कोई पेड़ सिर्फ पेड़ नहीं होता

(आज़ डॉ चन्द्र शेखर शर्मा की कविता लोक असर के लिए ख़ास)

कोई पेड़
सिर्फ पेड़ नहीं होता
वह
कई दिनों का धैर्य
कई कई सप्ताहों की बाड़
वर्षों की तपस्या
और
कितने ही अव्यवों का समागम
कितनी निशानियों का गवाह
कितने ही जीवों का आश्रय
कई किस्सों का केंद्र।
हर पेड़ होता है बहुत कुछ।

और
किसी पेड़ का काटा जाना
सिर्फ पेड़ का काटा जाना नहीं होता
धैर्य, तपस्या, बाड़, निशानियों,
यादों, किस्सों, आश्रयों और भविष्य
का काटा जाना होता है।
वह कोई एक साधारण घटना नहीं।
किसी पेड़ का ठूंठ हो जाना
समाज के एक हिस्से का ठूंठ हो जाना है
एक बड़ी दुघर्टना है
नासमझी और लालच का परिचायक है
स्वार्थी मानसिकता की निशानी है
अमानवीय है, एक त्रासद कहानी है।

सड़क जब मोड़ी जा सकती है
गन्तव्य को सही सही जोड़ने के लिये
तो फिर
क्यों नहीं मोड़ दी जातीं,
पेड़ के अस्तित्व के लिये।
काश कि पेड़ जिरह करते
तो बताते
विकास करने के समावेशी सिद्धान्त
गढ़ते नई परिभाषाएं, सहअस्तित्व की
लिखते कुछ अपने अस्तित्व के लिए
करते कुछ प्रतिरोध।

पर
सीधे सीधे न सही
पेड़
प्रकृति के माध्यम से
बता तो रहे हैं
अपने काटे जाने की कीमत।


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