संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक बड़ा धनवान आदमी था जो हमेशा दुखी रहता था। वह कई साधु-संतों के पास जा चुका था कि कोई उसे सुखी होने का उपाय बता दे, लेकिन कहीं कोई बात नहीं बनी। किसी ने उसे सुझाव दिया कि वह मुल्ला नसरुद्दीन के पास जाये, जो फलां -फलां गांव में रहता है।
वह हीरे-जवाहरात से भरा एक बड़ा सा थैला लेकर मुल्ला के पास पहुंचा। मुल्ला नसरुद्दीन गांव के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। उस आदमी ने अपना थैला मुल्ला को दिखाते हुए कहा, ‘मेरे पास सबकुछ है लेकिन सुख नहीं है। मैंने जीवन में कभी नहीं जाना कि सुख क्या होता है, प्रसन्नता क्या होती है। मैं सब उपाय करके देख चुका है। यदि आप मुझे सुखी होने का उपाय बता सके तो उसके लिये मैं कुछ भी देने को तैयार है। आप यह पूरा थैला रख सकते हैं।
मुल्ला ने उसकी बात सुनी और अचानक उसका थैला झपटा व तेजी से भाग निकला। आदमी को समझ ही नहीं आया कि यह क्या हुआ। वह मुल्ला के पीछे ‘चोर-चोर’ चिल्लाता दौड़ने कगा। पीछे एक बड़ी भीड़ भी दौड़ने लगी। वह चिल्ला रहा था, ‘मैं लुट गया, मेरी पूरी पूंजी लेकर मुल्ला भाग गया।’
अंततः जब वह मुल्ला तक पहुंच पाया तो मुल्ला वहीं वापस पहुंच चुका था जहां वह पहले बैठा हुआ था। मुल्ला ने उसे उसका थैला वापस किया और आराम से बैठ गया।
उस आदमी की आंखों में सुख के आंसू झलक आये, उसने मुल्ला को धन्यवाद दिया।
मुल्ला ने कहा, ‘देख थैला वापस मिलने से तू खुश हो गया। यह थैला तेरे पास हमेशा से था, लेकिन तू दुखी था। तुझे सुखी करने के लिये एक बार यह थैला तुझसे छीना जाना जरूरी था। सुख तेरे ही पास है और तू उसे सब जगह खोज रहा है।
यह जीवन जो तुम्हें दिया गया है यह कितना चमत्कृत कर देने वाला है; प्रसन्न होने के लिये और क्या चाहिये? इतने सुंदर वृक्ष, ऐसा अनंत आकाश, इतने तारे-ये सब तुम्हें मुफ्त मिले हैं। यह पूरा जगत, अपने पूरे सौंदर्य के साथ तुम्हें दिया गया है-ये सूर्योदय, ये सूर्यास्त, ये सब फूल, और इतने प्यारे लोग। जरा देखो, और तुम पाओगे तुम्हें इतना दिया गया है, और तुम इस सब को ऐसे ले रहे हो जैसे कुछ भी न हो। तुमने कभी देखा ही नहीं कि अस्तित्व ने तुम्हारे बिना मांगे तुम्हें क्या-क्या उपहार दिये हैं।
एक बार तुम इस ओर देखना शुरु कर दो तो तुम्हारा हृदय अहोभाव से भर जायेगा। और वह अहोभाव आनंद के सब द्वार खोल देता है।
