संकलन एवम् प्रस्तुति/मक्सिम आनन्द
कल रात एक युवक आया जर्मनी से। वह बहुत डरा हुआ है। सत्रह साल की उमर में अनायास उसे शून्य का अनुभव हो गया है। अनायास तो कुछ होता नहीं। पिछले जन्मों की कमाई होगी। जन्मों-जन्मों में इस शून्य को खोजा होगा। बात पूरी नहीं हो पाई होगी, अटकी रह गई होगी। बीज पड़ गया होगा। इस जीवन में फसल आई। तो इस जीवन में तो बिलकुल अनायास हुई। सत्रह साल के युवक को घट जाए शून्य आकस्मिक तो घबड़ाहट तो हो ही जाएगी। न खोजते थे, न आकांक्षा थी, अचानक घट गया। तो इतना घबड़ा गया है, उसकी बात करते हुए भी हाथ-पैर उसके कंप रहे थे। उसकी बात करते हुए सिर घूमने लगा। होश जाने लगा। उसकी बात करते-करते उसकी आंख बंद होने लगी। घबड़ा गया है। वह चाहता नहीं कि फिर कभी वैसा हो जाए।
अब एक अपूर्व घटना थी लेकिन एक घबड़ाहट आ गई। अब घबड़ाहट आ गई तो वह ध्यान करने में डरता है। अब वह संन्यास लेने में डर रहा था। क्योंकि उसे लग रहा है, एक दफा शून्य की छोटी सी झलक उसको मिली है, वह इतनी घबड़ा गई और यहां तो सारी शून्य की ही बात हो रही है तो वह डर रहा है। जा भी नहीं सकता क्योंकि यद्यपि वह शून्य से घबड़ा गया लेकिन उस शून्य में उसे सत्य का भी दर्शन हुआ। यह भी वह कहता है-जो मैंने जाना है वही परम सत्य है। मगर वह परम सत्य मैं फिर नहीं जानना चाहता। कोई अर्थ नहीं है जीवन में फिर। फिर महत्वाकांक्षा में कोई सार नहीं है। फिर यह करने और वह करने में कोई प्रयोजन नहीं है। शून्य ही सब कुछ है। तो वह घबड़ा भी गया है। रस भी आया, घबड़ा भी गया। व्याख्या भी उसने बड़े डर के कर ली।
कल उसकी तरफ देखते हुए मुझे दिखाई पड़ना शुरू हुआ कि जरूर वह किसी अतीत में किसी बौद्ध परंपरा का हिस्सा रहा होगा। बौद्धों ने शून्य को बड़ा बल दिया है। अब व्याख्या की बात है। पश्चिम में शून्य की कोई चर्चा ही नहीं करता। ईसाइयत शून्य से बहुत डरती है। इस्लाम भी डरता है। पश्चिम में पैदा हुआ, ईसाइयत के खयाल उसके मन में रहे होंगे और जब उसने यह शून्य देखा तो वह बहुत घबड़ा गया। अगर पूर्व में पैदा हुआ होता, अगर बुद्ध की हवा उसके आसपास रही होती तो उसके पास दूसरी व्याख्या होती। शून्य देखता तो नाच उठता, मगन हो जाता। शून्य देखता तो कहता,
रतन अमोलक परख कर रहा जौहरी थाक।
दरिया तहं कीमत नहीं उनमन भया अवाक।।
लेकिन उस युवक का डर मैं समझता हूं। उसको किसी तरह फुसलाकर संन्यासी बना लिया है। उसे फुसला कर ध्यान में ले जाएंगे। अबकी बार आशा की जाती है कि जब फिर दुबारा शून्य घटेगा तो उसके पहले वह तैयार हो जाएगा। अब की बार शून्य उसे पगलाएगा नहीं। अबकी बार शून्य उसे परम स्वास्थ्य दे जाएगा। अब की बार शून्य से उसकी ऐसी ही पहचान हो जाएगी-
जात हमारी ब्रम्ह है माता-पिता है राम।
गिरह हमारा सुन्न में अनहद में बिसराम।।
और एकबार अनहद में विश्राम आ गया फिर तुम कहीं भी रहो, फिर हजार संसार तुम्हारे चारों तरफ शोर-गुल मचाता रहे, तुम्हारे भीतर कोई तरंग नहीं पहुंचती। तुम निस्तरंग बने रहते हो। तुम अपने घर आ गए। तुमने शाश्वत से सगाई कर ली।
