सिकंदर की तलवार कहते हैं म्यान में वापस चली गयी। इस आदमी की रौनक…

(संकलन एवं प्रस्तुति मक्सिम आनंद)

तुम्हें पता है क्यों इस देश ने संन्यास के लिए गैरिक वस्त्र चुने ? वह अग्नि का रंग है, लपटों का रंग है। प्राचीन समय में जब किसी को संन्यास देते थे, तो उसे चिता बनाकर उस पर लिटाते थे। फिर चिता में आग लगाते थे और घोषणा करते थे कि तू अब तक जो था, समाप्त हो गया। तेरी तरह तू मर गया। अब उठ और एक नए जीवन में उठ ! जलती चिता से संन्यासी उठता था, फिर उसे नया नाम देते थे, और गैरिक वस्त्र देते थे ताकि याद रखना अग्नि को, लपटों को, मृत्यु को; स्मरण रखना कि जो भी मरणधर्मा है वह तू नहीं है; स्मरण रखना कि जो भी मरेगा, वह तू नहीं है।

सिकंदर जब भारत से वापस लौटता था तो उसे याद आयी – जब यात्रा पर आया था भारत की तरफ तो उसके गुरु अफलातून ने उससे कहा था, जब भारत से लौटो, और बहुत-सी चीजें तुम लूट कर लाओगे, बन सके तो एक संन्यासी भी ले आना। संन्यास भारत की गरिमा है। वह भारत का गौरव है। वह भारत की देन है दुनिया को। तो अफलातून ने ठीक ही कहा था कि तू सब कुछ तो लाएगा लूटकर – धन-दौलत, हीरे-जवाहरात- मेरे लिए इतना खयाल रखना, एक संन्यासी ले आना। क्योंकि मैं जानना चाहता हूं, संन्यास क्या है?

सब लूट-पाट कर जब सिकंदर जा रहा था और पंजाब की आखिरी बस्तियां छोड़ रहा था, तब उसे याद आया कि वह भूल ही गया संन्यासी को ले जाना। तो उसने खबर की गांव में कोई संन्यासी है?

लोगों ने कहा- हां, एक संन्यासी है। वह नदी के किनारे नग्न वर्षों से जीता है। सिकंदर ने अपने दो आदमी भेजे और कहा- संन्यासी को कहो कि घोड़े पर सवार होकर हमारे साथ हो जाए। और कह देना, अगर आज्ञा न मानी तो यह नंगी तलवार है, गर्दन इसी वक्त काटकर गिरा दी जाएगी।

वे नंगी तलवारें लिए हुए सैनिक गए। जो संन्यासी वहां खड़ा था- नग्न, मस्त, सुबह की रोशनी में… सूरज से बातें करता होगा, आकाश में उड़ता होगा, अनंत से जुड़ा था, मस्त था, मौज में था, रक्स में था, नाच में था- थोड़ी देर तक तो वे दोनों सैनिक तलवारें नंगी हाथ में लिए चुपचाप खड़े रहे; ऐसा दृश्य उन्होंने देखा नहीं था! ऐसी मस्ती उन्होंने देखी नहीं थी! मतवाले देखे थे, मगर ऐसा मतवाला नहीं देखा था। और संन्यासी को जैसे पता ही नहीं चला कि वे दो नंगी तलवारें लिए आदमी खड़े हैं किसलिए?

आखिर में उन्होंने ही कहा कि भई, देखते नहीं, हम बड़ी देर से देख रहे हैं, सिकंदर की आज्ञा है, महान सिकंदर की आज्ञा है कि घोड़े पर सवार हो जाओ और हमारे साथ यूनान चलो। सब तरह की सुविधा रहेगी, सब तरह का इंतजाम रहेगा, तुम शाही मेहमान रहोगे। और यह भी खबर है साथ में कि अगर जाने से इंकार किया, तो ये नंगी तलवारें तुम्हारी गर्दन अभी गिरा देंगी।

वह संन्यासी ऐसा खिलखिलाकर हंसा कि नंगी तलवारें लिए सैनिकों के दिल धड़ककर रह गए होंगे।

उस संन्यासी ने कहा- सिकंदर को कहो कि फिर उसे संन्यासियों से बात करने की तमीज नहीं है। उसे संन्यासियों के साथ चर्चा करने का कुछ पता नहीं है। उस नासमझ को ही ले आओ ताकि वह भी देख ले -जब एक संन्यासी की गर्दन काटी जाती है तो क्या होता है? रही आने-जाने की बात, वर्षों हो गए तब से मैंने आना-जाना छोड़ दिया। ठहर गया हूं।

वह ऊंची बातें कह रहा था जिसकी सिपाहियों को तो कुछ समझ में ही नहीं आया होगा क्या कह रहा है। आना-जाना छोड़ चुका हूं, उसने कहा, ठहर गया हूं। वह तो संन्यासी की परिभाषा कर रहा था, जो कृष्ण ने की है- स्थितप्रज्ञ, जिसकी प्रज्ञा ठहर गयी है, जो न अब आता न जाता।

रज्जब ने कहा न- जो आए जाए सो माया. जो न आता, न जाता, जो सदा ठहरा है, सदा स्थिर है, उस थिरता का नाम ही संन्यास है। तो उसने कहा- मैं तो अब कहा आता-जाता, वर्षों हो गए ठहर गया, अब कैसा आना, कैसा जाना! कैसा भारत, कैसा यूनान ! व्यर्थ की बातें यहां न करो। रही गर्दन काटने की बात, तुम्हें काटना हो तुम काट लो, सिकंदर को काटना हो सिकंदर काट ले, जहां तक मेरा संबंध है, मैं तो यह गर्दन बहुत पहले काट ही चुका। इस गर्दन का मुझसे कुछ लेना-देना नहीं।

सिपाहियों की हिम्मत न पड़ी काटने की। यह आदमी कुछ अनूठा था। उन्होंने बहुत आदमी देखे थे, या तो आदमी होता है तलवार उसके सामने करो तो वह अपनी तलवार निकाल लेता है, लड़ने-जूझने को तैयार हो जाता है; या एक आदमी होता है कि तलवार दिखाओ तो वह भाग खड़ा होता है, पीठ दिखा देता है। न इसने पीठ दिखायी, न इसने तलवार निकाली, यह तीसरे ही तरह का आदमी था, जो खिलखिलाकर हंसा! इन सैनिकों ने बहुत युद्ध देखे थे, बहुत लोग मारे थे, मारे गए थे, खुद मौत का सामना किया था, मृत्यु के अनुभव से निरंतर गुजरे थे, मगर ऐसा आदमी न देखा था। उन्होंने सोचा, बेहतर है हम सिकंदर को पहले खबर कर दें। एक तो वहीं रुका रहा कि संन्यासी पर नजर रखे, दूसरा भागा सिकंदर को गया, उसने कहा कि आदमी देखने जैसा है! अफलातून ने, तुम्हारे गुरु ने जो कहा संन्यासी ले आना, ठीक ही कहा। हमने बहुत आदमी देखे, मगर यह आदमी कुछ और तरह का आदमी है। यह आदमियों जैसा आदमी नहीं है। यह मौत की बात सुनकर हंसा- ऐसा हंसा कि भरोसा न आए। या तो यह पागल है, या यह किसी ऐसी अवस्था में है ऊंचाई की जहां हमारी कोई पहुंच नहीं है। आप खुद ही चलो। काटना हो आप खुद ही काट लो। और वह कहता है- गर्दन तो मैं पहले ही कटा चुका।

सिकंदर खुद गया। सिकंदर ने लिखा है कि जिंदगी में मैं दो बार अपने को छोटा अनुभव किया हूं। एक बार डायोजनीज से मिला था, तब वह भी एक नंगा फकीर था यूनान का-और एक बार दंडामि, इस हिंदू संन्यासी से मिला, तब; दो बार मुझे लगा कि मैं ना-कुछ हूं। बाकि बड़े सम्राट देखे, दुनिया के बड़े ख्यातिनाम लोग देखे, उनके सामने मैं सदा बड़ा था। मेरे मुकाबले वे कुछ भी न थे। मगर इन दो फकीरों ने दोनों नंगे फकीर थे मुझे एकदम झेंप से भर दिया। दंडामि के सामने खड़े होकर सिकंदर ने कहा कि चलना होगा, अन्यथा यह तलवार है और मैं कठोर आदमी हूं, जैसा कहता हूं, वैसा करता हूं, यह गर्दन अभी कट जाएगी, यह सिर अभी गिर जाएगा। पता है दंडामि ने क्या कहा? दंडामि ने कहा- गिराओ, गिराओ, सिर को गिरा दो; मैं भी उसे गिरते देखूंगा, तुम भी उसे गिरते देखोगे। और अब तुम करोगे क्या, जो काम मेरा गुरु पहले ही कर चुका है। अब तो यह सिर ऐसा ही अटका है, जुड़ा नहीं है। यह तो कटा हुआ सिर है, कटे हुए को क्या काटते हो, मगर काटो ! तुम भी देखोगे गिरते, मैं भी देखूंगा गिरते।

सिकंदर की तलवार कहते हैं म्यान में वापस चली गयी। इस आदमी की रौनक, इस आदमी की आभा देखकर हतप्रभ होकर वापस लौट गया। जाते वक्त उस संन्यासी ने कहा- और ध्यान रखना, जो संन्यासी तुम्हारे साथ जाने को राजी हो जाए, वह ले जाने-योग्य नहीं है। वह संन्यासी नहीं है। जो संन्यासी है, उसका अब कैसा आना, कैसे जाना! ज्यूं का त्यूं ठहराया।

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