(संकलन एवं प्रस्तुति मक्सिम आनंद)
सिकंदर भारत से वापस लौटता था, तब वह एक फकीर को मिलने गया। और उस फकीर ने सिकंदर को देखा और वह हंसने लगा।
तो सिकंदर ने कहाः ‘यह अपमान है मेरा। जानते हो मैं कौन हूं? सिकंदर महान !’ वह फकीर और जोर से हंसने लगा। उसने कहा कि ‘मुझे तो कोई महानता दिखाई नहीं पड़ती। मैं तो तुम्हें बड़ा दीन-दरिद्र देखता हूं।’
सिकंदर ने कहा कि ‘या तो तुम पागल हो और या तुम्हारी मौत आ गई। सारी दुनिया को मैंने जीत लिया है।’
उस फकीर ने कहा, ‘छोड़ यह बकवास ! मैं तुझसे पूछता हूं, अगर मरुस्थल में तू भटक जाये और प्यास तुझे जोर की लगी हो और चारों तरफ आग बरसती हो और कहीं हरियाली न दिखाई पड़ती हो, कहीं किसी मरूद्यान का पता न चलता हो-उस समय एक गिलास पानी के लिए तू इस राज्य में से कितना दे सकेगा ?’
सिकंदर ने थोड़ा सोचा। उसने कहाः ‘आधा राज्य दे दूंगा।’
फकीर ने कहा: ‘लेकिन आधे में मैं बेचने को राजी न होऊंगा।’ सिकंदर ने फिर सोचा। उसने कहा कि ऐसी हालत अगर होगी तो पूरा राज्य दे दूंगा। तो वह फकीर हंसने लगा।
उसने कहा: ‘एक गिलास पानी कुल जमा मूल्य है तेरे राज्य का। और ऐसे ही अकड़ा जा रहा है। वक्त पड़ जाये तो एक गिलास पानी में निकल जायेगी सब अकड़। यह राज्य तेरी प्यास भी तो न बुझा सकेगा उस क्षण में। चिल्लाना खूब – महान सिकंदर, महान सिकंदर ! कुछ न होगा। मरुस्थल बिलकुल न सुनेगा।’
एक गिलास पानी में राज्य चला जाता हो…! अगर तुमसे कोई कहे कि परमात्मा मिलने को तैयारे है, तुम क्या खोने को तैयार हो ? तुम क्या दांव पर लगाने को तैयार हो ? सिकंदर फिर भी हिम्मतवर था, उसने कहा, आधा राज्य दे दूंगा एक गिलास पानी के लिए। तुम एक गिलास परमात्मा के लिए क्या देने को राजी हो ? तुम शायद आधी दुकान भी न दोगे। तुम शायद आधा मकान भी न दोगे। तुम शायद अपनी आधी तिजोड़ी भी न दोगे। तुम कहोगे : ‘प्रभु, अभी और बहुत काम करने हैं, तिजोड़ी अभी कैसे दे दूं? अभी लड़की की शादी करनी है, अभी लड़का युनिवर्सिटी में पढ़ रहा है। दे दूंगा एक दिन, लेकिन अभी नहीं दे सकता।’ तुम क्या देने को राजी हो ?
कभी अपने मन में पूछना, अगर प्रभु द्वार पर खड़ा हो और कहे कि मैं मिलने को राजी हूं, तुम क्या देने को राजी हो ? तब तुम क्या दे दोगे निकालकर? तुम्हारे हाथ डरेंगे, खीसे में न जायेंगे।
