छत्तीसगढ़ का लोकपर्व हरेली में गेढ़ी चढ़ने की प्रथा: डॉ अलका यादव

(बिलासपुर से लोक असर के लिए डॉ अलका यादव का लेख)

हरेली का मतलब हरियाली होता है जो हर वर्ष सावन महीने की अमावस्या में मनाया जाता है
छत्तीसगढ़ का सबसे पहला त्यौहार हरेली है जो छत्तीसगढ़ की संस्कृति परंपरा और आस्था का प्रतीक है जो लोगों को संस्कृत से जोड़ता है और उन्हें खेती की महत्ता और अनुकूलता बताती है हरेली के दिन लोग अपने जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं

हरेली पर्व प्रकृति का पर्व है. ये पर्व इंसानों और प्रकृति के बीच के रिश्ते को दर्शाता है. ये वही समय होता है जब कृषि का काम अपने चरम पर होता है. धान रोपाई जैसे महत्वपूर्ण काम इस समय पूरे होते हैं.

किसानों का प्रमुख त्योहार हरेली है। इस दिन वह अपने कृषि उपकरणों की पूजा करके अन्न का बढ़िया उत्पादन होने की कामना करता है।

राऊतों के द्वारा रसायन कल्प तैयार करके गायों को पिलाया जाता है, नीम पत्ती और दशमूल के पत्ती घरों में खोंसकर उनके स्वस्थ रहने की कामना की जाती है। इसी दिन बांस की गेड़ी बनाकर चढ़ते हैं और चैपालों में संध्या धार्मिक अनुष्ठान किया जाता है। इस दिन तंत्र मंत्र की सिद्धि भी की जाती है।

छत्तीसगढ़ के किसान हरेली त्यौहार के दिन अपनी खेती में काम आने वाले औजारों को धोकर लाते हैं और उसके साथ-साथ गाय बैल भैंस को भी साफ सुथरा कर नहा लाते हैं। अपनी खेती में काम आने वाले औजारों को धोकर और से बीच आंगन में रख दिया जाता है या आंगन के किसी कोने में और उसकी पूजा की जाती है साथ ही अपने कुलदेवता की भी पूजा होती है और प्रसाद के रूप में खीर और चिला बांटा जाता है।

हरेली पर्व पर गेड़ी का बहुत ही महत्व है। प्रत्येक घर में गेड़ी का निर्माण किया जाता है, घर में जितनी युवा बच्चे होते हैं इतनी ही गेड़ी का निर्माण किया जाता है।

हरेली के दिन से गेड़ी का भादो में तीजा, पोला के समय ही समापन होता है। घर के प्रत्येक व्यक्ति युवा, बच्चे सब गेड़ी का आनंद लेते हैं। बच्चे तालाब जाते हैं और स्नान करते हैं गेड़ी को तालाब मे ही छोड़ कर आ जाते हैं और पूरे साल गेडी नहीं चढ़ते हैं। वहीं कई स्थानों पर भी नारियल फेक प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता हैं।

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