बुद्धत्‍व चेतना की परमदशा है। इसका व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। जैसे जिनत्व…

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिमम आनंद)

बुद्धत्‍व चेतना की परमदशा का नाम है। इसका व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। जैसे जिनत्व चेतना की अंतिम दशा का नाम है, इससे व्यक्ति का कोई संबंध नहीं है। जिन अवस्था है। वैसे ही बुद्ध अवस्था है।

गौतम बुद्ध हुए, कोई गौतम पर ही बुद्धत्व समाप्त नहीं हो गया। गौतम के पहले और बहुत बुद्ध हुए हैं। खुद गौतम बुद्ध ने उनका उल्लेख किया है। और गौतम बुद्ध के बाद बहुत बुद्ध हुए।

इस छोटी सी झेन कथा से समझें
एक दिन सदगुरु पेन ची ने आश्रम में बुहारी दे रहे भिक्षु से पूछा, भिक्षु, क्या कर रहे हो? भिक्षु बोला, जमीन साफ कर रहा हूं भंते। सदगुरु ने तब एक बहुत ही अदभुत बात पूछी झेन फकीर इस तरह की बातें पूछते भी हैं, पूछा यह बुहारी देना तुम बुद्ध के पूर्व कर रहे हो, या बुद्ध के पश्चात?

अब यह भी कोई बात है! बुद्ध को हुए हजारों साल हो गए, अब यह सदगुरु जो स्वयं बुद्धत्व को उपलब्ध है, यह बुहारी देते इस भिक्षु से पूछता है कि यह बुहारी देना तुम बुद्ध के पूर्व कर रहे हो, या बुद्ध के पश्चात? प्रश्न पागलपन का लगता है। मगर परमहंसों ने कई बार पागलपन की बातें पूछी हैं, उनमें बड़ा अर्थ है।

जीसस से किसी ने पूछा है कि आप अब्राहम के संबंध में क्या कहते हैं?

अब्राहम यहूदियों का परमपिता, वह पहला पैगंबर यहूदियों का। इस बात की बहुत संभावना है कि अब्राहम राम का ही दूसरा नाम है अब राम का। अब सिर्फ आदर सूचक है, जैसे हम श्रीराम कहते हैं, ऐसे अब राम; अब राम से अब्राहम बना, इस बात की बहुत संभावना है। लेकिन अब्राहम पहला प्रोफेट है, पहला पैगंबर, पहला तीर्थंकर है यहूदियों का, मुसलमानों का, ईसाइयों का। उससे तीनों धर्म पैदा हुए।

तो किसी ने जीसस से पूछा कि आप अब्राहम के संबंध में क्या कहते हैं? तो जीसस ने कहा, मैं अब्राहम के भी पहले हूं। हो गयी बात पागलपन की! जीसस कहा हजारों साल बाद हुए हैं, लेकिन कहते हैं, मैं अब्राहम के भी पहले हूं।

इस झेन सदगुरु पेन ची ने इस भिक्षु से पूछा, यह बुहारी देना तुम बुद्ध के पूर्व कर रहे हो या बुद्ध के पश्चात? पर भिक्षु ने जो उत्तर दिया, वह गुरु के प्रश्न से भी गजब का है! भिक्षु ने कहा, दोनों ही बातें हैं, बुद्ध के पूर्व भी और बुद्ध के पश्चात भी। बोथ, बिफोर एंड आफ्टर। गुरु हंसने लगा। उसने पीठ थपथपायी।

लेकिन हमारी नजरें अक्सर सीमा पर रुक जाती हैं। हमने देखा गौतम बुद्ध हुआ, दीया जला, हम दीए को पकड़कर बैठ गए ज्योति को देखो, ज्योति तो सदा से है। इस दीए में उतरी, और दीयों में उतरती रही है, और दीयों में उतरती रहेगी। तो जीसस ठीक कहते हैं कि अब्राहम के पहले भी मैं हूं। यह मेरी जो ज्योति है, यह कोई ऐतिहासिक घटना नहीं है, यह तो शाश्वत है, यह सनातन है, अब्राहम बाद में हुआ, इस ज्योति के बाद हुआ, इस ज्योति के कारण ही हुआ, जिस ज्योति के कारण मैं हुआ हूं। यह परम ज्योति है। यह परम ज्योति शाश्वत है। न इसका कोई आदि है, न इसका कोई अंत है।
बुद्ध कहते हैं, अब मेरे पास कोई आता है, तो वह सोचता है कि उसे कुछ पाना है; और मैं उसके भीतर देखता हूं कि ज्योति जली ही हुई है, जरा नजर भीतर ले जानी है। जरा अपने को ही तलाशना और अपने को ही खोजना और टटोलना है।

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