(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
गर तुम कोरे कागज को पढ़ना सीख लो तो तुम परमात्मा को समझ पाओगे।
ऐसा हुआ, महाराष्ट्र में ही हुआ। तीन संत हुए। एकनाथ हुए, निवृत्तिनाथ हुए और एक फकीर औरत हुई, मुक्ताबाई। एकनाथ ने पत्र लिखा निवृत्तिनाथ को। लेकिन पत्र कोरा कागज था। उसमें कुछ लिखा नहीं था। बस, खाली कागज संदेशवाहक के हाथ भेजा था। निवृत्तिनाथ के हाथ में कागज गया, उन्होंने बड़े रस से पढ़ा। लिखा उसमें कुछ भी नहीं। पर बड़े गौर से पढ़ा। और पढ़ कर फिर मुक्ताबाई को दिया कि तुम भी पढ़ो। फिर मुक्ताबाई ने भी उसे बड़े गौर से था पढ़ा। और फिर दोनों आनंदभाव से प्रसन्न हुए। और संदेशवाहक को कहा कि हमारा पत्र ले जाओ उत्तर में। और वही कोरा कागज वापस दे दिया।
संदेशवाहक बड़ी मुश्किल में पड़ा। पहले जब लाया था, तब तो उसे पता नहीं था कि कागज कोरा है। लिफाफे में बंद था। अब तो उसने देख लिया था कि उसमें कुछ लिखा नहीं।
उसने कहा, महाराज, इसके पहले कि मैं जाऊं, एक छोटी सी जिज्ञासा मेरी भी पूरी कर दें। लिखा कुछ भी नहीं है, तो पढ़ा कैसे? और न केवल आपने पढ़ा, मुक्ताबाई ने भी पढ़ा। और आप दोनों प्रसन्न भी हुए। और इतने गौर से पढ़ा कि जरूर कुछ पढ़ा। मुझे भी लगा। क्या पढ़ा? और फिर यही कागज आप वापस भेज रहे हैं बिना कुछ लिखे।
निवृत्तिनाथ ने कहा कि एकनाथ ने खबर भेजी है कि अगर ‘उसे’ पढ़ना है, तो खाली कागज पर पढ़ना पड़ेगा। और भरे कागज पर तुम जो भी पढ़ोगे वह ‘वह’ नहीं है। हम राजी हैं। हम समझ गए बात। यही उत्तर है हमारा कि हम समझ गए। हम राजी हैं। बात बिलकुल ठीक है।
किताबें तो लिखी हुई हैं, परमात्मा अनलिखा है। किताबें कैसे उसे कहेंगी? अनलिखे को पढ़ना सीखना हो तो वेद पढ़ो, गुरुग्रंथ पढ़ो, कुरान पढ़ो, लिखे हिस्से को छोड़ देना। गैर-लिखे हिस्से को पढ़ लेना। लिखे हिस्से को छोड़ देना, गैर-लिखे को सम्हाल लेना। पंक्तियों के बीच में, शब्दों के बीच में जहां-जहां खाली जगह हो, उसको पढ़ लेना। उसको गुन लेना। अगर तुमने लिखे को पढ़ा तो तुम पंडित हो जाओगे, अगर तुमने अनलिखे को पढ़ा तो ज्ञानी हो जाओगे। अगर लिखे को याद कर लिया तो तुम्हारे पास बड़ी सूचनाएं इकट्ठी हो जाएंगी, और अगर अनलिखे को याद कर लिया तो तुम छोटे बच्चे की तरह सरल हो जाओगे। और अनलिखे से द्वार है।