर्माण पिछले साल से प्रारंभ कर दिया गया था। किन्तु आजपर्यंत भवन निर्माण का कार्य अधूरा पड़ा हुआ है। बरामदा की दीवार की ऊंचाई शेड के बराबर नहीं होने के कारण चारो ओर से खुले शेड में हवा की झोंको से बारिश का पानी चारों ओर से भीतर बरामदा में आ जाता है। इससे जमीन पर सीलन बनी रहती है जहां नौनिहाल बैठकर पढ़ाई करने को लाचार और बेबस है। इसके चलते इन दिनों बारिश में बच्चों के साथ ही शिक्षकों को भी काफी दिक्कतों का समाना करना पड़ रहा है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है अंदरुनी गांवों में स्कूलों की स्थिति कैसी होगी!

ग्रामीणों के अनुसार, यह शेडनुमा बरामदा ग्राम के शाला प्रबंधन समिति के सहयोग से पिछले साल शाला भवनकी जर्जरता को ध्यान में रखकर विभागीय खर्चे पर अस्थाई तौर पर बनवाया गया था।

लोक असर की टीम ने जब स्कूल में उपस्थित शिक्षकों से इस संबंध में बात करी तो शाला भवन नहीं होने से उठा रहे दिक्कतों का दुखड़ा सुनाया गया।

शिक्षा विभाग में आसीन जिम्मेदार अधिकारी अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से ही मुंह मोड़ते साफ़ नज़र आते हैं। उनके उदासीन रवैया के चलते शिक्षण व्यवस्था की क्या दशा और दिशा हो रही है बद्तर होने लगी है। देखना होगा कि इस समाचार प्रकाशन पश्चात् जिला प्रशासन एवं शिक्षा विभाग द्वारा ऐसे स्कूलों को लेकर क्या कदम उठाये जाते हैं। या फिर उनके हाल पर ही छोड़ दिया जाता है।

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