विमल व्यक्तित्व के धनी विमल तिवारी जी का जाना अपूरणीय साहित्यिक क्षति है: पूर्णिमा सरोज

lokasarjagdalpur

इनका आत्मकथ्य है “भावनाएं मजबूर करती हैं सृजन को” भावनाओं में डूबी विमल जी की रचनाएं सभी का मन मोह लेती हैं। उन्होंने
दीप की चाह कविता में लिखा…
“मैं नन्हा-सा दीपक
अंधकार को दूर भगाता
अपने प्राणों की दे आहुति
रोशनी तुमको बांटता।”
दीपक की तरह शिक्षकीय जीवन में चहुं ओर रौशनी बिखेरते हुए और साहित्य के क्षेत्र में अतिरिक्त समय प्रदान करते हुए वे 27 नवंबर 2024 को हमारे बीच नहीं रहे। इस सूचना से बस्तर के ही नही अपितु अन्य साहित्यिक परिवार एवम् शिक्षकीय परिवार भी शोकाकुल है।
हमेशा सक्रिय रहे शिक्षा और साहित्य के साथ चाहे हिंदी हो या छत्तीसगढ़ी दोनों मे उनकी रुचि समान थी।बहुत ही सज्जन, सहज, सहृदय, मिलनसार, शांत स्वभाव उनके व्यक्तित्व के आभूषण थे।वे हमारे बीच नहीं है यह अविश्वसनीय सा लगता है। कवि गोष्ठियों मे आपकी कविताएं अपनी विशिष्ट छाप छोड़ जाती थीं। विमल जी अपनी कविताओं के माध्यम से हमेशा सबके दिलों में रहेंगे।
जीवन परिचय.. स्व.विमल तिवारी
पिता- बहादुर लाल तिवारी का जन्म
26 अप्रेल सन् 1964 केशकाल छ.ग़.में हुआ था। वे करंजी तोकापाल में शासकीय विद्यालय में हिन्दी के व्याख्याता एवं जिला-बस्तर सह सचिव, छत्तीसगढ़ शिक्षक संघ बस्तर जिला इकाई कोषाध्यक्ष, व्याख्याता संघर्ष समिति बस्तर जिला इकाई एवं साहित्यिक जिला इकाइयों में सक्रिय कार्यकर्ता थे। उन्होंने एम.ए. हिन्दी, संस्कृत एवं बी.एड.की शिक्षा प्राप्त की थी।
उन्होंने हिन्दी एवम् छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओं में साहित्य की प्रमुख विधाओं कविता, कहानी, लघुकथा, आलेख आदि लिखे हैं।
उनकी बहुचर्चित प्रकाशित कृति “गीत गुंजन” काव्य संकलन है। साझा संकलनों एवम् पत्र पत्रिकाओं में आपकी अनेक रचनाएं प्रकाशित हुई हैं।
दूरदर्शन एवं आकाशवाणी से काव्य पाठ, कहानी, आलेख का प्रसारण।

दण्डकारण्य समाचार, बस्तर पाति, अविराम साहित्यिकी अरण्यधारा-1 तथा अन्य साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में कहानी, लघुकथा, कविता, आलेख इत्यादि का निरन्तर प्रकाशन हुआ है।

साहित्य के क्षेत्र में दिल्ली से मानद डॉक्टरेट उपाधि से सम्मानित हुए एवं नवरंग काव्य मंच रायपुर द्वारा उत्कृष्ट कविता लेखन हेतु सम्मानित ।
छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग में विशेष सहभागिता हेतु सम्मानित और समय समय पर जिले एवम् राज्य में अपनी खूबसूरत कविता पाठ प्रस्तुति हेतु सम्मानित किए गए।

विमल जी अपने स्वाभाव के अनुरूप शब्दों को कविताओं की लड़ियों में पिरोया करते थे। अपने शांत, सौम्य और परमार्थी स्वाभाव को शब्दों का रूप दिया करते थे।

अपने शिक्षकीय पेशे में ईमानदारी बरतने वाले विमल जी अपनी कविताओं की तरह ही विमल, निर्मल थे।वे अपने छात्रों के लिए ऐसा ही भविष्य — बनाना चाहते थे। विमल जीअपनी कविताओं से उनमें जोश और देश भक्ति का जज्बा भरते रहे।
प्रकृति प्रेम और मातृभूमि के प्रति उनका लगाव उनकी कविताओं की विशिष्टता है वे अपने को हर पल प्रकृति यानी बस्तर की धरा के नजदीक पाते थे।
श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित विमल जी की कविताओं से कुछ पंक्तियां…
1.सचमुच देश के जवान तुम…
साहस के हो तुम धनी,
वीरता की पहचान हो।
हो भारत के लाल तुम,
सचमुच देश के जवान तुम।।

  1. जंगल जंगल से पूछ रहा
    गुम हो गई हरियाली
    शांत हो गया पक्षियों का कलरव
    हवा भी क्यों है सहमी – सहमी
    कहां खो गई वनवासी बालाओं की उन्मुक्त हंसी!
    जंगल जंगल से पूछ रहा….
    3.अंधकार को पार कर…
    अंधकार को पारकर हे भारत के नवयुवक, छोड़ झूठे आडम्बर, देश का विकास कर।
    खून की गर्मी तुझमें
    जोश की चिन्गारी तुझमें
    हाथ पर हाथ धरे न बैठ
    देश का तू कर्णधार !

इस लेख के माध्यम से विमल तिवारी जी को सादर श्रद्धांजलि अर्पित है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *