(संकलन एवं प्रस्तुति maxim anand)
मिलन के पहले विरह की अग्नि तो होगी। और चूंकि मिलन की शर्त यही है कि तो तुम मिटो तो परमात्मा हो जाए। जब तक तुम हो, परमात्मा नहीं है। और जब परमात्मा है तब तुम नहीं हो। कबीर कहते हैं: हेरत—हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराइ। चले थे खोजने, कबीर कहते हैं और खोजते—खोजते खुद खो गए। और जब खुद खो जाते हैं तभी खुदा मिलता है। जब तक खुदा है, तब तक खुदा नहीं है। तो जलन तो बड़ी है। अपने ही हाथों से अपने को चिता पर चढ़ाने जैसी है।
साधारण प्रेम की जलन तो तुम ने जानी है? किसी से तुम्हारा प्रेम हो गया, तो मिलने की कैसी आतुरता होती है! चौबीस घड़ी सोते जागते एक ही धुन सवार रहती है; एक ही स्वर भीतर बजता रहता है इकतारे की तरह—मिलना है, मिलना है! एक ही छवि आंखों में समाई रहती है। एक ही पुकार उठती रहती है। हजार कामों में उलझे रहो—बाजार में, दुकान में, घर में; मगर रह—रहकर कोई हूक उठती रहती है।
साधारण प्रेम में ऐसा होता है तो भक्ति की तो तुम थोड़ी कल्पना करो! करोड़ों—करोड़ों गुनी गहनता! और अंतर केवल मात्रा का ही नहीं है, गुण का भी है। क्योंकि यह तो क्षणभंगुर है जो इतना सताता है। जिससे आज प्रेम है, हो सकता है कल समाप्त हो जाए। जिसकी आज याद भुलाए नहीं भूलती, कल बुलाए न आए, यह भी हो सकता है। आज जिसे चाहो तो नहीं भूल सकते, कल जिसे चाहो तो याद न कर पाओगे, यह भी हो सकता है। यह तो क्षणभंगुर है, यह तो पानी का बबूला है। यह इतना जला देता है। यह पानी का बबूला ऐसे फफोले उठा देता है आत्मा में, तो जब शाश्वत से प्रेम जगता है तो स्वभावतः सारी आत्मा दग्ध होने लगती है।
संत दरिया ठीक कहते हैं। वह एक और पहलू हुआ सत्य का कि उस के मार्ग पर जलना ही जलना है। और चूंकि उपनिषद कहते हैं, उस के मार्ग पर चलना खड्ग की धार पर चलना है और दरिया कहते हैं उस के मार्ग पर चलना अग्नि लगे जंगल से गुजरना है—इसीलिए मैं तुम से कहता हूं: नाचते जाना, गाते जाना! नहीं तो रास्ता काट न पाओगे। जब तलवार पर ही चलना है तो मुस्कुरा कर चलना है। मुस्कुराहट ढाल बन जाएगी। नाच सको तो तलवार की धार मर जाएगी। गीत गा सको तो आग भी शीतल हो जाएगी। चूंकि उपनिषद सही, चूंकि दरिया सही, इसलिए मैं सही। जाओ नाचते, गाते, गीत गुनगुनाते। यह तीसरा पहलू है।
जब उस परमात्मा से मिलने चले हैं तो उदास—उदास क्या? साधारण प्रेमी से मिलने जाते हो तो कैसे सज कर जाते हो! देखा किसी स्त्री को अपने प्रेमी से मिलने जाते वक्त। कितनी सजती है, कितनी संवरती है! कैसी अपने का आनंद विभोर, मस्त मगन करती है! कैसे ओठ प्रेम के वचन कहने को तड़फड़ाते हैं! कैसे उस का हृदय तलाबल रस से भर, उंडेलने को आतुर! कैसे उस का रोआं—रोआं नाचता है! और तुम परमात्मा से मिलने जाओगे, और उदास—उदास?
उदास—उदास यह रास्ता तय नहीं हो सकता। रास्ता वैसे ही कठिन है; तुम्हारी उदासी और मुश्किल खड़ी कर देगी। रास्ता वैसे ही दुर्गम है। तुम उदास चले तो पहाड़ सिर पर लेकर चले। तलवार की धार पर चले और पहाड़ सिर लेकर चले। बचना मुश्किल हो जाएगा। जब तलवार की धार पर ही चलना है तो पैरों में घुंघरू बांधो।
