जो नहीं है उसकी भी प्रतीति हो सकती है। आखिर रोज हम…

संकलन एवम् प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द

सूफी कहानी है, जुन्नैद नाम का अलमस्त फकीर–मंसूर का गुरु था जुन्नैद–बगदाद के बाहर ठहरा हुआ था। और एक सांझ उसने देखा कि जब रास्ता सो गया और गांव नींद में खो गया तो एक काली छाया, बड़ी विकराल, झोपड़े के पास से गुजरी–बगदाद में प्रवेश करने के लिए। जुन्नैद ने आवाज दी, बहर, तू कौन है? उस काली छाया ने कहा, तुमसे क्या छिपाना। फकीरों से क्या छिपाना। और छिपाओ तो भी तो फकीरों से छिपेगा नहीं। मैं मौत हूं।

जुन्नैद ने पूछा, किसे मारना है?

मौत ने कहा, नाम-पते बताने बैठूंगी तो सुबह हो जाएगी। कम से कम पांच सौ व्यक्ति मारे जाने हैं। सुना तो होगा ही तुमने कि गांव में प्लेग फैली है।

फकीर ने कहा, जैसी प्रभु की मर्जी। जा, तू अपना काम कर। लेकिन आठ दिन के भीतर कोई पांच हजार आदमी मर गए। तो जुन्नैद थोड़ा नाराज हुआ कि मुझसे झूठ बोलने की क्या जरूरत थी। और जब आठवें दिन मौत वापस लौट रही थी, वही समय था, जुन्नैद ने फिर आवाज दी कि बेईमान, मुझसे झूठ बोलने की क्या जरूरत थी? अरे मुझे तो जैसे पांच सौ वैसे पांच हजार। मुझे तो जैसा जीवन वैसी मृत्यु। तू क्यों झूठ बोली? कहे थे पांच सौ और मारे पांच हजार।

मौत ने कहा, क्षमा करें। मैंने तो पांच सौ ही मारे, शेष घबराहट में मर गए। अपने आप मर गए। दूसरों को मरते देख कर मर गए। मेरा उसमें कुछ हाथ नहीं है। लेकिन जब मर गए तो मुझे ले जाना पड़ा। उलटे मुझे ढोना पड़ा।

यह हो सकता है कि तुम बीमार को देख कर बीमार हो जाओ। अक्सर यूं होता है कि चिकित्सक की शिक्षा पा रहे विद्यार्थी जिस बीमारी के संबंध में अध्ययन कर रहे होते हैं वही बीमारी विद्यार्थियों में. फैल जाती है। यह आम मेडिकल कालेजों का अनुभव है : जिस बीमारी का अध्ययन कर रहे होते हैं, उसका ही आभास उन्हें अपने भीतर होना शुरू हो जाता है। इसलिए तुम भी जरा अखबारों में और साप्ताहिक पत्रिकाओं में वे जो चिकित्सा के संबंध में जानकारियां होती हैं, बन सके तो उनसे बच जाया करो। नहीं तो अक्सर उनको पढ़ते-पढ़ते जैसे पेट-दर्द की बीमारी और तुम्हें अचानक लगेगा कि यह हुआ दर्द वह हुआ दर्द, क्योंकि तुम पेट में तलाश करने लगोगे कि अपने पेट में तो कोई गड़बड़ नहीं है। और आभास शुरू हो जाएंगे।

मिथ्या का अर्थ होता है : है तो नहीं, लेकिन प्रतीति हो सकती है। जो नहीं है उसकी भी प्रतीति हो सकती है। आखिर रोज हम स्वप्न देखते हैं, वह मिथ्या है। उसका अस्तित्व नहीं है, ऐसा तो नहीं कह सकते। अस्तित्व तो है, लेकिन अस्तित्व ऐसा नहीं है जैसा पहाड़ों का, पर्वतों का, चांद-तारों का। अस्तित्व और अनस्तित्व के बीच में है। शरीर है, उसका अस्तित्व है। और जिस अर्थ में शरीर का अस्तित्व है उस अर्थ में आत्मा का अस्तित्व नहीं है। शरीर का आकार है, आत्मा निराकार है। वह तीसरा सत्य है-तीसरा पहलू। शरीर सगुण है, आत्मा निर्गुण है। शरीर दिखाई पड़ता है, आत्मा देखने वाला है। शरीर का विज्ञान बन सकता है, आत्मा विज्ञाता है। शरीर दृश्य है, आत्मा दृष्टा है।

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