LOK ASAR SAMACHAR BALOD
जिला शिक्षा व प्रशिक्षण संस्थान दुर्ग द्वारा 6 से 8 फरवरी 2023 तक नई शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में छत्तीसगढ़ के लोककला व संस्कृति को स्कूली शिक्षा में शामिल कर बच्चों के स्थानीयता व सृजनात्मकता को बढ़ावा देने के लिए जिला बालोद के कला केंद्र में तीन दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर स्कूली शिक्षा में कला शिक्षा के विविध रुपों में स्रोत शिक्षको ने कार्यशाला में प्रतिभागियों को जोड़ा। जिसमे मुखौटा कला में रामकुमार वर्मा प्रधानपाठक ने मुखोटे निर्माण, जापानी कला ओरिगेमी(कागज के कलाकृतियों) पर देवेन्द्र बंछोर ,बन्धेज कला पर लखेश्वर साहू व कठपुतली निर्माण पर युगल देवांगन ने अपनी प्रस्तुति दी।
कठपुतली निर्माण से लेकर कक्षा में पठन गतिविधियों से किस प्रकार जुडे इनका प्रायोगिक प्रदर्शन युगल देवांगन ने किया।
दिवस सत्र के दूसरे भाग में छत्तीसगढ़ के लोकसंस्कृति के विषयों का परिचय स्रोत शिक्षक द्रोणकुमार सार्वा ने प्रशिक्षार्थियों को प्रदान किया। साथ ही इस अवसर पर कला के साधकों से छत्तीसगढ़ के लोककला पर सारगर्भित व्याख्यान भी आयोजित किये गए। जिसमे प्रथम दिवस लोकगायिका रजनी रजक ने छत्तीसगढ़ के लोकगीतों व लोकगाथा पर सारगर्भित प्रस्तुति दी।
दूसरे दिवस पर लोकसंगीत के साथ ही छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक यात्रा पर लोकरँग के संगीतनिर्देशक पुराणिक साहू ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत कर लोकसंगीत के मर्म को अभिव्यक्त किया।
सत्र के तीसरे दिन प्रख्यात शिक्षाविद लोकसाहित्यकार सीताराम साहू श्याम ने लोकसाहित्य और परम्परा विषय पर वाचिक और जीवंत परम्पराओ को जोड़ते हुए संस्कृति के मूल तत्वों को उकेरते हुए इनके संरक्षण पर बल दिया। लोकनाट्य विधा नाचा की परंपरा में प्रदेश का मान बढ़ाने वाले डोमार सिंह कुंवर ने नाचा के चुटीले संवादों व इनके माध्यम से जागरण का संदेश देते हुए प्रशिक्षण में लोकसंस्कृति के संवाहक के रूप में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराई।
प्रशिक्षण के संयोजक डाइट के वी वी मूर्ति ने बताया कि राज्य में नई शिक्षा नीति के परिपालन में इस तरह का अभिनव प्रयोग दुर्ग डाइट द्वारा किया गया है, जिसमें जिले के 45 शिक्षक शामिल रहे। साथ ही आशा व्यक्त की कि बैग लेस डे में इस तरह की गतिविधियों से बच्चों को जोड़कर कक्षा शिक्षण में सीधा लाभ लिया जा सकता है।डाईट की ओर से पेडेगाजी प्रभारी चंद्रवंशी ने उम्मीद व्यक्त की सृजनात्मकता के विकास में ऐसे प्रशिक्षण का लाभ 45 विद्यालयों में सीधे स्रोत के रूप में पहुचेगा। आयोजन में पधारे शिक्षाविद अरुण साहू का मानना है कि विद्यालय में ऐसे परिवेश बनाने से बच्चों के सृजनात्मकता के साथ ही मोबाइल की लत दूर होगी।