(दंतेवाड़ा से हमारे संवाददाता उमा शंकर एवं विनीता देशमुख)
(लोक असर समाचार दंतेवाड़ा)
आग लगने पर ही कुआं खोदा जाता है यह कहावत जिला दंतेवाड़ा के गीदम नगर पंचायत के वार्ड नंबर 14 के कड़तीपारा के एक ही परिसर में संचालित उच्च प्राथमिक शाला, प्राथमिक शाला और आंगनबाड़ी केंद्र पर सटीक बैठ रहा है।
ग्रामीण 5 वर्षों से नए भवन की मांग कर रहे हैं
प्राथमिक शाला भवन निर्माण वर्ष 1994-95 का है। भवन की जर्जरता को देखते हुए ग्रामीणों द्वारा 5 वर्षों से प्राथमिक शाला के नए भवन की मांग की जाती रही है। स्कूल की जर्जर स्थिति को देखते हुए उच्च प्राथमिक शाला एवं प्राथमिक शाला के शिक्षकों के द्वारा कई बार अपने आला अधिकारियों को इसकी सूचना और शिकायत दर्ज कराई गई लेकिन भवन के संधारण को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया था।
भरी बरसात में सामुदायिक भवन में किया स्कूल शिफ्ट
नतीजा यह हुआ कि आज़ बच्चों को भरी बरसात में सामुदायिक भवन में शिफ्ट किया गया है। हैरानी की बात यह भी है कि उक्त सामुदायिक भवन की स्थिति भी बेहद खराब हो चुकी है। जहां बच्चे जान जोखिम डालकर पढ़ने को बेबस है।
बता दें कि कक्षा पहली में 5 बच्चे, दूसरी के 9, तीसरी के 6 चौथी के आठ और पांचवी में चार बच्चे अध्यनरत हैं । कुल 32 बच्चों में प्रधान पाठक सहित दो अतिरिक्त शिक्षकों की पदस्थापना । प्रधान पाठक शिवराम वेक पिछले 27 वर्षो से अपनी सेवाएं दे रहे है। यहां बच्चे बस्तर, बास्तानार, दरभा एवम् दंतेवाड़ा क्षेत्र से हैं।
भवन संधारण के नाम पर प्राप्त लाखों की राशि कहां खर्च हो जाती है?
प्राथमिक शाला के एक एक कमरे की बात किया जाय तो छत कभी भी भरभरा कर गिरने की स्थिति में है। खिड़कियां तथा फर्श की हालत इतनी खराब है कि दयनीय कहना भी बेइमानी होगी। बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी इन जमीनी मुद्दों को प्रशासन समय रहते संज्ञान क्यों नही लेती अपने आप में यह एक बड़ा सवाल है? जबकि प्रतिवर्ष भवन संधारण के नाम पर लाखों रुपए जिले के विकास के नाम पर आवंटित होता है। आखिर इसका उपयोग कहां और कैसे किया जाता है। विभाग पर सवालिया निशान लगाता है।
अब सारी जवाबदेही प्रधान पाठक के मत्थे
बताया जाता है कि पिछले महीने ही कड़तीपारा प्राथमिक शाला से तक़रीबन डेढ़ से 2 किलोमीटर की दूरी पर महंगुपारा में शाला भवन की इस बारिश में एक कमरा ढह जाने की खबर ने आनन – फानन में जिला प्रशासन की गहरी नींद से जगाया और आनन फानन में जिले के एसडीएम साहब, गीदम ब्लॉक के सीएमओ और एडीओ की प्रशासनिक अमला ने समय और स्थिति को भांपते हुए विगत दिनों कड़तीपारा के इस परिसर में पहुंचे थे और परिसर में संचालित शालाओं की वर्तमान व वास्तविक हालात को देखते हुए इस प्राथमिक शाला भवन बच्चों की चल रही पढ़ाई में कोई व्यवधान ना पड़े इस हेतु विद्यालय के ठीक सामने गांव के सामुदायिक भवन में अस्थाई तरीके से विद्यालय संचालन की जिम्मेदारी हेड मास्टर साहब को सौप दी गई। इस तरह सुविधाविहीन सामुदायिक भवन में स्कूल शिफ्ट करा अधिकारी जवाबदेही से भागते नज़र आ रहे हैं!
सामुदायिक भवन में कुछ भी व्यवस्था नहीं
मजे की बात है की यह सामुदायिक भवन की स्थिति भी आईसीयू में पड़े हुए अंतिम सांस ले रहे एक मरीज की तरह ही है जहां बारिश में रिश्ते दीवार, फर्श पर छत से टपकता पानी, बिजली की कोई सुविधा नहीं और शौचालय की बात ही क्या करें! जिसका आज तक संचालन तक नहीं हो पाया है । बच्चे और शिक्षक दोनों ही मजबूरन इस अवस्था में पढ़ने पढ़ाने को मजबूर हैं।
आंगनबाड़ी केंद्र में नहीं कोई सुविधाएं
इससे इतर आंगनबाड़ी केंद्र की अगर बात करें तो यहां पर भी स्थिति लगभग उसी तरीके की है दीवार से रिश्ता पानी, शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं, नौनिहाल बच्चों को आंगनबाड़ी के कार्यकर्ता और सहायिका दीदियों को प्रसाधन हेतु खुले में ही ले जाना पड़ता है । बच्चों के खेलने हेतु प्रशासन द्वारा आवंटित चीजों का अस्त व्यस्त अवस्था में पड़े रहना आपको यहां देखने को मिल जाएगी।
ब्लॉक मुख्यालय से मात्र एक से डेढ़ किलोमीटर दूर
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि गीदम नगर पंचायत का यह परिसर जो गीदम मुख्य सड़क से मात्र एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर संचालित है पर इनके आवश्यकता एवं परिस्थिति के समयानुसार इन परिसरों में अपनी सेवा दे रहे शिक्षकों ,कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं के साथ-साथ नन्हे बालक बालिकाओ के निजी सुरक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े बेहद अहम विषयवस्तु के प्रति प्रशासनिक चुप्पी उनके लापरवाही को उजागर करता है।
मध्यान्ह भोजन भी बच्चे क्लास में करते है
परिसर में उच्च प्राथमिक शाला की बात किया जाए तो काफी छोटे-छोटे भवन जिनमें बच्चों की बैठने की काफी असुविधापूर्ण एवं अभावग्रस्त है और साथ ही मध्यान्ह भोजन भी बच्चों को मजबूरन अपने कक्षा में ही बैठकर करना पड़ रहा है । इसमें प्रधान अध्यापिका सहित कुल 6 शिक्षक है।
विद्यालय में अध्ययनरत कमरे हो या रसोई वाला कमरा, टॉयलेट हो या फिर शिक्षकों का कमरा सभी के सभी जर्जर हालत में हैं।
अब देखना दिलचस्प होगा कि इन सारे हालातो पर मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए शासन-प्रशासन कितने जल्दी इस अव्यवस्था को व्यवस्थित करने की दिशा में कार्य करते हैं ।