उसे पुकारो! रोओ उसके लिए! उसकी प्रतीक्षा करो..

(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)

पतंग आकाश में उठ जाती है, अदृश्य हवा के सहारे। मैंने कहा–यह सूत्र बड़ा कीमती है। उसकी अनुकंपा अदृश्य है, जैसे हवा, भक्त बड़े आकाशों की यात्रा कर लेता है–जथा पवन परसंगि ते–बस उसकी अनुकंपा का सहारा मिल जाता है उसे। हाथ दिखाई नहीं पड़ते, मगर भक्त के हाथ में आ जाते हैं। किसी और को दिखाई नहीं पड़ते, मगर भक्त को स्पर्श अनुभव होने लगता है। जो पतंग चढ़ाता है, उसकी डोर पर हवा का बल मालूम होने लगता है, उसकी अंगुलियों पर हवा का बल मालूम होने लगता है। किसी और को हवा दिखाई नही पड़तीं, लेकिन जिसने पतंग चढ़ाई है उसको पता होता है, कि हवा में कितना बल है! ठीक वैसा ही भक्त को परमात्मा का बल अनुभव होना शुरू हो जाता है। किसी दूसरे को दिखाई नहीं पड़ता। किसी दूसरे को भक्त दिखाना भी चाहे तो दिखा नहीं सकता। लेकिन भक्त को अनुभव होने लगता है कि उसके हाथ में मेरे हाथ पड़ गए। सब ठीक होने लगता है। कदम ठीक राह पर पड़ने लगते हैं। सुख गहन होने लगता है। प्रतिपल शीतलता और शांति बढ़ती चली जाती है। आनंद उमगने लगता है। भक्त जानता है ठीक रास्ते पर हूं। उसके हाथ में मेरे हाथ हो गए हैं। और भक्त को उसके हाथ का स्पर्श होता है। ख्याल रखना, भक्त को अंतस में पूरी प्रतीति होने लगती है, साफ होने लगता है कि अब मैं अकेला नहीं हूं, कोई सदा साथ है।..

मैं तो कुछ भी नहीं हूं, पतंग हूं, कागज की पतंग। लेकिन पतंग भी आकाश में उठ जाती है हवा के सहारे। तुम्हारा सहारा मिले तो मैं भी क्या न कर दिखाऊं? फिर मोक्ष भी दूर नहीं है। फिर बैकुंठ मेरे हाथ में है। तुम्हारा सहारा चाहिए। तुम्हारे बिना तो दुख ही दुख है, तुम्हारा सहारा होते ही सब रूपांतरित हो जाता है। इस जगत में एक ही क्रांति है और क्रांति है कि तुम अनुभव कर लो कि तुम अकेले नहीं हो, परमात्मा तुम्हारे साथ है।..

एक पतंग जमीन पर पड़ी है क्योंकि उसे हवा का सहारा नहीं है और एक पतंग आकाश में चढ़ गई क्योंकि उसे हवा का सहारा है। दोनों पतंग हैं। भक्त की पतंग में और तुम्हारी पतंग में जरा फर्क नहीं है, सिर्फ भक्त की पतंग को उसकी अदृश्य शक्ति का सहारा है। उस सहारे को पाने की तलाश करो। वही प्रार्थना है। उस सहारे को पाने की तलाश प्रार्थना है। उसे पुकारो! रोओ उसके लिए! उसकी प्रतीक्षा करो।..

यह तुम्हारी पतंग आकाश जा सकती है। यह आकाश तुम्हारा है। उड़ियो पंख पसार। फैलाओ पंख, उड़ जाओ। मगर उसकी हवा के सहारे के बिना यह न हो सकेगा। और उसकी हवा अदृश्य है। और उसकी हवा का दृश्य अगर बनाना हो, उसकी हवा को अगर पहचानना हो, तो जैसे पतंग अपने को हवा के ऊपर छोड़ देती है, ऐसे ही तुम भी समर्पित हो जाओ।

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