नानक जब तेरा पर ही अटक गए…

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

नानक के पिता बहुत परेशान थे, क्योंकि किसी काम दूसरे धंधे में न लगे। जहां लगाए वहीं अड़चन आ जाए। कुछ पैसे लेकर गांव से सामान लेने भेजा। चलते वक्त कहा कि लाभ का ध्यान रखना। धंधे तो लाभ के लिए किए जाते हैं।
नानक ने कहा बिलकुल बेफिकर रहें, लाभ का ध्यान रखूंगा। वह दूसरे गांव से सामान खरीदकर आते थे, रास्ते में साधुओं की एक मंडली मिल गयी – वे भूखे थे दिन से। उन्होंने सबको खाना खिला दिया, कंबल बांट लिये-जो भी लाए थे वह सब बांट-बूट कर बड़े प्रसन्न, नाचते हुए घर आए। बाप ने देखा, नाचते आ रहा है, जरूर कुछ गड़बड़ हो गयी होगी। दूकानदार कहीं नाचते घर आया है। और सामान कुछ भी नहीं है, अकेले ही चला आ रहा है, और इतनी मस्ती में है, कुछ न कुछ गड़बड़ हुई है।

पूछा कि क्या हुआ-लाभ का क्या हुआ ?

नानक ने कहा, जैसा कहा था वैसा ही करके आया हूं; बड़ा लाभ अर्जित हुआ है। तीन दिन के भूखे संन्यासी। उस जंगल में मेरा निकलना। जैसे परमात्मा को ही भेजना होया। उनको कौन खिलाता, कौन उन्हें कंबल देता है? बड़ा लाभ हुआ है। धन्यभागी हैं हम । उनके चेहरों पर आयी तृप्ति… उनके शरीरों पर डालकर कंबल आ गया हूं… और इस सेवा का क्या लाभ होगा – परमलाभ हुआ है।

बाप ने सिर पीट लिया।

नानक का लाभ कुछ और ही मालूम पड़ता है। ये कुछ ऐसा लाभ है जिसे लाभ कहना भी ठीक नहीं। बाप की समझ में नहीं आता कि ये कैसा लाभ है?

कोई रास्ता न देखकर सूबेदार के घर नौकरी लगवा दिया। नौकरी यह थी कि दिनभर तराजू से तौलते रहो सामान लोगों के लिए-बड़ी फौज-फांटा था, सबको सामान देना – भंडार पर बिठा दिया।

पर दो-चार दिन में ही गड़बड़ हो गयी। प्रेम जिसके जीवन में आ गया, संसार उसका गड़बड़ा ही जाता है। पैर डगमगा जाते हैं- “पांव पड़े कित कै किती।” शराबी की तरह आदमी हो जाता है- प्रेम की शराब।

नानक चौथे या पांचवें दिन नाप रहे थे, तेरह का आंकड़ा आ गया। पंजाबी में तेरह – तेरा। कहा- ग्यारह, बारह, तेरा। तेरा पर अटक गए। तेरा कहते ही उसकी याद आ गयी – तू तेरा। फिर आगे न बढ़े, फिर चौदह न आया, फिर पंद्रह न आया, फिर वे डालते ही गए, तौलते गए और कहते गए- तेरा। अब तेरा के बाद कहीं को संख्या है? आखरी संख्या आ गई, परमात्मा आ गया। अब उसके बाद और क्या आने को बचता है? उसके न आगे कुछ है, न पीछे कुछ है, आखिरी घड़ी आ गयी – तेरा। गांव भर में खबर फैल गयी कि वह पागल हो गया है; लोगों ने कहा वह पागल पहले से हैं।

जब अब वह तौले जा रहा है, जो भी आ रहा है वह तेरा…दिए जा रहा है। अब वह कुछ पैसे-वैसे भी नहीं लेता, क्योंकि तेरा-अब किससे क्या लेना ?
सूबेदार भागा गया। उसने कहा बरबाद कर देगा, यह क्या लग रखा है- तेरा ? तेरा के बाद भी संख्या है, भूल गया?

नानक ने तराजू वहीं रख दिया और कहा कि तेरा के बाद कोई संख्या नहीं है। अब मैं जाता हूं, उसकी पुकार आ गयी। उसने ही पुकारा तभी तो मैं समझ पाया, नहीं तो तेरा तो मैं रोज गिनता था, चौदह आ जाता था, पंद्रह आ जाता है; आज उसकी कृपा हो गयी। अब सब उसी का है – यह अनाज, धन, संपत्ति, मैं तुम सब उसके हैं। अब कुछ तौलूंगा न। अब तो उसके हाथ पड़ गया जिसको तौला ही नहीं जा सकता, इसलिए तो तेरा पर रुक गया। अब यह प्रेम की दुनिया अलग ही दुनिया है, इसका कोई हिसाब-किताब नहीं!

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