जहां भी निर्भरता है, वहां क्रोध होगा, वहां …

(संकलन एवं प्रस्तुति मक्सिम आनंद)

अगर घर में विवाद हो, पत्नी जीत जाती है – चाहे गलत हो, चाहे सही हो – क्योंकि पति उस पर निर्भर है कामवासना के लिए । वह डरता है, व्यर्थ का विवाद खड़ा करो, वह कामवासना से इंकार कर देगी। झंझट करो, तो प्रेम मिलना मुश्किल हो जाएगा। और प्रेम चाहिए तो इतना सौदा करना पड़ता है। इसलिए अक्सर पति हार जाता है। और पत्नी जानती है। इसलिए दो ही मौके पर पत्नियां उपद्रव खड़ा करती है – या तो पति भोजन कर रहा हो, या प्रेम करने की तैयारी कर रहा हो। क्योंकि वही दो बातों पर वह निर्भर है। उन्ही दो बातों पर वह गुलाम है। इसलिए पति भोजन की थाली पर बैठा कि पत्नी की शिकायतें शुरू हो जाती है। उपद्रव शुरू हुआ। और पति डरता है कि किसी तरह भोजन… तो हां-हूं भरता है। और ध्यान रहे, भोजन और कामवासना दोनों जुड़े हैं। भोजन तुम्हारे अस्तित्व के लिए जरुरी है, व्यक्ति के; और कामवासना समाज के अस्तित्व के लिए जरुरी है। कामवासना एक तरह का भोजन है, समाज का भोजन। और वह व्यक्ति का भोजन है। दोनों बातों पर पति निर्भर है।

इसलिए बड़े से बड़ा पति, चाहे वह नेपोलियन क्यों न हो, घर लौटकर दब्बू हो जाता है। नेपोलियन भी जोसोफिन से ऐसा डरता है जैसे कोई भी पति अपनी पत्नी से डरता है। वह सब बहादुरी, युद्ध का मैदान, वह सब खो जाता है। क्योंकि यहां किसी पर निर्भर है। कुछ जोसोफिन से चाहिए, जो कि वह इंकार कर सकती है।

वेश्याएं ही अपने शरीर का सौदा करती है, ऐसा आप मत सोचना; पत्नियां भी करती है। क्योंकि यह सौदा हुआ कि इतनी बातों के लिए राजी हो जाओ, तो शरीर मिल सकता है; नहीं तो नहीं मिल सकता। शरीर चाहिए, तो इतनी बातों के लिए राजी हो जाओ।

इसलिए क्रोध पति का पत्नी पर बना रहता है। पत्नी का क्रोध पति पर बना रहता है। क्योंकि वह भी निर्भर है इस पर।
जहां भी निर्भरता है, वहां क्रोध होगा, वहां प्रेम नहीं हो सकता।

प्रेम तुम उसी दिन कर पाओंगे, जिस दिन तुम निर्भर नहीं हो। जिस दिन तुम स्वावलंबी हुए, प्रेम की दिशा में स्वावलंबी हुए। तुम अकेले भी हो सकते हो, और तुम्हारे आनंद में रत्तीभर फर्क नहीं पड़ेगा। बस, उस दिन तुम प्रेम कर सकोगे और उसी दिन पत्नी तुम्हारी तुम्हें सताना बंद करेगी। क्योंकि अब वह जानती है कि अब सताने का कोई अर्थ नहीं रहा, अब झुकाने का कोई उपाय नहीं रहा, निर्भरता समाप्त हो गई है।

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