अज्ञान सब वरदानों को अभिशाप कर लेता है

(संकलन एवं प्रस्तुति maxim anand)

बुद्ध जैसे व्यक्ति ने भी संन्यास लिया और जब बारह वर्ष के बाद ज्ञान के सूर्य को जगाकर घर वापस लौटे, तब भी बाप को दिखाई नहीं पड़ा कि बेटे का जीवन रूपांतरित हुआ है। बाप बारह साल बाद आए बुद्ध को…उन्हें दिखाई न पड़ा कि लाखों लोगों की जिंदगी में बुद्ध से रोशनी पहुंची है। दस हजार भिक्षु बुद्ध के साथ पीछे खड़े हैं। उनके पीत वस्त्रों में उनके भीतर का प्रकाश झलकता है। लेकिन बाप ने गांव के दरवाजे पर यही कहा कि मैं तुझे अभी भी माफ कर सकता हूं; बाप हूं। वापस लौट आ। यह भूल छोड़। बहुत हो चुका। यह नासमझी बंद कर। मुझ बूढ़े को इस बुढ़ापे में, मृत्यु के निकट होने में दुख मत दे! बाप को नहीं दिखाई पड़ सका कि किससे वे कह रहे हैं।

बुद्ध हंसने लगे। बुद्ध ने कहा, गौर से तो देखें! बारह वर्ष पहले जो घर से गया था, वही वापस नहीं लौटा है। वह तो कभी का जा चुका। यह कोई और है। जरा गौर से तो देखें!

लेकिन बाप ने कहा, तू मुझे सिखाएगा? मैं तुझे जानता नहीं? मेरा खून बहता है तेरी नसों में। मैं तुझे जितना जानता हूं, उतना कौन तुझे जान सकता है?

बुद्ध ने कहा, आप अपने को ही जान लें तो काफी है। मुझे जानने के भ्रम में मत पड़ें। क्योंकि दूसरे को जानने के भ्रम में वही पड़ता है, जो स्वयं को नहीं जानता है।

बाप की तो आग भड़क गई। क्रोध भारी हो गया। और कहा, यह मैंने सोचा भी न था कि तू अपने ही बाप से इस तरह की बातें बोलेगा!

बुद्ध जैसा बेटा भी घर में हो, तो बाप के लिए अभिशाप मालूम पड़ता है! अज्ञान सब वरदानों को अभिशाप कर लेता है, सब फूलों को कांटा बना लेता है। ज्ञान कांटों को भी फूल बना लेता है। दृष्टि बदली कि सब बदल जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *