अहंकार कैसे पैदा होता है? एक पत्थर की कहानी से ऐसे समझें…

संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

एक बहुत बड़े राज महल के निकट पत्थरों का एक ढेर लगा हुआ था, कुछ बच्चे वहां खेलते हुए निकले, एक बच्चे ने पत्थर उठा लिया और महल की खिड़की की तरफ फेंका, वह पत्थर ऊपर उठने लगा, पत्थरों की जिंदगी में यह नया अनुभव था, पत्थर नीचे की तरफ जाते, ऊपर की तरफ नहीं, ढलान पर लुड़कते है, चढ़ाई पर चढ़ते नहीं तो ये अभूतपूर्वक घटना थी पत्थर का ऊपर उठना। नया अनुभव था । पत्थर फुलके दुगना हो गया , जैसे कोई आदमी उदयपुर से फ़ेक दिया जाये और दिल्ली की तरफ़ उड़ने लगे तो फुलके दुगना हो जाये , वैसा वो पत्थर ज़मीन से पड़ा हुआ जब उठने लगा राज महल की तरफ़ तो फुलके दुगना, आख़िर पत्थर ही ठहरा अक्ल कितनी? समझ कितनी?

फुलके दुगनी वजन हो गया, ऊपर उठने लगा, नीचे पड़े हुए पत्थर, आंखें फाड़ के देखने लगे, अद्भुत घटना घट गई थी, उनके अनुभव में ऐसी कोई घटना ना थी कि कोई पत्थर ऊपर उठा हो, वे सब जय जयकार करने लगे, धन्य धन्य करने लगे, हद हो गई, उनके कुल में, उनके वंश में ऐसा अद्भुत पत्थर पैदा हो गया, जो ऊपर उठ रहा है और जब नीचे होने लगा, जय जयकार और तालियां बजने लगी और हो सकता है पत्थरों में कोई अखबार में भी हो जर्नलिस्ट हो , उन्होंने खबर छापी हो , कोई फोटोग्राफर हो उन्होंने फोटो निकाली हो कोई चुनाव लड़ने वाला पत्थर हो उसने कहा हो ये मेरा छोटा भाई है जो ऊपर जा रहा है ।

कुछ हुआ होगा नीचे वो ज़्यादा तो मुझे पता नहीं विस्तार में लेकिन नीचे के पत्थर बहुत हैरान होकर देखने लगे जय जयकार चिल्लाने लगे। नीचे की जय जयकार उस ऊपर के पत्थर को भी सुनाई पड़ी । जय जयकार किसको सुनाई नहीं पड़ जाती है? बड़ा मज़ा है जो जय जयकार कभी नहीं होती वो भी सुनाई पड़ जाती है तो जो होती है वह तो सुनाई पड़ी ही जाएगी, उसे सुनाई पड़ गई, वह और फूलने लगा।

उसने चिल्ला के कहा कि मित्रों, घबराओ मत, मैं थोड़ी आकाश की यात्रा को जा रहा हूं, उसने कहा मैं जा रहा हूं आकाश की यात्रा को, ताकि जान सकूं क्या है रहस्य इस आकाश का और लौट के तुम्हें बता सकूं, गया महल के कांच की खिड़की से टकराया, तो पत्थर टकराएगा कांच की खिड़की से तो स्वाभाविक कि कांच चूर चूर हो जाए, इसमें पत्थर की कोई बहादुरी नहीं है। इसमें केवल कांच का कांच होना और पत्थर का पत्थर होना है। इसमें कोई कांच की कमजोरी नहीं और पत्थर की बहादुरी नहीं, कांच का कांच होना, पत्थर का पत्थर होना है, पत्थर टकराया, कांच चूट चकना चूर हो गया, लेकिन पत्थर खिलखिलाया और हंसा, जैसे कि नेता अक्सर खिलखिलाते और हंसते हैं और उस पत्थर ने कहा कितनी बार मैंने नहीं कहा कि मेरे रास्ते में कोई ना आए नहीं तो चकना चूर हो जाएगा ।

वो वही भाषा बोला जो राजनीति की भाषा है जो मेरे रास्ते में आएगा चकनाचूर हो जाएगा । देखा अब अपना भाग्य चकनाचूर होकर पड़े हो और वह पत्थर गिरा महल की कालीन पर, बहुमूल्य कालीन बिछा था थक गया था पत्थर। लंबी उसने यात्रा की थी। सड़क की गली से महल तक की यात्रा कोई छोटी यात्रा है? बड़ी थी यात्रा, जीवन जीवन लग जाते हैं, गली से उठते महल तक पहुंचते, थक गया था, पसीना माथे पर आ गया होगा, गिर पड़ा, कालीन पर गिरकर उसने ठंडी सांस ली और कहा, धन्य धन्य है यह लोग, क्या मेरे पहुंचने की खबर पहले ही पहुंच गई, उन्होंने कालीन बिछा रखा है? और कितने अतिथि प्रेमी और कैसे स्वागत सत्कार के प्रेमी, महल बना के रखा मेरे लिए, क्या पता था कि मैं आ रहा हूं।

ठीक जगह खिड़की बनाई, जहां से मैं आने को था, ठीक ठीक सब किया, कोई भेद ना पड़ा, एक इंच में चूका नहीं, जो मेरा मार्ग था आने का, वहां खिड़की बनाई, जो मेरा मार्ग था विश्राम का वहां कालीन बिछाए, बड़े अच्छे लोग हैं और यह वह सोचता ही था कि राज महल के नौकर को सुन पड़ी होगी आवाज टूट जाने की कांच की वो भागा हुआ आया। उसने उठाया पत्थर को हाथ में, पत्थर तो हृदय गदगद हो उठा, उसने कहा आ गया, मालूम होता है मकान का मालिक।

स्वागत में हाथ में उठाता है, प्रेम दिखलाता है, कितने भले लोग और फिर उस नौकर ने पत्थर को वापस फेंका तो उस पत्थर ने मन में कहा वापस लौट चले घर की बहुत याद आती है। होम सिकनेस मालूम होती वो वापस गिरने लगा अपनी ढेरी पर तो नीचे तो आंखें फाड़े हुए लोग बैठे थे उनका मित्र उनका साथी गया था आकाश की यात्रा को चंद्र लोक गया था वो लौट कर आया वो गिरा नीचे, फूल मालाएं पहनाई गई, कई दिन तक जलसे चले, कई जगह उद्घाटन हुआ और ना मालूम क्या-क्या हुआ और उन पत्थरों ने पूछा कि क्या क्या उसने अपनी लंबी कथा कही, मैंने यह किया मैंने यह किया, मेरा ऐसा स्वागत हुआ, ऐसी ऐसी जगह मेरा सत्कार हुआ, इतने इतने शत्रु मरे, कई चीजों का गुणनफल किया, उसने एक कांच मारा था, कई कांच बताए, एक महल में ठहरा था, कई महलों में ठहरा हुआ बतलाया, एक हाथ में गया था अनेक हाथों में पहुँचने की खबर दी जो बिलकुल स्वभाविक है आदमी का मन जैसा करता है तो पत्थर का मन तो और भी ज़्यादा करेगा और तो उसके पत्थरों ने कहा मित्र तुम अपनी आत्मकथा ज़रूर लिखो।

हमारे बच्चों के काम आयेंगी ऑटोबायोग्राफी लिखो क्यूकी सभी महापुरुष लिखते है तुम भी लिखो वो लिख रहा है । जल्दी लिख लेगा तो आपको पता चलेगी। खबर हो जायेंगी क्यूकी उसके पहले भी और पत्थरों ने लिखी है और उनको आप अच्छी तरह पढ़ते रहे है, वह भी लिखेगा, उसकी भी पढ़ेंगे, इस पत्थर पर आपको हंसी क्यों आती है?

इस बेचारे में कौन सी खराबी है? यह आदमी से कौन सा भिन्न है? और इस पत्थर पर आप हंसते हैं तो कभी अपने पर हंसे हैं? इस पत्थर की इस बात को सुनकर आप हंसते हैं कि मैं जा रहा हूं यात्रा को, लेकिन हम खुद क्या है? क्या हम भी किन्हीं अनजान हाथों के द्वारा फेंके गए पत्थर नहीं?

हमें पता है हम क्यों जन्म लेते हैं? हमें पता है हम कैसे पैदा हो जाते हैं? हमें पता है कौन हमें फेंक देता है? कौन अनजान ताकत, कौन अनजान हाथ, कौन अपरिचित फेंक देता जीवन में, लेकिन हम कहते हैं मेरा जन्म, मेरा जन्मदिन है, आपसे पूछा था किसी ने कि आप किस जन्मदिन पैदा होना चाहते हैं? आपसे कोई तारीख, तिथि कोई पूछी थी कि आप कब पैदा होना चाहते हैं, जो आप कहते हैं मेरा जन्मदिन, आपका कोई निर्णय है, इसमें? आपकी कोई चॉइस? आपसे किसी ने पूछा था? आप पैदा भी होना चाहते हैं कि नहीं होना चाहते?

ना आपसे किसी ने पूछा कि आप पैदा होना चाहते हैं, ना पूछा दिन ना कोई तारीख, लेकिन कहते हैं मेरा जन्मदिन, यह मेरा बड़ा अजीब है, कहते हैं, मेरी जवानी, आप ले आए इस जवानी को? यह आपके हाथ का कोई काम है, यह आपका प्रयत्न है, कोई क्या आप जवान हो गए, क्या आप चाहते हैं कि जवान ना हो तो आप रुक जाते जवान होने से? नहीं लेकिन कहते है मेरी जवानी, यह मैं कहां आ गया इस जवानी में, कहते हैं मेरी जिंदगी, क्या है जिंदगी आपकी? कौन सी चीज आपकी है इस जिंदगी में कहते हैं । मेरा शरीर क्या है आपका इसमें? इस शरीर में मेरे जो जो कण है ना मालूम कितने शरीरों में रह चुके मुझसे पहले ना मालूम इन कणों ने ना मालूम कितने शरीरों में की है यात्राए , पशुओं में , पक्षियों में , पौधों में रोज अन्न खा रहे हैं वह आपके शरीर में जाकर आपका हिस्सा बन रहा है, लेकिन कल तक किसी पौधे का हिस्सा था। किसी पौधे का शरीर था , जो स्वास में ले रहा हूँ, कहता हूँ मेरी स्वाँस यहाँ हम इतने लोग बैठे है, जो आप स्वाँस अभी ले रहे है वो आपके पड़ोसी बहुत थोड़ी देर पहले ले चुके है वो अब आपको मिल गई थोड़ी देर बाद दूसरे को मिल जायेंगी आपका क्या है?

आप कहां आते है? कहते है मैं लेता हूँ स्वाँस लेकिन आपको पता है अगर स्वाँस ना आयेंगी तो आप ले सकेंगे? आप मालिक है स्वाँस के?

नहीं ज़िंदगी फ़ेके हुए पत्थर की कथा है, लेकिन हम हर काम से अपने मैं को जोड़ लेते हैं जो बिल्कुल झूठा है, जिसकी कोई जगह नहीं है, जो बिल्कुल सब्सटेंशियल नहीं है, जिसका कोई पदार्थगत कुछ भी सत्ता नहीं है, जो है बिल्कुल शैडो है, छाया की भांति झूठा, उस पत्थर की कथा पर हंस गए थे, अपनी जिंदगी को थोड़ा उसकी जगह रखकर सोच लेना तो पता चल जाएगा अहंकार कैसे पैदा हो गया है।

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