LOK ASAR BALOD
डॉ दादूलाल जोशी की यह पुस्तक सतनाम आंदोलन अर्थात् सतनाम पंथ के प्रचार और उससे जुड़ी विशेषताओं पर केंद्रित है।
लेखक डॉ जोशी अत्यंत अनुभवी, चिंतनशील और गंभीर लेखक हैं। गुरु घासीदास जी छत्तीसगढ़ की धरा पर अवतरित महान कांतिकारी संत थे। वे आज के वैश्विक गांव को पहले ही समझ चुके थे और इसीलिए उनका संदेश था-
मनखे-मनखे एक बरोबर । उनके संदेशों को आज का समाज परिपालन कर रहा है। पशु-संरक्षण, गो-सेवा, समानता, जातिवाद की समाप्ति, छुआछूत का अंत जैसे अनेक कार्य आज सामयिक हैं। लेखक ने आज के संदर्भों में संतगुरु घासीदास जी की विश्व चेतना के अनेक मौलिक और प्रयोगधर्मी उदाहरण दिए हैं। आज के भौतिकवादी युग की बुराइयों का हल इस पुस्तक में है। संत गुरु घासीदास जी ने अपनी रावटी में ऐसी विश्व चेतना का उल्लेख किया और जीवन-भर उसका प्रसार करते रहे। उनकी यह चेतना क्षेत्र, प्रांत और देश की सीमाओं में न रहकर विश्व स्तरीय दिखाई देती है। बाबा जी ने जो पाखण्ड पर प्रहार किया था, उस पर सार्थक लेखन इस पुस्तक में हुआ है।
लेखक ने बाबाजी के सात उपदेश और बयालीस रावटियों की सुंदर समीक्षा की है। वे परत-दर-परत इन उपदेशों और रावटियों को आज के संदर्भ और समय के अनुसार प्रस्तुत करते हैं। इस पुस्तक में सोलह आलेख संगृहीत हैं।
सतनाम आंदोलन के अन्य संतों और विद्वानों की भी संदर्भों के साथ चर्चा की गई है। बाबा गुरू बालकदास की तपस्या, ममतामयी मिनीमाता के असीम योगदान, देवदास बंजारे की कला साधना, नरसिंह मंडल जैसे तपस्वी प्रणेता की दूरदृष्टि, जुगुल सतनामी, नन्हे श्याम जोगी, डॉ टुमनलाल और स्व.डेरहूप्रसाद घृतलहरे के सतनाम आंदोलन के विकास में किए गए योगदान को तार्किक ढंग से रेखांकित किया गया है। इसके अलावा विविध विषयों पर भी दृष्टि डाली गई है जिनमें सतनामी समाज के उपनाम अर्थात सरनेम, सतनाम
आंदोलन से संबंधित लिखित साहित्य आदि शामिल हैं। यह पुस्तक संत गुरू घासीदास बाबा के असीम योगदान, उनके संदेशों की सामयिकता, सतनाम आंदोलन के विकास के विविध सोपानों और तथ्यों पर शोधपरक कार्य है।
इससे न केवल सतनामी समाज अपितु समस्त समाज के लोगों को प्रेरणा मिलती है। एक समतामूलक भारत के निर्माण के रास्ते भी खुलते हैं। यह किताब वैभव प्रकाशन एवं अमेज़न पर उपलब्ध है। इसकी कीमत 200₹ है।
