(lok asar khairagarh प्रोफेसर के .मुरारी दास की रिपोर्ट)
पिपरिया, मुस्का और आमनेर नदी के संगम तट पर बसा खैरागढ़ शहर को एशिया महाद्वीप का पहला कला और संगीत विश्वविद्यालय होने का श्रेय जाता है. जिला मुख्यालय राजनांदगांव से 45 किलोमीटर दूर इस शहर की स्थापना 18वीं सदी में नागवंशी राजवंश के शासक खड़गराय द्वारा स्थापित किया गया था. अपनी साहित्यिक,सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को संजोए इस शहर की बौद्धिकता की गूंज उस समय देखने सूनने को मिला जब विश्वविद्यालय के सभागार में दूर-दूर से आए विद्वान इस सभागार में न सिर्फ साहित्यकारों की विद्वता गूंज रही थी बल्कि अनेक मत पंथ और धर्म के लोगों की गरिमामयी उपस्थिति सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल भीअनूठी प्रस्तुत कर थी.अवसर था, सदगुरु कबीर के 626 वें जयंती पर आयोजित एक दिवसीय वैविधतापूर्ण सेमिनार का. जिसका संयुक्त रुप से आयोजन किया था शहर की बहु प्रतिष्ठित संस्था प्रगतिशील शैक्षिक मंच और सदगुरु कबीर विचार मंच खैरागढ़ ने.
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों और कबीरपंथी संतो द्वारा सदगुरु कबीर की आरती के साथ हुआ.
कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण नगर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी टीपी साहू ने दिया. तत्पश्चात बोधिसत्व फाऊंडेशन नागपुर महाराष्ट्र द्वारा सदगुरु कबीर पर केंद्रित एकल नाट्य अभिनय का मंचन संजय वंदना जीवने द्वारा प्रस्तुत किया गया. तत्पश्चात सदगुरु कबीर विचार ,दर्शन, साहित्य लोकमान्यता और उनके रहस्यवाद पर वैचारिक सेमिनार प्रारंभ हुआ.


रायपुर के एडवोकेट शाकिर कुरैशी ने कहा- आज पूरी दुनिया में दो अरब मुसलमान निवास करते हैं. हमारे कुरान में अल्लाह के 100 नाम में एक नाम कबीर का भी आता है जिसका अर्थ होता है महान या बड़ा. कबीर पंथ में साहिब बंदगी के अभिवादन का भी अलग महत्व साहिब शब्द फारसी भाषा से होते हुए उर्दू में आया यह मालिक या प्रभु के रूप में सूफी परंपरा में इन शब्दों का प्रयोग होता है, वही बंदगी भी ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति के भाव को दर्शाता है.
भिक्खू धम्मतप ने कहा- बौद्ध एक वैश्विक धर्म है. ढाई हजार साल पूर्व बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था. उन्होंने कहा था- अप्प दीपो भव अर्थात अपने कूल का दीपक स्वयं बनो. यही बात आज से 600 साल पूर्व इसी धरती पर उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए जिस संत का जन्म होता है वो है बोधिसत्व संत कबीर.जिसने कहा कि, मोको कहां ढूंढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में. उसने मन की बात पर भी प्रहार किया इसलिए मन को पवित्र बनाएं, क्योंकि व्यक्ति मरता है, लेकिन उसके विचार जिंदा रहते हैं .उन्हें पूजने के बजाय उनके विचारों को आज सड़क पर लाने की आवश्यकता है.


विजय साहब ने कहा कबीर एक समन्वयवादी संत थे. उनकी साखी इस बात का प्रमाण है. कबीर दुनिया से प्रश्न करते हैं. कहते हैं – भाई रे दी जगदीश कहां से आया कबीर को बाह्य दृष्टि से नहीं बल्कि अंदर की दृष्टि से देखने की आवश्यकता है.
साहित्य समीक्षक डॉ. जय प्रकाश साव ने कहा- कबीर की प्रमाणिकता बार-बार बदलते रहा है. जिस कबीर को आप जानते हैं, वह विश्वविद्यालय से निकलकर आया है, इसलिए कबीर को समझने के लिए आपको 600 वर्ष पूर्व जाने की आवश्यकता है. भक्तिकालीन हमारे अधिकांश संत एवं समाज सुधारक के साथ कवि भी थे.
वीआईपी दीर्घा में बैठे प्रोफेसर के.मुरारी दास ने कहा, गुरुओं और महापुरुषों के देश में कबीर ही एकमात्र सद्गुरु हुए जिनके ज्ञान सबके लिए रहा. उन्होंने सूर और तुलसी की तर्ज पर कभी किसी राम और रहमान की पूजा अर्चना नहीं की. इसलिए लोगों को चाहिए कि, वे कबीर को दास न कहें, बल्कि कबीर को कबीर साहेब के रूप में जाने. और इसी रूप में उल्लेख करें.

इस सेमिनार को जिन अतिथियों और वक्ताओं ने संबोधित किया उनमें अपर कलेक्टर प्रेम कुमार पटेल, अटल बिहारी वाजपेई विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति डॉ. राजन यादव, महंत बासा दास साहेब व डॉ सुनील शर्मा प्रमुख रहे. कबीर पर केंद्रित इस खूबसूरत और ज्ञानवर्धक अकादमीक सेमिनार के आयोजन का संचालन मोटिवेशनल स्पीकर एवं समाजसेवी व आयोजक प्रमुख डॉ. विप्लव साहू ने किया. इस सभागृह में शिक्षा एवं साहित्य जगत के अनेक पूरोधाओं में डॉ.जीवन यदु "राही", डॉ.प्रशांत झा, एडवोकेट तीर्थ चंदेल, एडवोकेट अनुज देवांगन सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारी, समाज सेवी, कबीर अनुयाई, साहित्यकार व मीडिया कर्मी उपस्थित थे.
