LOKASAR BALOD
वर्तमान भारत में शिक्षा का इतिहास 1 जनवरी 1848 से फूले दंपति द्वारा प्रारंभ होता है, किंतु धमतरी में शिक्षा का इतिहास 20वीं सदी के प्रारंभ में ईसाई मिशनरियों व मुस्लिम जमात द्वारा 1900 और 1908 में होता है. जहां सभी धर्म और जातियों के लोग समान रूप से शिक्षा ग्रहण करते आए हैं और यह क्रम आज भी जारी है. वर्तमान में सियासी पारा इतना गर्म है कि, सांप्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने की साज़िशें चल रही है.
कुछ इस प्रकार के विचार छत्तीसगढ़ भारतीय दलित साहित्य अकादमी के राज्य अध्यक्ष श्री जी. आर.ज्वाला ने कार्यक्रम को संचालित करते हुए व्यक्त किया . अवसर था धमतरी के गोंडवाना भवन में आयोजित शिक्षक स्वाभिमान दिवस का जिसका आयोजन स्वयं ज्वाला जी ने किया था .
इस राज्य आयोजन के मुख्य अतिथि थे प्रोफेसर केoमुरारी दास. अध्यक्षता वाल्मीकि समाज की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्रीमती सुशीला वाल्मीकि ने की. वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में आर.के.सोनी,डॉ जगन्नाथ बघेल और लोचन भारद्वाज उपस्थित थे.
कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा महात्मा ज्योतिबा राव फुले और डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के तस्वीर पर माल्यार्पण से हुआ तत्पश्चात डॉ रमेश सोनी, बंसी कश्यप,वीणा वाल्मीकि और संपत कलिहारी ने काव्य पाठ किया.
इस अवसर पर प्रदेश के प्रतिभावान शिक्षकों को राज्य सम्मान से अलंकृत करने के पश्चात अपने उद्बोधन में प्रोफेसर के मुरारी दास ने कहा- शिक्षा की बात तो हम सब करते हैं पर शिक्षा के नाम पर हमें परंपराबादी और गुलाम बनाने वाली शिक्षा ही स्कूल और कॉलेज में प्रदान की जा रही है यह विज्ञान वादी, और तरक वादी न होकर परंपरा बादी अधिक है जबकि हमें सामाजिक परिवर्तन वादी शिक्षा की महती आवश्यकता है .यह परिवर्तन हमें सामाजिक परिवर्तन के महापुरुषों के विचार और साहित्य से संभव हो सकता है .
इस अवसर पर दास जी के 64 वें वर्षगांठ पर केक काटा गया जहां उपस्थित लोगों ने उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं दी .
आयोजन में प्रेम साइमन ,प्रदीप साहू खेमा रजक, गोकुल रजक, मुकेश जैन, कल्याणी साहू अश्वनी कश्यप, व शिवराम मरकाम के अतिरिक्त अनेक समाज प्रमुख और सोशल मीडिया के लोग उपस्थित थे.
कार्यक्रम का सह संचालन संपत कलिहारी ने किया.