तुलसी के राम का अचानक चले जाना…(12 सितंबर को पंचनहावन पर विशेष)

(गुरुर से प्रोफ़े के मुरारी दास की कलम से सिर्फ़ लोक असर के लिए)

(लोक असर समाचार बालोद)

अभी 3 दिन पहले की ही बात है. जब मै सुबह सो कर भी नहीं उठा था कि, बिस्तर पर रखी हुई मोबाइल की घंटी अचानक बजने लगी, उनिंदी आंखों से व बेमन भाव से मैंने मोबाइल उठाया किसी ने कहा, सर गुड मॉर्निंग इसके पहले कि, मैं किसी का नाम देखता या जानता समाचार मिला कि, टी.आर.महमल्ला सर नहीं रहे .इसके पहले की कुछ कहता या बात आगे बढ़ती कहा – आपके व्हाट्सएप में मैसेज डाल दिया गया है. काफी लेट तक सोने वाला मेरे जैसा आलसी इंसान उस समय अचानक उठा और बिस्तर पर ही व्हाट्सएप खंगालने लगा . उसके बाद तो फिर जैसे तैसे व्हाट्सएप पर इस समाचार की श्रृंखला रुक-रुक कर तो कभी व्यक्तिगत तौर पर तो कभी व्हाट्सएप समूह के माध्यम से लगातार यह समाचार रुक रुक कर लगातार वायरल होने लगा.

समाचार मिला ही था कि कुछ को मैंने हीं टेलीफोन किया. उठा हाथ मूंह धोया और फिर इसी सूचना को मैं भी अनेक व्हाट्सएप समूह और व्यक्तिगत तौर पर डालकर लोगों को महमल्ला जी के निधन की जानकारी देने लगा. जिसको भी मैंने टेलीफोन किया किसी को भी ऐसा विश्वास नहीं हुआ कि, भला चंगा लगने वाला यह व्यक्ति भले ही वे अपने उम्र के 8 दशक को पार कर अंतिम पड़ाव पर थे . वे एकदम स्वस्थ,हंसमुख एवं खुश मिजाज इंसान थे. प्राचार्य एवं शिक्षा अधिकारी के पद से पूर्णकालिक अवकाश लेने के बाद भी वे आज तक अनेक साहित्यिक, सामाजिक व सांस्कृतिक जैसे अनेक गतिविधियों मैं बराबर की अपनी सक्रिय भागीदारी देते रहे. वे अपने उद्बोधनों में हमेशा एक बात कहा करते थे इंसान को अपना हौसला और घोंसला कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए पर कुदरत को शाय़द उनकी यह बात नामंजूर थी. आज वे अपना हौसला और घोंसला दोनों को छोड़कर हम सब के बीच से हमेशा हमेशा के लिए चले गए. जहां ना चिट्ठी ना कोई संदेश वहां तुम चले गए .उनके अंतिम यात्रा पर उमड़ती भीड़ इस बात की गवाही दे रहे थे कि, सामान्य सा व्यक्ति होते हुए भी किस प्रकार लोगों के दिलों पर राज करते थे. शायद यही उनकी खूबसूरती थी. उन्होंने अपने जीवन काल में समाज को विभिन्न सौगाते भी दी जो एक धरोहर के रूप में हमेशा याद किए जाते रहेंगे.

आज जब पूरे बालोद जिले में कहीं पर भी किसी भी साहित्य समिति का स्वयं का कोई भवन नहीं है ऐसी स्थिति में गुरुर जैसे छोटे से कस्बे में में साहित्य समिति का अपना स्वयं का भवन होना गर्व की बात है. जिसे एक नीव के पत्थर के रूप में क्षेत्र के लेखक कवि व साहित्यकार हमेशा याद करते रहेंगे , हम हमेशा याद करते रहेंगे उस पेंशनर भवन को भी जिसके निर्माण में उनका व्यक्तिगत योगदान झलकता है, इस तरह तहसील साहू समाज की खड़ी वह मजबूत खूबसूरत इमारत, जिसकी छत्रछाया ने अब तक अनेक जोड़ों का विवाह कराया, जिसकी छत्रछाया ने अनेक लोगों की जन्मदिन, अनेक राजनीतिक दलों की सभाएं व विभिन्न प्रकार की सुख और दुख तथा खुशी और गम में होने वाली पार्टियों में भी इस छत्रछाया की अहम भूमिका रही. जिसे कोई भी सामाजिक बंधु झूठला नहीं सकता जैसे उसका नाम था अपने नाम के अनकुल उसका काम भी समाज के सामने उसकी जीवित होने की हमें गवाही देते रहेंगे जिस प्रकार गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखकर अमर पद को प्राप्त किया यदि मैं कहूं कि, 20वीं सदी के इस तुलसी के राम के मानस प्रेम ने न केवल उन्हें मानस के व्याख्या कार के रूप में मानस प्रेमियों के बीच में स्थान बनाया बल्कि एक कवि हृदय के रूप में भी उनकी रचनाओं में प्रेम और विरह के बाद धार्मिकता के पूट आकर्षक एवं सुरीली आवाज एक कर्मठ इंसान के रूप में उनके होने की जीवित गवाही देते हैं .
विनम्रता के इस प्रतिमूर्ति को मेरा कोटि कोटि श्रद्धा सुमन.

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