(संकलन एवं प्रस्तुति मैक्सिम आनन्द)
बहुत प्रसिद्ध फकीर हुआ, यहूदी – बालसेन। बालसेन के शिष्य जो भी बालसेन. बोलता था, लिखते थे। बालसेन अक्सर उनसे कहता कि लिख लो, जो मैंने कहा ही नहीं। और यह भी लिख लेना, तुम वही लिख रहे हो, जो मैंने कहा नहीं है।
बालसेन को समझा भी तो नहीं जा सकता। क्योंकि समझ शब्दों से नहीं आती, तुम्हारे अनुभव से आती है। तुम वही तो सुनोगे जो तुम सुन सकते हो।
एक दिन ऐसा हुआ कि बालसेन बोलता ही गया। सुननेवाले थक गए। और थोड़ी ही देर में सुनने वालों के हाथ से सब सूत्र खो गए। यह समझ में ही न आया कि वह क्या बोलता है? कहां बोल रहा है? क्यों बोल रहा है? फिर धीरे-धीरे लोगों के काम का समय हो गया। मंदिर खाली होने लगा। लोगों की दुकानें खुलने का वक्त आ गया। आफिस, दफ्तर लोग भागे। आखिर में बालसेन अकेला रह गया। जब आखिरी आदमी जा रहा था तो उसने कहा कि, ‘रुक! क्या मेरी जान लेगा?’ उस आदमी ने कहा, कि ‘मैं क्यों आपकी जान लूंगा? मैं तो जा रहा हूं। सब लोग जा चुके हैं।’
बालसेन ने कहा कि ‘मेरी हालत तुमने वैसी कर दी, जैसे कोई आदमी सीढ़ी पर चढ़े। तुम्हें जहां तक दिखाई पड़ा, तुम सीढ़ी को सम्हाले रहे। लेकिन यह सीढ़ी वहां है, जो ज्ञात से अज्ञात तक जाती है। और जैसे ही मैं तुम्हारी आंखों के पार हुआ, तुम सीढ़ी छोड़कर जाने लगे। मेरी जान लोगे ? मैं तो चढ़ गया अज्ञात पर और तुम सब भागे जा रहे हो। सीढ़ी सम्हालने वाला तक कोई नहीं। तो तू जब तक रुका था, तो मैंने सोचा कम से कम एक तो मौजूद है, जो सीढ़ी को सम्हाले रखेगा। तब तक मैं कुछ न बोला। कम से कम मुझे नीचे तो उतर आने दे !’
बुद्ध जहां से बोलते हैं वह सीढ़ी का वह हिस्सा है, जो अज्ञात से टिका है। तुम जहां खड़े हो वह सीढ़ी का वह हिस्सा है, जो ज्ञात की पृथ्वी से टिका है। तुम्हारे बीच संवाद तो होना असंभव है। बुद्ध जो कहेंगे, तुम वह न समझ पाओगे। तुम जो समझोगे, वह बुद्ध ने कभी कहा नहीं।
इसलिए महावीर या बुद्ध के पास जब भी कोई आता तो वे कहते हैं, इसके पहले कि मैं बोलू, तू सुनने की कला सीख ले। मेरे बोलने से कुछ सार नहीं है। क्योंकि मैं जो भी कहूंगा वह गलत समझा जाएगा। और गलत समझा गया । ज्ञान – अज्ञान से भी ज्यादा खतरनाक है। अज्ञानी तो विनम्र होता है, भयभीत होता है, डरता है; सोचता है कि मुझे कुछ पता नहीं है, लेकिन अर्ध-ज्ञानी अहंकार से भर जाता है। और उसे लगता है, मुझे पता है। और एक दफे जिसे खयाल हो गया मुझे पता है और पता नहीं है, उसका भटकना सुनिश्चित है।
इस बात को हम ठीक से समझ लें। ‘सम्यक श्रवण’ का, ‘राईट लिसनिंग’ का क्या अर्थ होगा? सम्यक श्रवण का अर्थ होगा, जब कोई बोलता हो, तब तुम सिर्फ सुनो। तब तुम सोचो मत। क्योंकि तुमने सोचा कि एक धुआं खड़ा होनिर्मल होता जाता है। अगर तुम्हारी आंखें और कान और तुम्हारी इंद्रियां सब बंद पड़ी हैं, तो यह इतना बड़ा संसार कैसे पैदा हो रहा है?
