वीणा उसी की जो उसे बजा सके…

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

एक घर में एक बहुत प्राचीन वीणा थी। सदियों से वह वीणा उस घर में पड़ी थी। उस परिवार में कभी शायद कोई संगीतकार रहा होगा और वह उसे बजाता होगा, लेकिन पीढ़ियां बीतती चली गयीं और अब कोई उसे बजाने वाला न था। घर के लोग यह तक भूल चुके थे कि उसका उपयोग क्या है। बल्कि घर में अब उससे झंझट होने लगी थी कि व्यर्थ की इतनी बड़ी चीज को रखें कहां। कभी बच्चे उससे खेलते और शोर से पूरा घर परेशान हो जाता, कभी रात को उस पर कोई बिल्ली कूद जाती, कोई चूहा कूद जाता और सबकी नींद खराब हो जाती। उसका उपयोग तो कोई था नहीं, बस झंझट ही थी।

आखिर एक दिन उन्होंने सोचा कि क्यों न हम इसे बाहर ही फेंक दें, इसका फायदा तो कोई है नहीं, बस इसके शोर की झंझट होती है, और रोज इसकी सफाई भी करनी पड़ती है। सो उन्होंने बाहर उसे कचरे के ढेर पर रख दिया।

एक भिखारी वहां से गुजरा। वह संगीत का जानकार था। उसने वीणा उठाई और बजाने लगा। वीणा से अपूर्व स्वरलहरियां उठने लगीं। एक अप्रतिम संगीत चारों ओर फैल गया। पड़ोस के सभी लोग संगीत सुनने के लिये जमा हो गये। उस घर के लोग भी बाहर आये। उन्होंने देखा कि जो वीणा वे कचरे में फेक आये थे, उससे अपूर्व संगीत झर रहा था। उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और भिखारी से वह वीणा वापस मांगने लगे। भिखारी बोला कि तुमने यह वीणा कचरे में फेंक दी थी क्योंकि तुम इसे बजाना नहीं जानते। मैं इसे बजाना जानता है। और वीणा उसीकी होती है जो उसे बजाना जानता है। यह वीणा तुम्हारी होती यदि तुम इसे बजाना जानते। केवल जन्म लेने से तुम जीवन के अधिकारी नहीं होते। जीवन को जीने की कला सीखकर ही तुम उसे अर्जित करते हो।

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