सामाजिक परिवर्तन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले महिलाओं को दरकिनार कर दिया गया-खिलेश्वरी साहू

लोक असर समाचार बालोद /गुरुर /धमतरी

माता रमाबाई अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर महिला सम्मेलन एस.सी., एस.टी. और ओ.बी.सी. के महिला विंग द्वारा जिला इकाई धमतरी के सोरिद नगर वार्ड में महिला दिवस का आयोजन किया गया.

सामाजिक परिवर्तन वादी , शहीद एवं बलिदानी संत माता कर्मा, झलकारी बाई , माता सावित्री फुले, फातिमा शेख, रानी दुर्गावती रानी, अवंती बाई व मिनीमाता के तैल चित्र पर माल्यार्पण कर सम्मेलन का शुरूआत किया गया .

सामाजिक कार्यकर्ता श्रीमती मीना कूर्रे ने मुख्य अतिथि की आसंदी से कहा- न केवल भारत बल्कि दुनिया की आधी आबादी हमसे है जिन्हें भेदभाव के तहत मात्र 33% आरक्षण दी जाती है उसमें भी उच्च वर्ग की 3% महिलाएं हमारे हिस्से की अधिकांश भागीदारी ले लेते हैं यह हम महिलाओं के साथ एक प्रकार से छलावा एवं दुर्भाग्यपूर्ण हैं जिसके लिए भी हम सब महिलाओं को संघर्ष करने की आवश्यकता है यह तभी संभव होगा जब आप स्वयं और अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देंगे.

सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए बालोद जिले की मानवाधिकार कार्यकर्ता श्रीमती खिलेश्वरी साहू ने कहा- सीता, सावित्री, लक्ष्मी और पार्वती के बारे में तो हम सब महिलाएं बखूबी जानती हैं पर सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने वाली कितने महापुरुष और महिलाओं को हम जानती हैं? हम इन्हें जान सकें इसके पूर्व ही हमारे समाज के इन विदुषी महिला और पुरुषों को हम से दरकिनार कर दिया गया ताकि हम और आप इनके बारे में और अधिक ना जान सके. माता सावित्री फुले, संत माता कर्मा, माता झलकारी ऐसे ही सुसुप्त समाज के जागृत महिलाएं थी जिन्होंने आत्म स्वाभिमान के साथ हमें जीने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

छाया सोनवानी ने कहा शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जिससे हमे अधिकार और कर्तव्य दोनों का बोध होता है हम एक काल्पनिक देवी-देवताओं के बजाय सामाजिक परिवर्तन के महापुरुषों और विदुषी महिलाओं के जीवन संघर्ष को अपने बच्चों को बताना चाहिए.हमारा अमीर घर में पैदा होना और सुंदर पति प्राप्त करना ही नहीं बल्कि हमारा प्रथम और अंतिम लक्ष्य अच्छी शिक्षा और स्वालंबन होना चाहिए.

गुरुर के प्रोफे0 के. मुरारी दास ने कहा – हमारी शिक्षा की पहुंच समाज के अंतिम पायदान तक रहने वाले लोगों तक पहुंचनी चाहिए.शिक्षा आपके सभी सवालों और जवाबों की जननी है इसलिए इस देश के धार्मिक और राजनीतिक लोग हमेशा शिक्षित लोगों से डरते हैं.यदि पुरुष शिक्षित होकर एक कुल का मान बढ़ाता है तो स्त्रियां शिक्षित और समझदार होकर ससुराल और मायके अर्थात दोनों कुल का मान बढ़ाती हैं इसलिए इस देश अच्छा भी उतनी ही आवश्यक है जितना पुरुषों के लिए.
ममता टंडन के अनुसार – हम कल्पना नहीं बल्कि कलम युग में जी रहे हैं जहां से बुद्ध, कबीर और नानक आए
आशीष रात्रे ने कहा – हमारा पिछड़ा समाज धार्मिक रूप से तो मजबूत है पर वह अपने ही आरक्षण के विरोध में खड़े दिखाई पड़ते हैं आरटीआई कार्यकर्ता श्रीमती वर्षा देशलहरा सहित अनेक महिलाओं व पुरुषों ने अपने विचार रखें .
सम्मेलन के अंत में महिलाओं द्वारा कोमल है कमजोर नहीं शक्ति का नाम नारी है सब को जीवन देने वाली मौत भी तुमसे हारी है क्रांतिकारी आव्हान गीत के साथ सम्मेलन संपन्न हुआ
कार्यक्रम का संचालन अधिवक्ता आर.पी.संभाकर ने किया
लगभग डेढ़ सौ महिलाओं के उपस्थिति ने महिला सम्मेलन की सार्थकता सिद्ध करत दी है

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