संकलन एवम् प्रस्तुति/मक्सिम आनन्द
जीसस तो जेरुसलम के आसपास सीमित रहे। बारह शिष्य थे खास। उनमें से भी एक ने उन्हें तीस रुपए में बेच दिया। और बाकी ग्यारह भी, जब जीसस को सूली लगी, भाग खड़े हुए। जो लोग जीसस के पास सूली के बाद भी मौजूद रहे, जो उनको सूली से उतारने गए…।
तुम चकित होओगे कि यह दुनिया कैसी अदभुत है! तीन स्त्रियां जीसस को उतारने गयी थीं सूली से। इसलिए मेरा स्त्रियों पर भरोसा ज्यादा है पुरुषों के बजाय। मुझसे लोग बार-बार पूछते हैं कि आपने इस आश्रम में स्त्रियों को सर्वाधिक कार्य क्यों दे रखा है? मेरा उन पर ज्यादा भरोसा है। स्त्रियां ज्यादा सरल, ज्यादा सौलभ्य, ज्यादा प्रीतिपूर्ण हैं। पुरुष–चालबाज, बेईमान, होशियार, हर तरह के षडयंत्र करने में कुशल। अपने हिसाब से चलें और दूसरों को भी अपने हिसाब से चलाएं–ऐसी आकांक्षा से भरे हुए। और जब जैसा मौका देखें, अवसरवादी।
ग्यारह ही शिष्य भाग गए। यद्यपि बड़ी मजे की बात है कि जिन तीन स्त्रियों ने जीसस को सूली से उतारा, ईसाई उनमें से तीनों में से किसी की पूजा नहीं करते। पूजा उन ग्यारह की होती है अब भी, जो भाग गए थे। क्या मजा है! अब भी उन ग्यारह भगोड़ों को, जीसस का गणधर, अपॉसल्स कहा जाता है। अब भी वे ही उनके खास शिष्य हैं। मजबूरी थी पीछे आने वाले लोगों को, क्योंकि उन तीन स्त्रियों में एक वेश्या थी मेरी मेग्दालिन। अब वेश्या को कैसे वे आदर दें? इसलिए, मैं तुमसे कहता हूं, यह दुनिया इतनी आसान और नहीं है, जैसा कि तुम सोचते हो। यहां सतियां धोखा दे जाएं और वेश्याएं निष्ठावान सिद्ध हो जाएं यह दुनिया बहुत अदभुत है! यहां ऊपर से ही तय मत कर लेना। जब गर्दन कटने का वक्त था तो मेरी मेग्दालिन पहुंच गयी। उसने फिक्र नहीं की जीसस के साथ खड़े होने में, जीवन की लाश को सूली से उतारने में। और यह वही वेश्या है, जिसने एक दिन जीसस के पैरों पर आकर इत्र की बोतल उंडेल दी थी धोने के लिए पैर। और अपने बालों से पैरों को पोंछा था।
तो जुदास ने जिसने कि तीस रुपए में बाद में जीसस को बेचा, उसने एतराज किया था। यह जरा मजे की बात है! यह घटना सोचने जैसी है। जुदास ने, जिसने कि जीसस को मरवाया, उसने ही एतराज किया था कि आपको शर्म नहीं आती कि वेश्या को पैर छूने देते हैं? और यह भी तो सोचिए कि इसने कितना कीमती इत्र पैरों में उंडेल दिया! यह इतना कीमती इत्र था कि इसको बेच कर पूरे गांव को एक दिन भोजन कराया जा सकता था। गांव में कितनी गरीबी है! बड़ा समाजवादी था, साम्यवादी कहना चाहिए जुदास। तर्क तो उसका सही मालूम पड़ता है। और जीसस से उसने कहा: यह उचित नहीं है। लोग देख रहे हैं, लोग क्या कहेंगे कि आप जैसा वेश्या को पैर छूने दे रहे है! अरे वेश्याओं को तो पत्थर मार-मार कर मार डालना चाहिए।’ तुम भी राजी होओगे कि ठीक तो बात है, इत्र की बोतल उंडेलने से क्या फायदा? अरे पैर तो पानी से भी धोए जा सकते थे। और इत्र को बेच कर गांव के गरीबों के काम आ जाता। सर्वोदय के अनुकूल पड़ती है बात। और फिर जीसस को इतना तो खयाल होना चाहिए कि वेश्या को पैर न छूने दें, क्योंकि वेश्या को पैर छूने देना खुद भी अपवित्र होना है। लेकिन जीसस ने कहा कि जुदास, तू फिक्र न कर। इस इत्र को बेच कर भी उनकी कुछ गरीबी न मिट जाएगी। और फिर, हम इस इत्र के मालिक नहीं है; इस इत्र की मालकिन पैरों में डालना चाहती है, यह उसकी मर्जी है। फिर मैं ज्यादा देर यहां नहीं रहूंगा। मेरे जाने के बाद तुम्हें गरीबों को जो-जो बांटना हो बांट देना। बड़ा प्यार वचन जीसस ने कहा कि जब दूल्हा मौजूद हो, तब तो उत्सव मना लो! “दूल्हा’ शब्द का उपयोग किया है…कि जब दूल्हा मौजूद हो तब तो उत्सव मना लो, तब तो ये बेहूदी बातें और ये तर्क न लाओ! और गरीब तो मेरे मरने के बाद भी रहेंगे, उनकी सेवा पीछे कर लेना। फिर जिसने इतने प्रेम से मेरे चरणों में इत्र डाला है और इतने अहोभाव से अपने बालों से पैरों को पोंछा था, कौन कहता है वह अपवित्र है? पवित्रता-अपवित्रता भाव की बात है। उसकी भावना मैं देख रहा हूं। और मजे की बात यह है कि जुदास ने तीस रुपए में बेच दिया जीसस को सिर्फ तीस रुपए में!
दुश्मनों से केवल तीस रुपए की रिश्वत मिली थी और जीसस को पकड़वा दिया। और वे तीस रुपये भी गरीबों में बांटे नहीं! कम से कम वे तीस रुपए तो गरीबों में बांट देता, कि चलो कोई बात नहीं, तीस रुपए में एक दिन का कम से कम गांव भर का भोजन तो हो जाएगा। उन दिनों हो भी जाता, तीस रुपए, चांदी के शुद्ध सिक्के थे। वे तीस रुपए तो जेब में डाल लिए। और जो स्त्री जीसस के पास खड़ी रही आखिरी क्षण तक, वह यही वेश्या थी यही मेग्दालिन थी। मगर ईसाइयों ने मेग्दालिन को कोई प्रतिष्ठा नहीं दी। वेश्या को कैसे प्रतिष्ठा दें! इसलिए मैं कहता हूं: ईसाई कोई ईसा के दोस्त नहीं, दुश्मन हैं। दूसरी स्त्री इसी मेग्दालिनी की बहन थी। और तीसरी स्त्री थी जीसस की मां। ये तीन स्त्रियों ने जीसस को उतारा था। चलो छोड़ दो मेग्दालिन को और उसकी बहन को, क्योंकि उनके चरित्र का कुछ ठिकाना न था। लेकिन मेरी के चरित्र का तो ईसाइयों को ठिकाना है। लेकिन भीतर से उनको शक है। यूं ऊपर से तो वे कहते हैं कि जीसस का कुंआरा जन्म हुआ, लेकिन ये ऊपर-ऊपर की बातें हैं, भीतर-भीतर उनके भी सरकता है कि कुंआरे में जन्म हो कैसे जाएगा? कहीं न कहीं डर भीतर छिपा है कि लगता है यह स्त्री, जीसस की मां भी विवाह के पहले किसी से संबंधित रही होगी मगर इसको कोई कहता नहीं, क्योंकि कौन कहे! कौन झंझट मोल ले! इसको लीप-पोता दिया है। यह बिना पुरुष के संसर्ग के जीसस के जन्म की कहानी गढ़ ली।(Osho)
