फिर उपयोगिता जगत फैलने लगता है कुछ इस तरह…

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

दुनिया से भागकर कहां जाओगे? जीवन की जरूरतें हैं, वे पूरी करनी ही होंगी।

मैंने एक कहानी सुनी है कि एक वनवासी साधु की लंगोटी को जब चूहे कुतर गए तो उसने निकटवर्ती गांव के लोगों से पूछा कि अब कैसे इस लंगोटी को हम बचाएं चूहों से?

लोगों ने सलाह दी कि बिल्ली पाल लो। तरकीब काम कर गई, साधु ने बिल्ली पाल ली, वह चूहों को खाने लगी।

लंगोटी तो बच गई, लेकिन अब नई समस्या आ गई… बिल्ली को दूध चाहिए, अब त्यागी साधु कहां से दूध लाए?

ग्रामीणों ने कहा कि आप एक गाय पाल लीजिए। साधु ने गाय पाल ली, लेकिन उसको खिलाने के लिए भी तो कुछ घास-पात चाहिए। अब वह सब कहां से लाए? गाय की सेवा कौन करे?

लोगों ने समझाया कि आप ऐसा करिए कि थोड़ी-सी, एकाध एकड़ जमीन साफ करके खेती आरंभ कर दीजिए, उसमें घास बोएंगे और सब्जियां लगाएंगे तो वह आपके भी वि काम आएगी और गाय का काम भी चल जाएगा।

साधु ने खेती शुरु कर दी, लेकिन उसे संभालने की मुसीबत, आए दिन नई मुश्किलें आने लगीं। साधु गाय की सेवा करेगा तो गोविंद को कब भजेगा, खेत में परिश्रम करेगा तो प्रभु को स्मरण कब करेगा?

लोगों ने सलाह दी कि ऐसा करिए कि आप एक नौकरानी रख लीजिए। गांव में एक युवा विधवा है, मायके और ससुराल में उसका कोई नहीं है। उस गरीब स्त्री का भी भरण-पोषण हो जाएगा।

साधु ने उस महिला को सेवा करने के लिए रख लिया। धीरे-धीरे पूरा परिवार बस गया, बाल-बच्चे भी हो गए। फिर उपयोगिता जगत फैलने लगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *