( खाम सिंह मंडावी का लोक असर समाचार के लिए खास रपट)
इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री सुल्तान जाहरीर तथा उपराष्ट्रपति मोहम्मद हत्ता को अपनी जान की बाजी लगाकर सुरक्षित इंडोनेशिया से भारत लाने वाले पायलट कैप्टन उदयभान सिंह की स्मृति में 9 अगस्त को होगा सम्मान उनके परिवार के सदस्यों का। बिलासपुर में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री के हाथों।
इस मिशन की सफलता ने जवाहर लाल नेहरू को नये स्वतंत्र हो रहे एशियाई और अफ्रीकी देशों के स्वाभाविक नेता के रूप में स्थापित कर दिया था। उस समय तक “विश्व गुरू” जैसे शब्द तो प्रचलित नहीं थे, किन्तु नेहरू के प्रयास भारत को उसी दिशा में ले जा रहे थे। ध्यान देने लायक बात है कि इस मिशन में नेहरू को भारतीय वायुसेना या आर्मी की मदद नहीं मिली थी।
मिशन था : डच सेना की गोलीबारी के फंसे इंडोनेशियाई प्रधानमंत्री और प्रमुख नेताओं को उनके देश से सुरक्षित निकालकर दिल्ली लाना।
उनके इस मिशन को पूरा करने के लिए अपनी जान हथेली पर लेकर उड़ने वाले केवल तीन गैर-सैनिक लेकिन जांबाज़ पायलट उपलब्ध थे।
उन तीन में से एक थे देश के पहले आदिवासी पायलट – छत्तीसगढ़ के कैप्टन उदयभान सिंह।
जुलाई 1947 : देश आज़ादी के दरवाजे पर खड़ा था। अंतरिम सरकार कामकाज संभाल चुकी थी। नेहरू इस सरकार में प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री थे।
नेहरू के बुलावे पर बिजयानंद (बीजू) पटनायक दिल्ली पंहुचते हैं और दोनों की एक बैठक होती है। एक खुफिया मिशन को अंजाम देना था। नेहरू की ब्रीफिंग स्पष्ट थी।
17 अगस्त 1945 को इंडोनेशिया में एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा हो गयी थी। वहां पिछले तीन सौ सालों से डच (नीदरलैंड के निवासियों के लिए यह शब्द प्रयुक्त होता है) कब्ज़ा जमाए बैठे थे। दूसरे विश्वयुद्ध में जब जापानियों की सेना आ धमकी तो भागने वालों में डच सबसे आगे थे। तीन साल के बाद जैसे ही जापानी कब्ज़े से छुटकारा मिला इंडोनेशिया में राष्ट्रपति सुकर्णो के नेतृत्व में एक सरकार अस्तित्व में आ गयी। डच इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाए।
इंडोनेशिया में एक बार फिर कब्ज़ा करने की नीयत से डच सेना ने बड़े स्तर पर फौजी हमले शुरू कर दिये। सुकर्णो की सेना के पास हथियार और गोला बारूद नहीं के बराबर थे और डच के लिए फिर से काबिज़ होना बहुत आसान दिख रहा था।
नेहरू इंडोनेशिया की इस स्थिति से खुश नहीं थे। ब्रिटेन से ताजी ताजी स्वतंत्रता पाये भारत को इंडोनेशिया के लिए सहानुभूति होना स्वाभाविक था। लेकिन नेहरू का इस मामले में स्टैन्ड का आधार केवल भावनात्मक नहीं था।
नेहरू ने तब तक तय कर लिया था कि विश्व युद्ध के बाद दुनिया में शुरू हो चुके शीत-युद्ध में हो रही बाहुबलियों की खींचतान से न केवल भारत को बल्कि तीसरी दुनिया के बाकी गरीब देशों को भी बचाना है। इसलिए नेहरू इन देशों को संगठित करने का प्रयास शुरू कर चुके थे।
जुलाई 1947 में नेहरू ने दिल्ली में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया था : एशियन रिलेशन्स काॅन्फ्रेंस। (गुट निरपेक्ष आंदोलन खड़ा करने की दिशा में नेहरू का यह पहला सार्वजनिक कदम था)। इसमें इंडोनेशिया के नेता भी आमंत्रित थे। वे तो नहीं आ सके लेकिन राष्ट्रपति सुकर्णो का संदेश नेहरू तक पंहुच गया।
सुकर्णो चाहते थे कि डच सेनाओं के कब्ज़े में आने से पहले उनके प्रधानमंत्री और अन्य लोग किसी तरह देश के बाहर निकल जाएं और बाहरी दुनिया को डच अत्याचारों की जानकारी दे कर समर्थन जुटा सकें। इंडोनेशिया की मदद करना और उसे स्वतंत्र रखना भारत के हित में था। इसीलिए नेहरू ने पटनायक को बुलावा भेजा था।
बीजू पटनायक ने कुछ ही समय पहले अपनी एक विमानन कम्पनी स्थापित की थी। नाम था कलिंगा एयरलाइंस और ऑफिस था कलकत्ता में। तब तक बीजू पूर्वी भारत के सबसे तेजी से उभरते हुए उद्योगपति के रूप में स्थापित होने लगे थे। प्रशिक्षित पायलट पटनायक दूसरे विश्वयुद्ध में एयर फोर्स में काम कर चुके थे। वे ही कलिंगा एयरलाइंस के चीफ पायलट थे और कांग्रेस के उभरते हुए नेता भी थे। कलिंगा एयरलाइंस तब तक इंडोनेशिया के लिए दवाईयां आदि पंहुचाने का काम कर चुका था। लोगों को श़क़ था कि इनमें हथियार भी गये थे।
और तभी नेहरू का मिशन सामने आ गया।
दिल्ली से लौटने के बाद पटनायक ने अपनी टीम छोटी रखने का निर्णय लिया और साथ जाने के लिए दो लोगों का चयन किया। पहली थीं पत्नी ज्ञानवती पटनायक। सुकर्णो अपनी नन्ही बेटी को देश से सुरक्षित बाहर निकालना चाहते थे। टीम में महिला की उपस्थिति सबको आश्वस्त करती थी। इसके अलावा मूलतः पंजाब की श्रीमती पटनायक स्वयं एक प्रशिक्षित पायलट भी थीं।
और अपने को-पायलट के रूप में पटनायक ने चुना युवा कैप्टन उदयभान सिंह को। उदयभान सिंह कमर्शियल पायलट बनने वाले देश के पहले आदिवासी युवक थे। उन दिनों देश में इने गिने पायलट उपलब्ध थे। जो थे उनमें भी अधिक संख्या यूरोपियन की थी। इस मिशन में गोपनीयता के साथ साथ दल के सदस्यों का आपस में विश्वास होना बहुत ज़रूरी थी।
छत्तीसगढ़ के मालखरौदा (वर्तमान चांपा-जांजगीर ज़िला) के राजपरिवार में सन् 1915 में जन्मे उदय भान सिंह की पढाई लिखाई रायपुर के राजकुमार काॅलेज में हुई थी। उनके नाम पर काॅलेज में एक हाॅकी की शील्ड भी प्रदान की जाती है। इस प्रतिभाशाली और कुशाग्र छात्र उदयभान को गाईड कर आगे की शिक्षा दिलाने का जिम्मा लिया दो आदिवासी राजाओं ने – सारंगढ़ के राजा नरेशचन्द्र सिंह और उदयभान के मामा कवर्धा के राजा धर्मराज सिंह ने और उन्हें इलाहाबाद भेजा गया। सारंगढ़ और कवर्धा को उन्होंने हमेशा अपना घर माना।
विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान युवा उदयभान ने फ्लाईंग क्लब में विमान उड़ाना सीखा और पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली की इंडियन नेशनल एयरवेज़ कम्पनी में बतौर पायलट नौकरी कर ली। यह कम्पनी राजा नरेशचन्द्र सिंह के मित्र, ब्रिटिश उद्योगपति ग्रांट गोवेन की थी। इन्हीं ग्रांट गोवेन ने BCCI (क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड) तथा क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना भी की थी। उदयभान सिंह का विवाह हुआ छुरा जमींदारी की कन्या हेमकुमारी देवी से। 1947 में बीजू पटनायक ने कलिंगा एयरलाइंस की शुरुआत की तो वे हमउम्र और मित्र पटनायक की कम्पनी आ गये थे।
विमान में जाने के लिये तैयार तीनों पायलटों को खतरों का पूरा असहास था। पटनायक दम्पति अपने एक वर्षीय पुत्र नवीन को और उदयभान सिंह उसी उम्र के शिशु पुत्र निरंजन को पीछे छोड़ कर जा रहे थे। कुछ सप्ताह पहले ही कलिंगा एयरलाइंस का एक विमान सिंगापुर से रेड क्राॅस से मिली दवाईयों को पंहुचाने इंडोनेशिया जा रहा था। लेकिन लैन्ड करने के पहले ही डच विमानों ने उसे मार गिराया था। उसमे ऑस्ट्रेलियन पायलट समेत सभी नौ लोगों की मृत्यु हो गयी थी।
किन्तु यह मिशन देश के लिए था और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के व्यक्तिगत आग्रह पर था।
तीनों ने अपनी जान की परवाह किये बिना कलकत्ता से अमरीकी डगलस C-47B-20 विमान में यात्रा शुरू की। इस विमान को आम बोलचाल की भाषा में डकोटा या DC-3 कहा जाता था। 22 जुलाई 1947 को अपने मिशन पर रवाना हुआ यह विमान मोहनबाड़ी (डिब्रूगढ़ के पास एयरपोर्ट) और सिंगापुर में फ्यूल के लिये रुकने के बाद जावा द्वीप की ओर आगे बढ़ा। उस समय तक दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान लगाये गये सारे रेडार डच सेना के कब्ज़े में नहीं आ पाए थे। दोनों पायलटों ने फिर भी डकोटा को बहुत नीचे – “ट्री-टाॅप हाईट” पर रखा और आगे बढ़ने में सफल रहे। डच सेना की रेडियो चेतावनियों की परवाह किये बिना जब विमान इंडोनेशिया की एयर स्पेस में घुसता ही चला गया तो डच सेनाओं ने भारी गोलाबारी शुरू कर दी। इनसे बचते हुए चालक दल विमान को जकार्ता के पास मगूवो नामक एक कच्ची सी विमान पट्टी पर उतारने में सफल रहा।
इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री सुल्तान जाहरीर तथा उपराष्ट्रपति मोहम्मद हत्ता के साथ इंतज़ार में खड़े दल को तत्काल प्लेन में बिठाया गया और 24 जुलाई को ये लोग सकुशल दिल्ली पंहुचा दिये गये।
कैप्टन उदयभान सिंह इस घटना के बाद एक जांबाज़ पायलट के रूप में सम्मानित हुए। 1953 में आठ प्रमुख निजी विमान कम्पनियों को राष्ट्रीयकृत कर एयर इंडिया कम्पनी का गठन हुआ और उसके बाद कैप्टन उदयभान सिंह ने इंडियन एयरलाइंस में पायलट के रूप में सेवाएं दीं। 1961 में बीजू पटनायक उड़ीसा के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने कैप्टन उदयभान सिंह को कुछ वर्षों के लिये राज्य के चीफ पायलट के रूप में डेपुटेशन पर उड़ीसा बुला लिया। इंडियन एयरलाइंस में वे वरिष्ठतम पायलटों मे से एक हो चुके थे, जब राजीव गांधी ने इसी इंडियन एयरलाइंस में कैप्टन उदयभान सिंह के साथ सह-पायलट के रूप मे अपना करियर शुरू किया। राजीव गांधी उन्हें हमेशा “गुरु जी ” ही संबोधित करते रहे। कैप्टन उदयभान सिंह सेवानिवृत होने के बाद रायपुर में बसे और 1981 में वहीं उनका निधन हुआ। पत्नी श्रीमती हेमकुमारी देवी रायपुर में रहती हैं।
राष्ट्रपति सुकर्णो की नवजात पुत्री को श्रीमती पटनायक ने अपनी गोद में ले कर यात्रा की थी। पटनायक दम्पति की सलाह पर सुकर्णो ने पुत्री का नामकरण किया – मेघावती। आगे चल कर मेघावती सुकर्णोपुत्री के नाम से इंडोनेशिया की राष्ट्रपति बनीं।
इस घटना के बाद नेहरू तीसरी दुनिया या थर्ड वर्ल्ड के और विशेष कर भारत के आसपास के देशों के नेता के रूप में उभरे। जब नेहरू ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पहला विश्व सम्मेलन आयोजित किया तो पाकिस्तान, श्रीलंका और बर्मा के साथ साथ इंडोनेशिया भी भारत के साथ सह-आयोजक बना। इतना ही नहीं, इंडोनेशिया ने इसे जकार्ता के पास बांडुंग में आयोजित भी किया।
बीजू पटनायक को इंडोनेशिया ने अपने देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान “भूमि-पुत्र” तथा मानद नागरिकता दे कर सम्मानित किया। अखिल भारतीय गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष खाम सिंह मांझी जी ने बताया कि इंडोनेशिया के प्रधानमंत्री सुल्तान जाहरीर तथा उपराष्ट्रपति मोहम्मद हत्ता को अपनी जान की बाजी लगाकर सुरक्षित इंडोनेशिया से भारत लाने वाले कैप्टन उदयभान सिंह की स्मृति में 9 अगस्त को उनके परिवार के सदस्य का होगा सम्मान किया जावेगा।