वह जो इनरमोस्ट बीइंग है। वह जो भीतर से भीतर आपका सत्व है, वह जो आप हैं। वह कभी …

संकलन एवम् प्रस्तुति/मक्सिम आनन्द

मैंने सुना है, एक घर में एक छोटा सा बच्चा है, और वह भाग रहा है। रो रहा है, भाग रहा है, रो रहा है। और उसकी मां उससे पूछती है कि बात क्या है। वह कहता है कि मुझे मेरी परछाईं पकड़नी है। वह भागता है, बड़ी मुश्किल है, परछाईं बड़ी चालाक है। आप भागो वह आपके आगे निकल जाती है। वह बच्चा रो रहा है, छाती पीट रहा है। भागता है फिर परछाईं आगे निकल जाती है। वह अपने सिर को पकड़ना चाहता है। कैसे सिर को पकड़े?

कैसे सिर को पकड़े? और एक फकीर द्वार पर भीख मांगने आया है, वह हंसने लगा है। मां भी परेशान है। और वह हंसने लगा है। उस फकीर ने कहा, ऐसे नहीं, ऐसे नहीं! यह कोई रास्ता नहीं। यह लड़का मुश्किल में पड़ जाएगा। यह लड़का संसार के रास्ते पर निकल गया।

उसकी पत्नी ने कहा, कैसा संसार का रास्ता? यह तो खेल रहा है। उसने कहा, खेलने में यह आदमी संसार के रास्ते पर उलझा हुआ है। क्या करें? वह फकीर भीतर गया, उसने उस रोते हुए लड़के का हाथ पकड़ कर सिर पर रखवा दिया। इधर हाथ सिर पर गया। उधर परछाईं के सिर पर भी हाथ चला गया। वह लड़का कहने लगा, पकड़ ली। आश्चर्य, आपने इतनी आसानी से पकड़ा दी। अपने सिर पर हाथ रखने से परछाईं पकड़ में आ गई। क्योंकि परछाईं के सिर पर भी हाथ चला गया। परछाईं तो वही बन जाती है, जो हम होते हैं।

लेकिन परछाईं को कुछ करने आप जाएं, तो आप नहीं बदलते। आप बदल जाएं, तो परछाईं बदल जाती है। और हम सारे लोग परछाईं के साथ कुछ करने की कोशिश में लगे हुए हैं। जन्म से लेकर मरने तक। और एक जन्म नहीं, अनंत जन्मों तक हम परछाईं के पीछे दौड़ने वाले लोग हैं। छाया के पीछे।

और छाया के पीछे दौड़ने से न तो छाया पकड़ में आती है। चित्त दुखी हो जाता है। न छाया मिलती है, चित्त हार जाता है। छाया बार-बार हाथ से छूट जाती है और लगता है कि हम हीन हैं, हम शक्तिशाली नहीं हैं, हम हार गए। और फिर छाया न मालूम किन-किन कारागृहों में फंसती हुई मालूम पड़ती है। फिर हम उसके छुटकारे के उपाय में लग जाते हैं। मंत्र पढ़ते हैं, जाप करते हैं, गीता पढ़ते हैं, रामायण पढ़ते हैं, कुरान पढ़ते हैं। न मालूम क्या-क्या उपाय करते हैं। सब करते हैं और कुछ भी नहीं हो सकता है। क्योंकि जो करना है, वह हम करते ही नहीं। करना है यह कि हम यह देखें और पहचानें ठीक से।

कौन उलझ गया है? मैं, मैं उलझा हूं कभी? मैं उलझा हूं कभी?

कौन अशांत हो गया है? मैं, मैं कभी अशांत हुआ हूं। आप कहेंगे हजार बार हुए हैं। रोज हुए हैं, अभी हुए बैठे हुए हैं। लेकिन मैं फिर आपसे कहता हूं, कि खोज करेंगे, तो हैरान हो जाएंगे। कभी आप अशांत नहीं हुए। वह जो आपका अंतरतम है, वह जो गहरे से गहरे आपका होना है, वह जो इनरमोस्ट बीइंग है। वह जो भीतर से भीतर आपका सत्व है, वह जो आप हैं। वह कभी अशांत नहीं हुआ है।

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