कोकोड़ मुदिया पेन मंडा, राजटेका माता का देवजातरा ” हेसा कोडिंग” लोक आस्था का पर्व

(नारायणपुर से डॉ. भागेश्वर पात्र की रिपोर्ट)

LOK ASAR NARAYANPUR

नारायणपुर की अधिष्ठात्री देवी राजटेका (कोकोड़ीकरीन) माता का तीन दिवसीय देवजातरा का समापन आज़ हो गया। ध्यातव्य है कि कोकोड़ी, बागडोंगरी में राजटेका के साथ उनके पति हाड़े हड़मा विराजमान हैं। गोंडी में इन्हें कोकोड़ मुदिया कहा जाता है। राजटेका के अन्य नाम कोकोड़ डोकरी, कोकोड़ी करीन आदि हैं।

लोक साहित्यकार एवं जनजातीय शोधकर्ता डॉ. भागेश्वर पात्र प्रचलित लोक कथाओं के आधार पर बताते हैं कि प्राचीन काल में तीन भाई बप्पे हड़मा, हाड़े हड़मा एवं नूले हड़मा मावली माता के शरण में आकर निवास करने लगे। लंबे समय से माता के शरण में होने से मावली माता की सात बेटियों में से एक बेटी राजेश्वरी से हाड़े हड़मा को प्रेम हो गया और उनमें विवाह संबंध स्थापित हुआ। हाड़े हड़मा के प्रेम संबंध की जानकारी जब दोनों भाईयों को हुई तो उन्होंने समझाने का प्रयास किया कि जिस माता ने हमें शरण दिया है, उसकी पुत्री के साथ ऐसे संबंध रखना उचित नहीं है, परंतु हाड़े हड़मा नहीं माने। इससे दोनों भाई खिन्न होकर अलग स्थान पर चले गये।

दंतकथा यह भी है कि हाड़े हड़मा ने अपने बड़े भाई बप्पे हड़मा (बूढ़ादेव) के प्रिय घोड़े को चुरा लिया और उसी घोड़े पर राजेश्वरी को बैठाकर कोकोड़ी, बागडोंगरी लाये थे। आज भी इस कथा की स्मृति में प्रतीकात्मक घोड़ा कोकोड़ी में मौजूद है। वर्तमान में राजटेका माता के पुजारी रामसिंह वड्डे के पुत्र सोपसिंह वड्डे हैं।

नारायणपुर अंचल में कोकोड़ीकरीन की प्रतिष्ठा/महत्ता

क्षेत्र में 32 बहना, 84 पाट, 33 कोटि देवी – देवताओं की परंपरा है। मावली माता की बेटी होने के कारण राजटेका की काफी प्रतिष्ठा है। नारायणपुर अंचल में नवाखाई का पर्व सर्वप्रथम कोकोड़ी में माता की देवगुड़ी में संपन्न होता है। राजटेका माता द्वारा नवान्न का भोग ग्रहण करने के पश्चात ही अन्य देवी – देवता नया खाते हैं। माता क्षेत्र में प्रतिष्ठित देवी के रूप में पूजित हैं और इनकी अनुमति मिलने के बाद ही नारायणपुर में विश्वप्रसिद्ध मावली मंडई का आयोजन होता है।

इस तीन दिवसीय देवजातरा का प्रारंभ विभिन्न क्षेत्र, परगना एवं गांवों के देवी देवताओं के आगमन से होता है। विभिन्न क्षेत्रों से लोग अपने पेनबाना, आंगादेव, लाट, डोली एवं विग्रह के साथ जातरा स्थल में उपस्थित होते हैं।

दूसरे दिन देवी देवता लोगों को दर्शन देकर आशीर्वाद देते हैं। माता के सेवक विग्रह के साथ घर-घर जाते हैं एवं रचन खेलते हैं। रचन खेलने के रस्म में हल्दी, पानी का घोल, तेल, चावल, पुष्प, लाली का अर्पण देव विग्रहों में किया जाता है एवं गांव के प्रत्येक घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी वर्ष भर के लिए देवी देवता अपने ऊपर लेते हैं।

तीसरे दिन समापन अवसर पर देवी देवताओं के खेलने के बाद होम आहार देकर सेवा अर्जी के बाद विदाई दी जाती है। आदिम संस्कृति के इस पर्व को सदियों से आदिवासी हर्षोल्लास से मनाकर देवताओं से सुख, शांति एवं समृद्धि की कामना करते हैं।

वा़र्षिक देवजातरा का प्रारंभ प्रतिवर्ष 6 फरवरी को आरंभ होता । जातरा का प्रमुख कार्यक्रम दूसरे दिन को एवं तृतीय दिवस देवी देवताओं की विदाई के साथ देवजातरा का समापन किया जाता है। इस वर्ष कोकोड़ी जतरा में 49 गांवों के देवी देवता शामिल हुये।

विश्वप्रसिद्ध मावली मेला के एक सप्ताह पूर्व आयोजित वार्षिक देवजातरा में परगना मांझी सुधवाराम मण्डावी, पेन चालकी सोमारू भोयर, संतुराम पोटाई, जगन्नाथ यादव, रायसिंह पोटाई, महेश्वर पात्र, सनउराम पट्टावी, मनीराम करंगा, शोभीराम पट्टावी, रामनाथ वड्डे, नरेश पोटाई, बुधराम पात्र, राजमन उयके, सोहन पोटाई, सोनारू, लच्छेन करंगा एवं कोकोड़ी – बागडोंगरी के ग्रामीणों की सक्रिय भूमिका रही है।

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