संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द
एक झेन फकीर औरत हुई । उसने कोई छह महीने पहले अपने मरने की खबर दी । उसने अपनी चिता तैयार करवायी । फिर वह चिता पर सवार हो गयी, उसने सबको नमस्कार कर लिया, फिर सारे मित्रों ने आग लगा दी । तब एक साधु, जो देख रहा था खड़ा हुआ, उसने जोर से पूछा, अब आग की लपटें लग गयीं और वह जलने के करीब होने लगी। उसने पूछा उससे, कि वहां भीतर गर्मी तो बहुत मालूम होती होगी ? तो वह फकीर औरत हंसी और उसने कहा कि तुम जैसे मूढ़ हो, अभी भी इस तरह के सवाल उठाए जा रहे हो ? मतलब और तुम्हें कोई काम-लायक बात पूछने का नहीं खयाल में आया । तुम जैसे मूढ़ अभी भी ऐसे सवाल उठा रहे हो । अब यह तो तुम्हें दिखायी ही पड़ रहा है; और आग में बैठूंगी तो गर्मी लगेगी या नहीं लगेगी, यह मुझे भी पता है । पर यह चुना हुआ है।
वह हंसती हुई जल जाती है। वह अपनी मृत्यु के क्षण को चुनती है। और उसके जो हजारों शिष्य इकट्ठे हो गए हैं। उनको वह दिखा देना चाहती है कि हंसते हुए मरा जा सकता है। जिनके लिए हंसते हुए जीना मुश्किल है उनके लिए यह संदेश बड़े काम का है जिनके लिए हंसते हुए जीना भी मुश्किल है उनके लिए संदेश बड़े काम का है कि हंसते हुए मरा जा सकता है । तो मृत्यु को नियोजित किया जा सकता है, वह व्यक्ति पर निर्भर करेगा कि वह कैसा चुनाव करता है । लेकिन, सीमाओं के भीतर सारी बात होगी । असीम नहीं है मामला । सीमाओं के भीतर वह कुछ तय करेगा इस कमरे के भीतर ही रहना पड़ेगा मुझे, लेकिन मैं किस कोने में बैठूं, यह मैं तय कर सकता हूं। बाएं सोऊं कि दाएं सोऊं, यह मैं तय कर सकता हूं। ऐसी स्वतंत्रताएं होंगी । और ऐसे व्यक्ति अपनी मृत्यु का निश्चित ही उपयोग करते हैं। कई बार प्रकट दिखायी पड़ता है उपयोग, कई बार प्रकट दिखायी नहीं पड़ता ।
लेकिन ऐसे व्यक्ति अपने जीवन की प्रत्येक चीज का उपयोग करते हैं, वे मृत्यु का भी उपयोग करते हैं। असल में वह आते ही अब किसी उपयोग के लिए हैं। उनका अपना कोई प्रयोजन नहीं रह गया होता है। अब उनका आना कुछ किसी के काम पड़ जाने के लिए है। तो वह जीवन की प्रत्येक चीज का उपयोग करते हैं। पर बड़ी कठिन है बड़ा कठिन है कि हम उनके प्रयोग को समझ पाएं । जरूरी नहीं है ! अक्सर हम समझ नहीं पाते। क्योंकि जो भी वे कुछ कर रहे हैं, हमें तो कुछ पता नहीं होता और हमें पता करवाकर किया भी नहीं जा सकता ।
