(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
एक घर एक सज्जन मेहमान थे। दो बच्चे सीढ़ियों पर बैठकर बड़ा झगड़ा कर रहे थे। तो उस ने पूछा, मामला क्या है? जब मारपीट पर नौबत आ गयी तो मैं उठा और बाहर गया, उसने कहा, रुको, बात क्या है? अभी तो भले—चंगे बैठे खेल रहे थे। उन्होंने कहा कि इसने मेरी कार ले ली। उसने कहा, कहां की कार? तो उन्होंने कहा, आप समझे नहीं, आपको खेल का पता ही नहीं है। उसने कहा कि खेल मुझे समझाओ। तो उन्होंने कहा, बात यह है कि रास्ते से जो कारें गुजरती हैं, जो पहले देख ले वह उसकी। अभी एक काली कार गुजरी, वह मैंने पहले देखी और यह कहता है कि मेरी! इससे झगड़ा हो गया है।
अब सड़क से कारें गुजर रही हैं और दो बच्चे लड़ रहे हैं कि किसकी और बंटवारा कर रहे हैं। कार वालों को पता ही नहीं है! कि यहां मुकदमे की नौबत आ गयी, मारपीट की हालत हुई जा रही है।
विचार भी ऐसे ही हैं। तुम्हारे मन के रास्ते से गुजरते हैं इसलिए तुम्हारे हैं, ऐसा मत मान लेना। तुम्हारा कौन सा विचार है? जैन—घर में पैदा हो गए, मां—बाप ने कहा तुम जैन हो—एक कार गुजरी। तुमने पकड़ी, कि मेरी। मुसलमान—घर में रख दिए गए होते तो मुसलमान हो जाते। हिंदू—घर में रख दिए गए होते तो हिंदू हो जाते। संयोग की बात थी कि तुम रास्ते के किनारे खड़े थे और कार गुजरी। यह संयोग था कि तुम जैन—घर में पैदा हुए कि हिंदू—घर में पैदा हुए। यह संयोगमात्र है, इससे न तुम हिंदू होते हो, न जैन होते हो। मगर हो गए। तुमने पकड़ ली बात।
किसी ने समझा दिया ब्राह्मण हो, तिलक—टीका लगा दिया, जनेऊ पहना दिया। कैसे —कैसे बुद्धू बनाने के रास्ते हैं। और सरलता से तुम बुद्धू बन गए। और तुमने मान लिया कि बस मैं ब्राह्मण हूं। और तुम शूद्र को हिकारत की नजर से देखने लगे। और अपने पीछे तुमने अकड़ पाल ली।
और फिर ऐसा ही तुमने गीता पढ़ी, और कुरान पढ़ी और बाइबिल पढ़ी और विचारों की श्रृंखला तुम्हारे भीतर चलने लगी, तैरने लगी, रास्ते पर ट्रैफिक बढ़ता चला गया और तुम सारे ट्रैफिक के मालिक हो गए। तुम्हारा इसमें क्या है? तुम्हारा इसमें कोई भी विचार नहीं है। और फिर तुमने यह भी देखा, विचार कितने जल्दी बदल जाते हैं।
विचार बड़े अवसरवादी हैं, विचार बड़े राजनीतिज्ञ हैं। पार्टी बदलने में देर नहीं लगती। जब जैसा मौका हो।
