पाखंड का और क्या अर्थ होता है

संकलन एवम प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

झेन फकीर इक्कू एक मंदिर में ठहरा। रात है सर्द। इतनी सर्द, इतनी ठंड पड़ रही है कि बाहर बर्फ गिर रही है। गरीब फकीर के पास एक ही कंबल है, वह उसकी सर्दी को नहीं मिटा पा रहा है। वह उठा कि मंदिर में कुछ लकड़ी तलाश लाए। और लकड़ी तो न मिली लेकिन बुद्ध की प्रतिमाएं थीं, वे लकड़ी की थीं। कई प्रतिमाएं थीं, तो वह एक प्रतिमा उठा लाया, आग जला ली।

मंदिर में जली आग, लकड़ी की चट-चटाक, अचानक रोशनी का होना, पुजारी जग गया। भागा हुआ आया। आगबबूला हो गया। आंखों पर भरोसा न आया कि एक फकीर, जिसको लोग सिद्धपुरुष समझते हैं, वह भगवान की प्रतिमा जला रहा है। इससे बड़ी और नास्तिकता और बड़ा कुफ्र क्या होगा? उसने कहा, यह तुम क्या कर रहे हो ? होश में हो कि पागल हो ? भगवान की प्रतिमा जला रहे हो !

इक्कू हंसा, उसने पास में ही पड़े अपने डंडे को उठाया, प्रतिमा तो जल गई थी, बस अब राख ही रह गई थी, उस राख में डंडे को डालकर टटोला। पुजारी पूछने लगा – अब क्या खोज रहे हो ? सब राख हो चुका। इकू ने कहा, भगवान की अस्थियां खोज रहा हूं। पुजारी ने सिर से हाथ मार लिया। उसने कहा, तुम निश्चित पागल हो।

अरे, लकड़ी की मूर्ति में कहां की अस्थियां ! इक्कू ने कहा, यही तो मैं कहूं। रात अभी बहुत बाकी, बर्फ जोर से पड़ रही है और मंदिर में तुम्हारे मूर्तियां बहुत हैं, एक-दो और उठा लो! और मैं ही क्यों तापूं, तुम भी ठिठुर रहे हो, तुम भी तापो। जब अस्थियां नहीं हैं, तो कैसा भगवान !

ऐसे आदमी को मंदिर में टिकने देना खतरनाक था। क्योंकि पुजारी आखिर सोएगा। यह और मूर्तियां जला दे ! बहुमूल्य चंदन की मूर्तियां हैं। इक्कू को धक्के मार कर उसने बाहर निकाल दिया।

इक्कू ने बहुत कहा कि बर्फ पड़ रही है, और भगवान को बाहर निकाल रहे हो ! लकड़ी की मूर्तियां बचा रहे हो और मुझे जीवित बुद्ध को बाहर निकाल रहे हो! लेकिन उसने बिलकुल नहीं सुना, उसने कहा तुम पागल हो। तुम और बुद्ध ! धक्के देकर दरवाजा बंद कर लिया।

सुबह जब उसने दरवाजा खोला मंदिर का तो देखा कि इक्कू बाहर बैठा है और जो मील का पत्थर है उस पर फूल चढ़ा कर आराधना में झुका है और उसकी आंखों से आनंद के आंसू बह रहे हैं।

पुजारी ने जाकर हिलाया और कहा कि तुम मुझे और परेशान न करो; तुम मुझे और उलझाओ मत, ऊहापोह में मत डालो ! रात मंदिर में भगवान की मूर्ति जलाई, अब सुबह राह के किनारे लगे मील के पत्थर पर फूल चढ़ा कर आराधना कर रहे हो !

इक्कू ने कहा, जहां आराधना है, वहां आराध्य है। पत्थर को भी प्रेम से देखो तो परमात्मा है और परमात्मा को भी सिर्फ बुद्धि से देखते रहो, तो परमात्मा नहीं।

रात जो मैंने मूर्ति जलाई, अपनी सर्दी मिटाने को न जलाई थी, तुम्हारा पाखंड जलाने को जलाई थी।

तुम्हें याद दिलाना चाहता था कि तुम यह पूजा व्यर्थ ही कर रहे हो, क्योंकि तुमने खुद ही कहा कि अरे पागल, लकड़ी में अस्थियां कहां ? अगर तुमने यह आराधना सच में की होती तो ऐसा वचन तुमने न निकल सकता था। भीतर तो तुम जानते हो कि लकड़ी ही है, ऊपर मानते हो कि भगवान है। पाखंड का अर्थ होता हैः भीतर कुछ, बाहर कुछ।

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