(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
मुसलमान खलीफा अली के संबंध में एक बहुत अदभुत घटना है। युद्ध के मैदान में लड़ रहा है। वर्षो से यह युद्ध चल रहा है। वह घड़ी आ गयी जब उसने अपने दुश्मन को नीचे गिरा लिया और उसकी छाती पर बैठ गया और उसने अपना भाला उठाया और उसकी छाती में भोंकने को है। एक क्षण की और देर थी कि भाला दुश्मन की छाती में आरपार हो जाता। उस दुश्मन की, जो वर्षो से परेशान किए हुए था और इसी क्षण की प्रतीक्षा थी अली को।
लेकिन उस नीचे पड़े दुश्मन ने, जैसे ही भाला अली ने भोंकने के लिए उठाया, अली के मुंह पर थूक दिया।
अली ने अपना मुंह पर पड़ा थूक पोंछ लिया, भाला वापस अपने स्थान पर रख दिया, और उस आदमी से कहा कि कल अब हम फिर लड़ेंगे।
पर उस आदमी ने कहा—यह मौका अली तुम चूक रहे हो। मैं तुम्हारी जगह होता तो नहीं चूक सकता था। इसकी तुम वर्षो से प्रतीक्षा करते थे। मैं भी प्रतीक्षा करता था। संयोग कि तुम ऊपर हो, मैं नीचे हूं। प्रतीक्षा मेरी भी यही थी। अगर तुम्हारी जगह मैं होता तो यह उठा हुआ भाला वापस नहीं लौट सकता था। इसी के लिए तो दो वर्ष से परेशान हैं। तुम क्यों छोड़ कर जा रहे हो?
अली ने कहा—मुझे मुहम्मद की आज्ञा है कि अगर हिंसा भी करो तो क्रोध में मत करना। हिंसा भी करो तो क्रोध में मत करना। एक तो हिंसा करना मत और अगर हिंसा भी करो तो क्रोध में मत करना।
अभी तक मैं शान्ति से लड़ रहा था। लेकिन तेरा मेरे ऊपर थूक देना, मेरे मन में क्रोध उठ आया। अब कल हम फिर लड़ेंगे। अभी तक मैं शान्ति से लड़ रहा था, अभी तक कोई क्रोध की आग न थी। ठीक था, सब ठीक था। निपटारा करना था, कर रहा था। हल निकालना था, निकाल रहा था। लेकिन कोई क्रोध की लपट न थी। लेकिन तूने थूक कर क्रोध की लपट पैदा कर दी। अब अगर इस वक्त मैं तुझे मारता हूं तो यह मारना व्यक्तिगत और निजी है। मैं मार रहा हूं अब। अब यह लड़ाई किसी सिद्धान्त की लड़ाई नहीं है। इसलिए अब कल फिर लड़ेंगे।
कल तो वह लड़ाई नहीं हुई क्योंकि उस आदमी ने अली के पैर पकड़ लिए। उसने कहा—मैं सोच भी नहीं सकता था कि वर्षो के दुश्मन की छाती के पास आया हुआ भाला किसी भी कारण से लौट सकता है, और ऐसे समय में तो लौट ही नहीं सकता जब मैंने थूका था, तब तो और जोर से चला गया होता।