संकलन एवम् प्रस्तुति/ मक्सिम आनन्द
मैंने सुना है, एक सम्राट ने अपनी सुरक्षा के लिये एक महल बनवाया था। उसने ऐसा इंतजाम किया था कि महल के भीतर कोई घुस न सके। उसने महल के सारे द्वार-दरवाजे बंद करवा दिये थे। सिर्फ एक ही दरवाजा महल में रहने दिया था* और दरवाजे पर हजार नंगी तलवारों का पहरा बैठा दिया था। एक छोटा छेद भी नहीं था मकान में। महल के सारे द्वार-दरवाजे बंद करवाकर वह बहुत निश्चिंत हो गया था। अब किसी खिड़की से, द्वार से, दरवाजे से; किसी डाकू के, किसी हत्यारे के, किसी दुश्मन के आने की कोई संभावना नहीं रह गई थी। पड़ोस के राजा ने जब यह सब सुना, तो वह उसके महल को देखने आया पड़ोस का राजा भी उस महल को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ…।
आदमी ऐसा पागल है, कि बंद दरवाजों को देखकर बहुत प्रसन्न होता है। क्योंकि बंद दरवाजों को वह समझता है सुरक्षा, सिक्योरिटी,- सुविधा।
उस राजा ने भी महल देखकर कहा, ‘‘हम भी एक ऐसा महल बनायेंगे। यह महल तो बहुत सुरक्षित है। इस महल में तो निश्चिंत रहा जा सकता है। जब पड़ोस का राजा विदा हो रहा था और महल की प्रशंसा कर रहा था, तब सड़क पर बैठा हुआ एक बूढ़ा भिखारी प्रशंसा सुनकर जोर से हंसने लगा। भिखारी को हंसता देख महल के सम्राट ने पूछा, ‘तू हंसता क्यों है ‘ कोई भूल तुझे दिखायी पड़ती है?
भिखारी ने कहा, ”एक भूल रह गयी है, महाराज! जब आप यह मकान तैयार करवाते थे, तभी मुझे लगता था कि एक भूल रह गयी है। ”
सम्राट ने कहा, ”कौन-सी भूल?’ उस भिखारी ने कहा, ”एक दरवाजा आपने रखा है, यही भूल रह गयी है। यह दरवाजा और बंद कर लें, और भीतर हो जायें, तो फिर आप बिलकुल सुरक्षित हो जायेंगे। फिर कोई भी किसी भी हालत में भीतर नहीं पहुंच सकेगा।’
सम्राट ने कहा, ”पागल, फिर तो यह मकान कब्र हो जायेगा। अगर मैं एक दरवाजा और बंद कर लूं तो मैं मर जाऊंगा भीतर। फिर तो यह महल मेरी मौत हो जायेगा। ”
(ओशो साहित्य से)
