नाचा के पुरोधा कलाकार मदन निषाद और लालू राम के योगदान पर हुई चर्चा

LOK ASAR SAMACHAR BALOD

आदिवासी लोक कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृति विभाग की ओर से विशेष कार्यक्रम ‘संवाद’ का आयोजन हुआ रतनपुर में

विश्वविख्यात नाचा कलाकार मदन निषाद और लालू राम की स्मृति में आदिवासी लोक कला अकादमी छत्तीसगढ़ संस्कृति परिषद संस्कृति विभाग की ओर से विशेष कार्यक्रम ‘संवाद’ का आयोजन मंगलवार की शाम शिवानंद कसौधन वैश्य धर्मशाला रतनपुर में किया गया। इस दौरान अतिथि वक्ताओं ने नाचा विधा के विभिन्न पहलुओं पर बात की वहीं नाचा के दो महान कलाकारों मदन निषाद व लालू राम के योगदान की चर्चा की। वहीं कार्यशाला में मौजूद नाचा कलाकारों का सम्मान किया गया।

अपने स्वागत उद्बोधन में अकादमी के अध्यक्ष नवल शुक्ल आयोजन पर रोशनी डाली। मुख्य वक्ता नंदकिशोर तिवारी ने अपने उद्बोधन में इस इतिहास पर बात करते हुए कहा कि नाचा का उद्गम ‘गम्मत’ से माना जाता है जो मराठा सैनिकों के मनोरंजन का साधन था। गम्मत में स्त्रियों का अभिनय करने वाला ‘नाच्या’ कहलाता था। इसी से इस छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य रूप का नाम नाचा पड़ा। नाचा अपने आप में एक सम्पूर्ण नाट्य विधा है।

वक्ता के तौर पर घनश्याम कौशिक ने बताया कि नाचा में समय के अनुसार बदलाव होते रहे हैं। 100 साल पहले जहां मशाल और परंपरागत वाद्य यंत्रों पर नाचा होता था, वहीं 40-50 के दौर में पेट्रोमैक्स और हारमोनियम का इस्तेमाल शुरू हुआ। उन्होंने बताया कि नाचा के आयोजन के लिए किसी विशेष तिथि की आवश्यकता नहीं होती है। विवाह, मडई, गणेश उत्सव, आदि किसी भी अवसर पर नाचा का आयोजन किया जा सकता है।

वक्ता संतराम गंधर्व ने गायन और अभिनय पर अपनी बात रखते हुए बताया कि प्रहसन एवं व्यंग्य इसके मुख्य स्वर है। इसकी प्रस्तुति बहुत कम साधनों से सम्पन्न की जा सकती है। हजारों लोगों का खुले आसमान के नीचे रात भर मनोरंजन होता है। इसे केवल पुरुष कलाकार ही करते हैं। स्त्री पात्रों का अभिनय भी पुरुष ही करते हैं। वर्तमान में कुछ नाट्य मंडलियों में विशेष रूप से देवार जाति की महिलाओं की भागीदारी देखने को मिलती है।

वक्ता मान सिंह मरकाम ने बताया कि नाचा में परी व जोक्कड़ स्थायी मुख्य पात्र होता है। परी एक सामान्य, भोली-भाली व नेक महिला होती है,जबकि जोक्कड़ विदूषक होता है। इन दोनों के संवाद दर्शकों को हंसी से लोट-पोट कर देते हैं। आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सभी स्तर पर लोकमानस जिस बात को स्वीकार नहीं कर पाता उसका माखौल यह नाचा द्वारा करता है। कुरीतियों, विषमताओं, विद्रूपताओं और आडम्बरों पर तीखी चोट नाचा द्वारा की जाती है। नाचा के अंतर्गत गम्मत का विशेष महत्व होता है। इनमें हास्य व्यंग्य का पुट पाया जाता है।

‘संवाद’ की अध्यक्षता कर रहे महेंद्र सिंह ने नाचा के विविध आयामों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि नया राज्य बनने के बाद से नाचा विधा का उन्नयन हुआ। इसके पहले रंगमंच के पुरोधा स्व. हबीब तनवीर के माध्यम से नाचा विधा अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंची।

इस दौरान काशी राम साहू, अनुज राम गंधर्व, लोक सिंह ध्रुव और गणेश निषाद सहित अन्य लोगों ने भी अपनी बात रखी।

याद किया मदन निषाद व लालू राम का योगदान

इस दौरान वक्ताओं ने नाचा के विख्यात कलाकारों नाचा कलाकार मदन निषाद व लालू राम का योगदान विशेष रूप से रेखांकित किया। आयोजन में वक्ताओं ने बताया कि जिला राजनांदगांव के डोंगरगांव के गांव बिटाल में 2 फरवरी सन 1914 में मदन निषाद का जन्म हुआ। तुलसी सम्मान और दाऊ मंदराजी सम्मान सहित विभिन्न सम्मान प्राप्त मदन निषाद ने गांव-गांव में नाचा की प्रस्तुति दी वहीं नया थियेटर से जुड़ कर उन्होंने अपनी कला को निखारा। ग्राम मुंगेरी नवागांव डोंगरगांव में 19 फरवरी 2005 को उनका स्वर्गवास हुआ। इसी तरह रिंगनी-रवेली नाचा पार्टी के कलाकार लालूराम साहू ने भी नाचा को नई ऊंचाइयां दी। लालूराम ने भी नया थियेटर के साथ जुड़ कर इस विधा को निखारा।

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