ज्योतिष का सार _ अगर झूठ भी न बोलना हो तो तुम कहना, वाह-वाह

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

चीन का एक बहुत बड़ा कथाकार हुआ, स्लम। उसने एक छोटी-सी कहानी लिखी है। उसमें लिखा है कि एक युवक एक ज्योतिषी के पास ज्योतिष सीखता था। उसने अपने गुरु से एक दिन पूछा कि अगर मैं लोगों को सत्य-सत्य कह देता हूं उनकी हाथ की रेखाएं पढ़कर, तो पिटाई की नौबत आ जाती है। झूठ मैं कहना नहीं चाहता। झूठ कहता हूं तो लोग बड़े प्रसन्न होते हैं।

एक घर में बच्चे का जन्म हुआ। लोगों ने मुझे बुलाया। तो मैंने देखकर उनको बताया, झूठ बोला, कि महायशस्वी होगा। सभी मां-बाप को भरोसा होता है; सभी बच्चे प्रतिभाशाली की तरह पैदा होते हैं। सभी मां-बाप को भरोसा होता है कि इसका तो कोई मुकाबला नहीं।

महायशस्वी होगा, बड़ा प्रतिभाशाली है। धन्यभाग हैं तुम्हारे। वे लोग बड़े खुश हुए, उन्होंने काफी भेंट दी, शाल ओढ़ाई, भोजन कराया, सेवा की। मगर मैं झूठ बोला था, तो उससे मेरे मन में चोट पड़ती रही।

दूसरे घर में बच्चा पैदा हुआ, तो मैंने सत्य ही कह दिया कि बाकी तो और कुछ पक्का नहीं है, लेकिन यह एक दिन मरेगा, इतना भर पक्का है। तो मेरी वहां पिटाई हुई। लोगों ने मुझे मारा और कहा कि तुम ज्योतिष तो दूर, तुम्हें शिष्टाचार का भी पता नहीं!
तो उसने अपने गुरु से पूछा कि आप मुझे कुछ रास्ता बताएं। झूठ भी मुझे न बोलना पड़े और पिटाई की नौबत भी न आए। क्योंकि अब यह धंधा मैंने स्वीकार कर लिया है ज्योतिष का।

तो उसके गुरु ने कहा, अगर ऐसा अवसर आ जाए तो मैं तुम्हें अपना सार बता देता हूं जीवनभर का, जो मैं करता हूं। अगर झूठ भी न बोलना हो और पिटना भी न हो, तो तुम कहना, वाह-वाह, क्या बच्चा है! ही-ही-ही। तुम कुछ वक्तव्य मत देना, तो तुम झूठ बोलने से भी बचोगे और पिटाई भी नहीं होगी।

सभी होशियार ज्योतिषी आपको देखकर यही करते हैं।

जीवेषणा की तरफ अगर थोड़ी-सी भी ध्यान की प्रक्रिया लौटे, थोड़ा-सा आपका होश बढ़े, तो दूसरा सवाल साफ ही हो जाएगा कि यह जीवन कहीं नहीं ले जा रहा है सिवाय मौत के। यह कहीं नहीं जा रहा है सिवाय मौत के। जैसे सभी नदियां सागर में जा रही हैं, सभी जीवन मौत में जा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *