नानक ने भले लोगों को बर्बाद होने का आशीर्वाद क्यों दिया….

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

नानक एक गांव में ठहरे। गांव बड़े भले लोगों का था, बड़े साधुओं का था, बड़े संत-सज्जन पुरुष थे। नानक के शब्द-शब्द को उन्होंने सुना, चरणों का पानी धोकर पीया। नानक को परमात्मा की तरह पूजा। और जब नानक उस गांव से विदा होने लगे, तो वे सब मीलों तक रोते हुए उनके पीछे आए और उन्होंने कहा, हमें कुछ आशीर्वाद दें। तो नानक ने कहा, एक ही मेरा आशीर्वाद है कि तुम उजड़ जाओ।

सदमा लगा। नानक के शिष्य तो बहुत हैरान हुए, कि यह क्या बात कही! इतना भला गांव। लेकिन अब बात हो गई और एकदम पूछना भी ठीक न लगा। सोचेंगे, विचार करेंगे, फिर पूछ लेंगे। फिर दूसरे गांव में पड़ाव हुआ। वह दुष्टों का गांव था। सब उपद्रवी जमीन के वहा इकट्ठे थे। उन्होंने न केवल अपमान किया, तिरस्कार किया, पत्थर फेंके, गालियां दीं, मार-पीट की नौबत खड़ी हो गई; रात रुकने भी न दिया।

जब गांव से नानक चलने लगे, तो वे तो आशीर्वाद मांगने वाले थे ही नहीं। शोरगुल मचाते, गालियां बकते नानक के पीछे गांव के बाहर तक आए थे। गांव के बाहर आकर नानक ने अपनी तरफ से आशीर्वाद दिया कि सदा यहीं आबाद रहो।

तब शिष्यों को मुश्किल हो गया। उन्होंने कहा कि अब तो पूछना ही पड़ेगा। यह तो हद हो गई। कुछ भूल हो गई आपसे। पिछले गांव में भले लोग थे, उनसे कहा, बरबाद हो जाओ ! उजड़ जाओ! और इन गुंडे-बदमाशों को कहा कि सदा आबाद रहो, खुश रहो, सदा बसे रहो !

नानक ने कहा कि भला आदमी उजड़ जाए, तो बंट जाता है। वह जहां भी जाएगा, भलेपन को ले जाएगा। वह फैल जाए सारी दुनिया पर। और ये बुरे आदमी, ये इसी गांव में रहें, कहीं न जाएं। क्योंकि ये जहां जाएंगे, बुराई ले जाएंगे।

लेकिन बंटना बुरे आदमी का स्वभाव ही नहीं होता, अच्छा है यह। वह सिकुड़ता है, यह बड़ी कृपा है। भला आदमी बटता है। बांटना उसका स्वभाव है। दान उसके जीवन की व्यवस्था है। यह सवाल नहीं कि वह कुछ देता है कि नहीं देता है; यह उसके रहने-होने का ढंग है कि वह साझेदारी करता है, वह शेयर करता है।

ये जो तीन हैं, काम, क्रोध, लोभ, ये सिकोड़ देते हैं। और सिकुड़ा हुआ आदमी नरक बन जाता है।

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