LOK ASAR BHOPALPATTANAM
(चेरपल्ली से कविराज सत्यनारायण की रिपोर्ट)
विकासखंड भोपालपटनम से 10 किलो मीटर की दूरी पर स्थित पोषणपल्ली नामक गांव से होते हुए 04किलोमीटर दक्षिण दिशा की ओर गोवर्धन पर्वत पर सकलनारायण गुफा स्थित है।यह सकलनारायण गुफा भोपालपटनम क्षेत्र का सर्वाधिक प्रसिद्ध गुफा माना जाता है। इस वीरान गुफा के भीतर एकांत में भगवान श्री कृष्ण विराजमान हैं।
मन्दिर एवम् मेला स्थल
यहां चिंतावगु नदी के किनारे उत्तर दिशा की ओर भगवान श्री कृष्ण जी का सकलनारायण मंदिर स्थित हैं। यह मंदिर सन 1928 को स्थापित की गई है। पूर्वजों के अनुसार इस गोवर्धन पर्वत और वीरान गुफा की खोज लगभग 1900 ईस्वी में राजाओं द्वारा की गई थी। यहां प्रति वर्ष मेला चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या के तीन दिन पूर्व प्रारंभ होता है और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नवरात्रारंभ गुड़ी पड़वा के दिन समापन होता है। कहा जाता है, कि यह मेला हिंदी वर्ष का अंतिम मेला(पर्व )तथा हिंदी वर्ष की आगमन मेला कहा जाता हैं।
अंचलवासी सुख समृद्धि के लिए करते हैं कामना
प्रति वर्ष हजारों श्रद्धालुजन आकर श्रद्धा भाव से पूजा अर्चना करते हुए बीते वर्ष से विदाई लेकर नए वर्ष के आगमन पर भगवान श्री कृष्ण जी से अंचल के लिए सुख, शांति और समृद्धि की कामनाएं करते हैं। इस विशाल भू- भाग मे फैले भोपालपटनम आंचल को यदि देवी – देवताओं की धरती भी कह सकते हैं। गोवर्धन पर्वत की दर्शन के लिए दर्शनार्थी दूर -दूर से आकर चिंतावगु नदी में स्नान कर गोवर्धन पर्वत पर चढ़ना प्रारंभ करते हैं। यह पर्वत की ऊंचाई लगभग 1000 से 1100 मीटर है। चारों ओर हरे भरे पेड़ पौधों से घिरा होने के साथ ही पगडंडी नुमा रास्ता स्थल को और भी खूबसूरत और आकर्षक बना देता है इसकी दूरी लगभग 04 किलोमीटर की है। यह रास्ता मन को शांत और तरोताजा कर देता है।
रहस्यमयी नजारों के साथ कई किंवदंतियां है प्रचलित
गुफा के प्रवेश द्वार के ऊपरी हिस्सा मे मधु मक्खियां के अनेकों छत्ते है। यदि कोई व्यक्ति अपने मन में गलत धारणा या विचार रखता है तो प्रवेश द्वार के पहुंचने के पूर्व ही मधुमक्खियां उस व्यक्ति पर आक्रमण कर देती हैं। को वास्तव में अद्भुत है। विचित्र बात यह है कि गुफा का द्वार पहले की अपेक्षा अभी थोड़ा घट गई हैं। हजारों लोगों की भीड़ रहने के कारण वीरान गुफा के भीतर विराजमान भगवान श्री कृष्ण जी एवम् विराजित अन्य भगवान भी कुमकुम, हल्दी, अक्षत से सने हुए एवम् रंग -बिरंगेफूलों की मालाओं से ढकी विभिन्न आकृतियों वाली आकर्षक मूर्तियां भी स्थापित है। श्रद्धालु सच्चे मन से जो भी मन्नत करते हैं उनकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। किवदंतियां है कि उनके द्वार तक पहुंच कर आज तक कोई व्यक्ति निराश नहीं लौटा है। संतान की प्राप्ति के लिए निराश दम्पत्ति घुटने टेक कर अपना आंचल फैलाती हैं तो आंचल में एक फूल भी गिरे तो संतान की प्राप्ति अवश्य होती हैं। इसे अंचल के लोग अद्भुत चमत्कारिक पर्वत है। इसमें और भी कई ऐसे अद्भुत चमत्कार साक्षात परिलक्षित होती है। इस गुफा के प्रवेश द्वार से बाहर निकलने वाली अंतिम द्वार एकदम अनोखी है, क्योंकि निकलने के पूर्व वह रास्ते को देखकर असमंजस में पड़ जायेगा। क्योंकि निकलने का रास्ता काफी सकरी और टेढ़ी मेढी है। जिसमे पतले से पतला व्यक्ति भी नहीं निकल सकता, किंतु आपको विश्वास हो या न हो उस रास्ते से कितना मोटा व्यक्ति भी क्यों ना हो बाहर निकल जाता हैं। यदि व्यक्ति में गलत विचार, धारणाएं मन में उभरी हो तो वह उस रास्ते के मध्य में ही जाकर फंस जायेगा। यह बात भी सात्विक रूप से सत्य है। यहां गुफा के अंदर 5मित्र से लेकर 15 मीटर तक की 4 सुरंग में मूर्तिया स्थापित है। गुफा के अंदर अद्भुत चमत्कार पानी की बूंदे ऊपर से टपकते रहते हैं।इस पानी की वजह से वहां दल दल नुमा (खाई) बन गई हैं। इस दल -दल में कोई व्यक्ति धंस जाए तो वहां से निकलना मुश्किल होता है। इस दल दल के आगे में नागराज विद्यमान रहते हैं। कभी कभी ही किसी को इसका दर्शन मिल पाता है। यहां पर कलिगमदगु (शीतल जल) यहां का जल बहुत ठंडा एवम् मीठा होता है इस पानी को गंगा जल के रूप में घर लेकर आते हैं, जिसका उपयोग घर शुद्धि के लिए किया जाता है। पूर्व की ओर को ग्वाले और पश्चिम की ओर को कलिंग माडगू कहते है। यहां आदमी अगर फंस जाए तो निकलना मुश्किल होता है, इसलिए यहां सतर्कता से जाना पड़ता है, हमेशा घनघोर अंधेरा रहने के कारण टॉर्च साथ में ले जाना अति आवश्यक है। यहां पानी की बूंदे ऊपर से टपकते रहते हैं, और पहाड़ के ऊपर कई प्रकार की औषधीय पेड़ पौधें है। गुफा में चमगादड़ सहित विभिन्न प्रजाति की पक्षियां ऊपर से मंडराते रहते हैं। उनके बिट को धूप में सुखाया जाता है। पेट दर्द, नजर आदि लगने से बचाने इसे राख बनाकर उपयोग किया जाता है, जिससे ठीक होने के प्रमाण भी ग्रामीण देते हैं। कई प्रकार के पेड़ पौधें है जो ओषधि के लिए काम आता है। पहाड़ में कई प्रकार के फलदार पेड़ पौधें पाए जाते हैं इसे घर लेकर आना वर्जित है हां वही पर खाकर सकते है। धीरे धीरे औषधी युक्त पौधे खत्म होते जा रहे हैं, जंगल और पहाड़ में आग लगने के कारण।
चिंतावगू नदी के किनारे है स्थित
गोवर्धन पर्वत से भगवान श्री कृष्ण जी के दर्शन कर वापस आते समय 2 किलोमीटर पर रास्ते में एक छोटा सा प्राकृतिक झरना है। यह झरना, सौंदर्य का प्रतीक है, जिसे बोग्तुम जलप्रपात के रूप में जाना जाता हैं। जिसमे हमेशा पानी भरा रहता है। यहां का पानी बहुत ठंडा एवम मीठा होता है थोड़ी सी पानी से ही मन की तृप्ति हो जाती हैं। इस पानी की तुलना में फ्रीज का पानी भी व्यर्थ है। इसी स्थान पर काका परिवार की ओर से भोजन (स्वल्प आहार)की व्यवस्था की जाती हैं। पूर्व में कतई न थी। कहा जाता हैं कि उन्होंने भगवान श्री कृष्ण जी से कुछ मन्नते की थी, जिसके पूर्ण होने के कारण यहां प्रतिवर्ष आने वाले भक्त गणों की भूख, प्यास बुझा कर तृप्ति प्रदान करते है एवम् लोगों से दुआएं प्राप्त करते हैं। प्यासे को पानी भूखे को भोजन की तृप्ति यहां हो जाती हैं ,इससे बड़ी आत्मसंतुष्टि और क्या हो सकती हैं। गोवर्धन पर्वत से उतर कर वापस चिंतावागु नदी के तट पर स्थित सकलनारायण मंदिर में सभी भक्तगण उपस्थित होकर सभी भगवानों की पूजा अर्चना कर मेले का आनंद अनुभूति प्राप्त करते हैं। इस त्यौहार को बड़े हर्ष के और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां का यह सुप्रसिद्ध मेला है। मेले के समय मंदिर के आस पास काफी भीड़ रहती है।
रात में देवी देवताओं के नृत्य
एक बड़े से मैदान में तरह तरह के दुकानों कतार लगी रहती है। यहां मोटर साइकिल, स्कूटर, ट्रेक्टर ,टेक्सी, बैलगाड़ी आदि कई गाड़ियां कतार में खड़ी रहती हैं। भीड़ के कारण चलना कठिन होता है। यहां रात में देवी देवताओं के नृत्य के कारण चारों ओर धूल ही धूल नजर आने लगती हैं। रात में लोक नृत्य में श्री लक्ष्मी देवी नृत्य, सिनेमा, बुर्रा कथा नाटक और मनोरंजन कार्यक्रम प्रस्तुत की जाती हैं। मेले में लगे दुकानों के लिए बिजली व्यवस्था बिजली विभाग द्वारा की जाती हैं। पानी की व्यवस्था के लिए हैंड पंप, ट्रेंकर की व्यवस्था की जाती हैं एवम् प्रकृति की देन दक्षिण की ओर चिंतावगू नदी स्थित है। जो की पश्चिम की ओर कल कल कर बहती रहती हैं। जिससे दर्शनार्थी अपनी बुझाकर आनंद की अनुभूति प्राप्त करते हैं। यहां आए लोगों की सुविधा के लिए “स्वास्थ्य शिविर” स्वास्थ्य विभाग द्वारा लगाया जाता हैं। रातभर लोग आपस में मिलकर हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएं एवम् उपहार भेंट करते है। मेला का आनंद लेने के पश्चात दूसरे दिन भगवान जी की रथ यात्रा प्रारंभ होती हैं। 10 बजे के समापन होने के बाद सभी लोग अपने अपने घर जाकर “गुड़ी पड़वा”का त्यौहार बड़ी धूम धाम एवम् हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। और कई लोग हिंदू नववर्ष आरंभ एवम् चैत्र नवरात्रि प्रारंभ में माई जी की आराधना करते है।
इस वर्ष होने वाले कार्यक्रम
यह मेला इस वर्ष दिनांक 19/03/2023 शनिवार, को मंडपाच्छादन,19 गोवर्धन पर्वत पूजा अर्चना एवम् ध्वजारोहण, 20 को श्री कृष्ण भगवान पूजा अर्चना मंदिर परिसर में, 21 को दोपहर 2 बजे माता राधा एवम् कृष्ण जी की विवाह समारोह एवम् क्षेत्रीय लोक नृत्य एवम् डांसिंग प्रोग्राम (वन विभाग की ओर से), 22/03/2023 को प्रात:7 बजे भगवान की रथयात्रा तथा गुड़ी पड़वा (नवरात्र) प्रारंभ। पूर्वजों के अनुसार यहां का पुजारी यहां पूजा अर्चना के बाद मल्लुर मंगापेटा नरसिंह भगवान के पहाड़ में नरसिंह भगवान की पूजा के लिए यहां की सुरंग से जाते थे। सुरंग की एक छोटी आकृति दिखाई देती है। इस मंदिर का प्रधान पुजारी श्री मट्टी बदरैया जी है। यह मेला 5 दिनों का होता है। यह मेला का संचालन मेला समिति पोषाडपल्ली के द्वार की जाती हैं। भोपालपटनम छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर होने के कारण यहां से जुड़े हुए राज्य महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश के लोग हजारों की संख्या में शामिल होते हैं।
बम्लेश्वरी मंदिर जैसी सुविधा की दरकार
डोंगरगढ़ पहाड़ में स्थित मां बम्लेश्वरी की मंदिर में बिजली की व्यवस्था, एवम् पक्की सड़क जिस तरह शासन के सहयोग से जिसका विकास व्यवस्था की गई हैं। वैसे ही गोवर्धन पर्वत का सकलनारायण गुफा एवम् मंदिर के रास्ते पर कार्य हो।
पर्यटन स्थल बनाने की मांग
कविराज सत्यनारायण समाचार के माध्यम से छत्तीसगढ़ शासन का ध्यान आकर्षण गोवर्धन पर्वत एवम् मंदिर की ओर केंद्रित करना चाहता हूं। यह छत्तीसगढ़ का अंतिम छोर भोपालपटनम क्षेत्र का दर्शनीय स्थल है, किंतु इसका जिक्र अभी तक पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़ दर्शन (पर्यटक) में अंकित नहीं है।