LOK ASAR BILASPUR
द लोक मीडिया -सांगवारी जंक्शन रायपुर द्वारा कंट्री क्लब बिलासपुर में आयोजित “पोएट्री” व फ़ोटोक़िस्सा “सुघ्घर फोटो एक्सीविसन” इवेंट में डॉ रूपेन्द्र कवि की कृति”बस्तर की सुबह” सम्मानित हुई। कार्यक्रम के दौरान सहभागियों ने तालियों से स्वागत किया , उतनेही रोचक प्रश्नोत्तर भी हुआ, आयोजक तेजसाहू व टीम ने “सुरता टोकन ऑफ़ मया” सम्मानपत्र देते हुए कवि का आभार व्यक्त किया।
डॉ. रूपेन्द्र कवि बस्तर के चर्चित हस्ताक्षर हैं। वे मानवशास्त्री होने के साथ-साथ जीवन जगत को पूरी संवेदना के साथ काव्य में रूपांकन करने में सिद्धहस्त हैं। उनकी ज्ञान मुद्रा प्रकाषन भोपाल से प्रकाशित “बस्तर की सुबह” बस्तर के जनजीवन पर कवि संवेदना की छुअन है। उनके इस पहले काव्य संग्रह में बस्तर के जन जीवन, उसकी संस्कृति, संस्कृति के जीवन तत्व- तुमा, सल्फी, साल वन, तैंदु, महू से आप्लावित और आच्छादित जीवन कर्म मुखरित हुआ है।
बस्तर का कृषक कठोर संघर्ष करता है। वह खेत में तो काम करता ही है, मजदूरी करके भी वह पर्व, त्यौहार और उत्सवों को पूरे भावनात्मक लगाव के साथ मनाता है। उसमें कही कोई कमी नहीं छोड़ता। कवि बस्तर के वन, पर्यावरण, कृषिकर्म, पर्वत निर्झर, खेत-खलिहान, गाँव सब को अगाध चाह और समर्पण भाव से देखता है, वह उसमें रमना चाहता है, खोना चाहता है।
बस्तर के अद्वितीय पहाड़, पर्वत, वन, निर्झर पर तो उसकी दृष्टि गई ही है, वरण बस्तर की मुख्य समस्या शोषण और अत्याचार तथा नक्सलवाद की समस्या की ओर भी पूरी गंभीरता से वह देखता है। इस समस्या पर कवि की गंभीरता यहाँ तक है कि वह पहाड़ी मैना तक से बंदूक की धांय-धांय तथा गला रेतने की घटना की हूबहू नकल करवा लेता है।
बस्तर के इन वनवासियों की पीड़ा और वेदना का अपना ही रंग है। उनके सामने अस्तित्व की समस्या हैं, वे दो पाटो पुलिस-प्रषासन और नक्सलियों के बीच पीस कर रह गये हैं, उन्हें जासूस समझा जाता है, वह अपने बीते हुए दिनों को, प्रकृति, पर्यावरण युक्त अपने मूल निवास को पाना चाहते है। उनकी अपनी पीड़ा और व्यवस्था हैं, जिसे कवि पूरी तन्मयता और शिद्दत से पूरी संवेदना के साथ रूपायित करता है। यह कवि की अभिनव द्विभाषीय कविता संग्रह कालजयी कृति है।