बुद्ध का अंतिम भोजन….

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

बुद्ध के आखिरी छः महीने बहुत पीड़ा में बीते। पीड़ा में उनकी तरफ से, जिन्होंने देखा; बुद्ध की तरफ से नहीं।
बुद्ध एक गांव में ठहरे हैं। और उस गांव के एक शूद्र ने, एक गरीब आदमी ने बुद्ध को निमंत्रण दिया कि मेरे घर भोजन कर लें। तो वह पहला निमंत्रण देने वाला था, सुबह-सुबह जल्दी आ गया था पांच बजे, ताकि गांव का कोई धनपति, गांव का सम्राट निमंत्रण न दे दे। बहुत बार आया था, लेकिन कोई निमंत्रण दे चुका था।

वह निमंत्रण दे ही रहा था कि तभी गांव के एक बड़े धनपति ने आकर बुद्ध को कहा कि आज मेरे घर निमंत्रण स्वीकार करें।
बुद्ध ने कहा, निमंत्रण आ गया।
उस अमीर ने उस आदमी की तरफ देखा और कहा, इस आदमी का निमंत्रण। इसके पास खिलाने को भी कुछ होगा?
बुद्ध ने कहा, वह दूसरी बात है। बाकी निमंत्रण उसका ही स्वीकार किया। उसके घर ही जाता हूं।

बुद्ध गए। उस आदमी को भरोसा भी न था कि बुद्ध कभी उसके घर भोजन करने आएंगे। उसके पास कुछ भी न था खिलाने को वस्तुतः। रूखी रोटियां थीं। सब्जी के नाम पर बिहार में गरीब किसान, वह जो बरसात के दिनों में कुकुरमुत्ता पैदा हो जाता है- लकड़ियों पर, गंदी जगह में- उस कुकुरमुत्ते को इकट्ठा कर लेते हैं, सुखाकर रख लेते हैं और उसी की सब्जी बनाकर खाते हैं। कभी-कभी ऐसा होता है कि कुकुरमुत्ता पायजनस हो जाता है। कहीं ऐसी जगह पैदा हो गया, जहां जहर मिल गया, तो कुकुरमुत्ते में जहर फैल जाता है।

बुद्ध के लिए उसने कुकुरमुत्ते बनाए थे, वे जहरीले थे। जहर थे, सख्त कड़वे जहर थे। मुंह में रखना मुश्किल था। लेकिन उसके पास एक ही सब्जी थी। तो बुद्ध ने यह सोचकर कि अगर मैं कहूं कि यह सब्जी कड़वी है, तो वह कठिनाई में पड़ेगा; उसके पास कोई दूसरी सब्जी नहीं है। वे उस जहरीली सब्जी को खा गए। उसे मुंह में रखना कठिन था। और बड़े आनंद से खा गए, और उससे कहते रहे कि बहुत आनंदित हुआ हूं।

जैसे ही बुद्ध वहां से निकले, उस आदमी ने जब सब्जी चखी, तो वह तो हैरान हो गया। वह भागा हुआ आया और उसने कहा कि आप क्या कहते हैं? वह तो जहर है। वह छाती पीटकर रोने लगा। लेकिन बुद्ध ने कहा, तू जरा भी चिंता मत कर। क्योंकि जहर मेरा अब कुछ भी न बिगाड़ सकेगा, क्योंकि मैं उसे जानता हूं, जो अमृत है। तू जरा भी चिंता मत कर।

लेकिन फिर भी उस आदमी की चिंता तो हम समझ सकते हैं।
बुद्ध ने उसे कहा कि तू धन्यभागी है। तुझे पता नहीं। तू खुश हो। तू सौभाग्यवान। क्योंकि कभी हजारों वर्षों में बुद्ध जैसा व्यक्ति पैदा होता है। दो ही व्यक्तियों को उसका सौभाग्य मिलता है, पहला भोजन कराने का अवसर उसकी मां को मिलता है और अंतिम भोजन कराने का अवसर तुझे मिला है। तू सौभाग्यशाली है; तू आनंदित हो। ऐसा फिर सैकड़ों-हजारों वर्षों में कभी कोई बुद्ध पैदा होगा और ऐसा अवसर फिर किसी को मिलेगा। उस आदमी को किसी तरह समझाकर-बुझाकर लौटा दिया।

बुद्ध के शिष्य कहने लगे, आप यह क्या बातें कह रहे हैं। यह आदमी हत्यारा है।
बुद्ध ने कहा, भूलकर ऐसी बात मत कहना, अन्यथा उस आदमी को नाहक लोग परेशान करेंगे। तुम जाओ; गांव में डुंडी पीटकर खबर करो कि यह आदमी सौभाग्यशाली है, क्योंकि इसने बुद्ध को अंतिम भोजन का दान दिया है।

मरने के वक्त लोग उनसे कहते थे कि आप एक दफे भी तो रुक जाते! कह देते कि कड़वा है, तो हम पर यह वज्रपात न गिरता ।
लेकिन बुद्ध कहते थे कि यह वज्रपात रुकने वाला नहीं था। किस बहाने गिरेगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। और जहां तक मेरा संबंध है, मुझ पर कोई वज्रपात नहीं गिरा है, नहीं गिर सकता है। क्योंकि मैंने उसे जान लिया है, जिसकी कोई मृत्यु नहीं है।

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