गीदम ब्लॉक के “कालेपारा” में वर्षो से “झोपड़ीनुमा घर में और वह भी किराए में” संचालित हो रहे आंगनबाड़ी केंद्र को पक्के भवन की है दरकार,

(दंतेवाड़ा से हमारे संवाददाता उमा शंकर एवं विनीता देशमुख की रिपोर्ट)

(लोक असर समाचार दंतेवाड़ा)

गीदम ब्लॉक के मुस्तलनार ग्राम पंचायत का कालेपारा गांव के ग्रामीण पिछले लगभग 11 वर्षो पक्के आंगनबाड़ी भवन की मांग कर रहे हैं। लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। एक छोटी सी कच्ची झोपड़ीनुमा घर में संचालित हो रहे आंगनबाड़ी केंद्र का पक्के होने का इंतजार में ग्रामीण आस लगाए बैठे हुए है। लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग के कानों में जूं तक नहीं चल रहा है। विभागीय अमला गंभीर शिकायत में वहां पहुंच जाय तो आश्चर्य से कम नहीं। जबकि विभाग के सुपरवाइजर को सप्ताह में एक दिन पहुंचना होता है। इधर विभाग द्वारा दावा किया जाता है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में प्रति माह सुपोषण सामग्री पहुंचाई जाती है। लेकिन दूरस्थ इलाकों में ऐसा सिर्फ कागजों में ही किया जा रहा है।

अंदरुनी क्षेत्र में आंगनबाड़ी केंद्रों का बुरा हाल

जिला मुख्यालय से लगभग 36 किमी की दूरी पर स्थित अंदरूनी क्षेत्र के इस आंगनवाड़ी केंद्र में सेवा दे रही कार्यकर्ता सावित्री कोर्राम और सहायिका सुधरी कश्यप का कहना है की हमनेे एवं गांव वालों ने इसकी सूचना कई बार शासन प्रशासन और महिला बाल विकास विभाग के अधिकारियों को अवगत करवाया है । इस पर उनके द्वारा समीक्षा भी किया गया हैं परंतु आज तलक कोई ठोस कदम इस पर उनके द्वारा नहीं उठाया गया है। वे कहती है कि अक्सर बारिश के दिनों में जलभराव की वजह से इस आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है ।

ऐसे गांवों में पहुंचने सड़क भी नहीं

ज्ञात हो, इस गांव तक पहुंचने के लिए आपको कोई डामर या पक्की सड़क नही मिलेगी आपको कच्ची सड़क का ही उपयोग करना होगा और बारिश में तो शायद इस बदहाल मिट्टीनुमा सड़क का बाखान करने हेतु शब्द भी शरमा जाए।

दो तीन माह से नहीं मिला “रेडी टू इट”

भारी बारिश में जब लोक असर की टीम जैसे तैसे बड़े परेशानी के साथ वहां तक पहुंची और ग्रामीणों एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं से इस पूरे प्रकरण की जानकारी लेना चाही तो एक और बात खुलकर सामने आई जिसमें बच्चों और महिलाओं को विभाग के द्वारा वितरित किया जाने वाला सुपोषण आहार में सम्मलित सुबह का मिलने वाला “रेडी टू इट” पोषण आहार पिछले दो महीनों से इन्हें उपलब्ध नहीं हो रहा है और यह सिर्फ एक मात्र आंगनबाड़ी केंद्र की स्थिति नहीं है वरन ग्राम पंचायत मुस्तलनार के पांचों संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में यही आलम है।

नियमित जांच के लिए कार्यकर्ता खुद से खर्च करते हैं

इसके आगे वे कहती है की उनके आंगनबाड़ी केंद्र के कुपोषित बच्चों को नियमित तरीके से चिकित्सा और जांच उपचार हेतु ये कार्यकर्ता अपने स्वयं के खर्चे से नजदीकी उप स्वास्थ्य केंद्र छिंदनार एवं गीदम ब्लॉक में स्थित एनआरसी केंद्र तक जैसे तैसे करके ले जाने को बेबस हैं।

विडंबना है कि आंगनबाड़ी केंद्र के लिए ग्राम पंचायत जमीन भी उपलब्ध नहीं करा सकी। ऐसी स्थिति में सहायिका की जमीन में झोपड़ी बनाकर केंद्र संचालित की जा रही है। जमीन देने के बाद भी विभाग द्वारा महज़ 200 रुपए प्रति माह किराया दे रहा है।

आंगनबाड़ी देखभाल का एक प्रमुख केंद्र है सुपोषण का

वैसे तो भारत का आंगनबाड़ी केंद्र मूल रूप से ग्रामीण और वनांचल क्षेत्र के माताओं और बच्चों के देखभाल का एक प्रमुख केंद्र रहा है । यहां सामान्य बच्चों के साथ साथ भूख और कुपोषण के शिकार हुए चिन्हित बच्चों हेतु सुपोषण आहार की वितरण और आवश्यकता अनुसार समय-समय पर स्वास्थ्य और चिकित्सा जांच की जिम्मेदारी तथा जवाबदेही भी आंगनवाड़ी दीदियों द्वारा अपने आंगनवाड़ी पर्यक्षकों के मार्गदर्शन में सुनिश्चित की जाती है । इस मिशन में गर्भवती और शिशुवती महिलाएं भी सम्मिलित है ।

ज्ञात हो जब भी हम दूरस्थ और वनांचल पहुंच विहीन क्षेत्र की बात करते हैं तो वहां आंगनबाड़ी केंद्र के रूप और स्वरूप के दोनों मायने ही बदल से जाते हैं ।

एक आंगनवाड़ी केंद्र में मूल भूत सुविधाओ की अगर बात करें तो आंगनवाड़ी में निम्न आवश्यक मानी गई है:

मापदंड के अनुसार भवन, बरामदा , खेल का मैदान, खेल सामग्री तथा बाल हितैषी खिलौने
साफ – सफाई, जल और स्वच्छता सुविधाएँ
साफ और स्वच्छ रसोईघर – बाल – हितैषी शौचालय पहुँच के लिए ढलावदार सुविधाएँ,
मजबूत तथा रिसावमुक्त छत वाला भवन, मजबूत खिड़कियाँ और दरवाजे , विद्युत कनेक्शन और सुविधा, फर्नीचर, पंखे, विस्तर, जल, बाल्टी, ब्रुश झाडु साबुन, अध्ययन सामग्री होनी चाहिए।


किंतु जिले दंतेवाड़ा के मुस्तलनार ग्रामपंचायत के अधीनस्थ कालेपारा का आंगनबाड़ी केंद्र जो आज पर्यंत तकरीबन 10-11 वर्षों से एक कच्चीनुमा झोपड़ी पर चलने को मजबूर होने के साथ मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित है।

बता दें मिली जानकारी के अनुसार यहां 3 से 6 वर्ष के 25 बच्चे हैं और 0 से 3 वर्ष के बीच की बच्चों की संख्या 16 है, जिसमें मध्यम कुपोषित बच्चे की संख्या बल 01 है। गर्भवती और शिशुवती महिलाओं की अगर बात करें तो उनकी संख्या 04 और क्रमशः 06 बताई गई है।

सरकारें ग्रामीण भारत के सर्वांगीण विकास हेतु योजनाएं तो आवश्यकता अनुसार समय-समय पर बनाती रही है और आगे भी बनाती रहेगी पर उस विशेष योजनाओं को जमीन पर सही समय और सही तरीके से कार्यान्वित करना हमेशा से एक प्रश्न चिन्ह के रूप में हमारे इर्द गिर्द घूमता रहा है ।

जिले के इस आंगनवाड़ी केंद्र को सुचारू और सुसंगठित तरीके से जिला प्रशासन का पूरा अमला क्या उपरोक्त आंगनबाड़ी केंद्र को इस बदहाली में देखना पसंद करेगा या फिर एक नई सिरे से इसका कायाकल्प कर एक नई सौगात के रूप में पूरे ग्रामीणवासियों को प्रदान करेगा यह देखना सचमुच बड़ा दिलचस्प होगा!

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