कबीर किसी मजहब के नहीं अपितु मजहब में व्याप्त आडंबर के विरोध में थे संत श्री

कबीर आश्रम गुरुर में सदगुरु कबीर की 625 वीं जयंती मनाई गई

लोक असर के लिए प्रोफ़े. के. मुरारी दास की रपट

लोक असर बालोद/ गुरुर

जून का महीना आते ही सद्गुरु कबीर की जयंती मनाने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसी कड़ी में सदगुरु कबीर आश्रम गुरुर द्वारा कबीर की 625 में जयंती मनाई गई. प्रातः सतगुरु कबीर की शोभा यात्रा आश्रम से निकलकर नगर भ्रमण करते हुए पुनः आश्रम में वापस आए तत्पश्चात कबीर विचार संगोष्ठी का सिलसिला प्रारंभ हुआ.


संत श्री रामेश्वर साहिब ने कहा- बुद्ब ने ईश्वर नहीं देखा, महावीर स्वामी ने कभी ईश्वर नहीं देखा, कबीर और नानक ने भी कभी ईश्वर नहीं देखा हां इन लोगों ने सत्य से साक्षात्कार अवश्य किया जब इन महान आत्माओं ने ईश्वर को नहीं देखा पर फिर भी हम विपरीत विपरीत दिशा की ओर नित ईश्वर प्राप्ति की दौड़ में आगे रहते हैं. उन्होंने कहा जब तक आपका मन निर्मल नहीं होगा सत्संग और शास्त्र पढ़ने से कोई लाभ नहीं होगा .
मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित संत श्री धीरेंद्र साहिब ने कहा- जिस प्रकार वृक्ष का जड़ सूखने से वृक्ष धीरे-धीरे मर जाता है. इसी प्रकार इस नश्वर शरीर को चलाने का काम भी कोई जीव ही करता है जिसे हम आत्मा, परमात्मा व गॉड जैसे अनेक नामों से जानते हैं। लेकिन, यदि इस शरीर से प्राण निकल जाता है तो उस शरीर को भी मरघट तक ले जाने वाला कोई जीव ही होता है. जिस व्यक्ति के पास आत्मबोध होता है। वह विनम्र होता है। वह गिरता है। उठता है। संभलता है। फिर चलता है।किंतु, अहंकारी व्यक्ति जब गिरता है तो, वह उठता नहीं जिस दिन व्यक्ति को यह बात समझ में आ जाएगी, उस दिन वह शिवत्व को प्राप्त कर लेगा. उन्होंने कहा- कबीर हिंदू मुसलमान के आलोचक नहीं थे। किंतु, वे धर्म के अंदर व्याप्त ढोंग और आडंबर की कट्टर आलोचक थे। जिसकी वजह से हम उन्हें हिंदू, मुस्लिम या किसी मजहब के विरोधी मान बैठे .
भजन गायक संत पावन साहिब व संत गुरुनेम साहिब, कवि मोहन प्रसाद चतुर्वेदी के अतिरिक्त प्रोफ़ेसर के. मुरारी दास, प्राचार्य सेवाराम तेजस्वी ने भी सदगुरु कबीर के विराट व्यक्तित्व पर विचार रखने वालों में शामिल थे।
सतगुरु कबीर विचार गोष्ठी का संचालन संत श्री हरि साहिब ने तथा आश्रम संचालक श्री दयाचंद्र साहेब के आभार प्रदर्शन के साथ संपन्न हुआ.

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